बाजी की संविदा- बाजी अर्थात पंद्यम संविदा की कोई एक ठोस परिभाषा देना अत्यंत कठिन है | समय समय पर विनिश्चित वादों में इसे परिभाषित किया गया है |
प्रोo विलियम एन्सन के अनुसार- "बाजी की संविदा एक अनिश्चित घटना के अवधारण या अभिनिश्चय हो जाने पर धन अथवा धन जैसी कोई मूल्यवान वस्तु देने की प्रतिज्ञा कहलाती है |"
न्यायाधीश हाकिन्स (Howkins. J.) - ने कार्लिल स्मोक बाल कंपनी, (1893) 2 क्यूo बीo 484 में बाजी की संविदा की परिभाषा निम्नानुसार दी है -
"जब दो व्यक्ति भविष्य की घटना पर विरोधी मत रखते हुए यह करार करते हैं कि इस घटना के निर्धारण पर निर्भर करके एक दूसरे को धन या कुछ अन्य देगा , दोनों पक्षकारों में से किसी का भी उक्त धन के अतिरिक्त संविदा में अन्य कोई हित न हो तथा उनमे से किसी की ओर से संविदा के लिए प्रतिफल न हो | बाजी लगाने के लिए यह आवश्यक है कि इसका प्रत्येक पक्षकार घटना पर निर्भर करते हुए कुछ जीते या हारे तथा घटना के घटने के पहले निर्णय अनिश्चित रहे | "
घेरुलाल पारख बनाम महादेव दास ,ए ० आई ० आर ० 1959 एस ० सी ० 781 के मामले में बाजी की संविदा की परिभाषा इस प्रकार दी गई है --"यह एक ऐसी संविदा है जिसमे 'क' यह संविदा करता है कि वह 'ख' को किसी घटना विशेष के घटित होने पर धन देगा ,इस प्रतिफल का उक्त घटना न घटने पर 'ख' उसे धन देगा |"
बाजी संविदा के आवश्यक तत्त्व
(Essential Elements of Wagering Contract)
- दो पक्षकार होने चाहिए ;
- धन अथवा धन के मूल्य की किसी वस्तु के देने की प्रतिज्ञा होनी चाहिए ;
- प्रतिज्ञा किसीघटना के घटने या न घटने की शर्त पर होनी चाहिए ;
- घटना अनिश्चित होनी चाहिए ;
- प्रत्येक पक्ष को हारने या जीतने की सम्भावना होनी चाहिए ;
- एक पक्षकार की हार दूसरे की जीत होनी चाहिए |
पक्की आढ़त एवं कच्ची आढ़त के संव्यवहार --बम्बई के बाजार में वाणिज्यिक कारोबार को संचालित करने का पक्की आढ़तके संव्यवहार एक वैधानिक तरीका है | लेकिन ऐसे संव्यवहार को सट्टे की प्रकृति का भी माना गया है |
तेजी मंदी संव्यवहार --तेजी मंदी संव्यवहारो को आरंभ मे बाजी का करार माना जाता था ,लेकिन बाद में यह धारणा परिवर्तित हो गई |
(Exception of Section 30 of the Contract Act)
लाटरी--भारतीय दण्ड संहिता की धारा 294 (क) के अंतर्गत लाटरी सम्बन्धी संव्यवहारों को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है और यही कारण किइसे पद्यम संविदा माना गया है | यदि कोई व्यक्ति लाटरी का टिकट खरीदता है और पुरस्कार जीतता है तो उस रकम को वह न्यायालय द्वारा प्राप्त नहीं कर सकता |
क्रासवर्ड पजल--यह लाटरी का ही एक रूप होता है क्योंकि इसमें जितना या हारना मात्र संयोग होता है |लेकिन लेकिन यदि ईनाम का जीता जाना मात्र संयोग पर निर्भर होकर कुशलता या बुद्धि पर निर्भर करता हो तो संव्यवहार पूर्ण रूप से मान्य समझा जायेगा |
घुड़दौड़ क्या बाजी संविदा है ?
के ० आर ० लाक्षमनन बनाम तमिलनाडु राज्य ,(1996 ) 2 एस ० सी० 226 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि घुड़दौड़ का खेल एक कौशल का खेल है ,जुआ नहीं |अतः उसे रोका नहीं जा सकता है तथा ऐसे करार शून्य नहीं होते | इसलिए घुड़दौड़ की धारा 30 का अपवाद माना जाता है |
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