निष्फलता का सिद्धांत
(Doctrine of Frustration)
अंग्रेजी विधि- इंग्लॅण्ड में संविदा का उन्मोचन निष्फलता के सिद्धांत पर आधारित है |इस विषय में अनेक विस=धि शास्त्रियों द्वारा अनेक मत दिए गए है |1863 के पहले सामान्य नियम यह था किसंविदा का कोई पक्षकार अपने दायित्वों का पालन करने के लिए बाध्य था तथा वह अपने दयित्वो से उन्मोचन का दावा इस आधार पर नहीं कर सकता था कि पालन असंभव हो गया है |टेलर बनाम काल्डवेल ,(1863 ) 3 बी ० एंड एस ० 826 के वाद में माननीय न्यायमूर्ति ब्लैकबर्नने निर्धारित किया किउपर्युक्त नियम तभी लागू होगा जबकि संविदा सकारात्मक तथा पूर्ण हो तथा किसी शर्त के अधीन न हो |
निष्फलता के आधार
न्ययालय निम्नलिखित आधारों पर इस सिद्धांत को लागू कर सकता है --
1.संविदा की विषय वास्तु का नष्ट होना --संविदा करने के पश्चात् यदि उसकी विषय वस्तु नष्ट है तो ऐसीसंविदा शून्य हो जाती है | इस सम्बन्ध में टेलर बनाम काल्डवेल ,(1863 )3 बी ० एंड एस o 826 का एक महत्वपूर्ण मामला है |इसमें प्रतिवादी ने वादी को एक संगीत भवन आमोद -प्रमोद के लिए किराये पर देने का करार किया था |परन्तु पालन की तारिख से पहले ही संगीत भवन आग से नष्ट हो गया |वादी ने प्रतिवादी के विरुद्ध संविदा भंग के लिए प्रतिकार का दावा किया |यह अभिनिर्धारित किया गया कि प्रतिवादी कोई प्रतिकार देने के लिए उउत्तरदायी नहीं था ,क्योंकि इसमें प्रतिवादी का कोई दोष नहीं था |
2.किसी विशिष्ट घटना का दोष न होना --यह संविदा के लिए आवश्यक कोई घटना नै होती तो भी संविदा का उन्मोचन हो जायेगा |
3.पक्षकार की मृत्यु या अयोग्यता --सेवा सम्बन्धी संविदाओ में वाचनदाता के मर जाने या उसके असमर्थ हो जाने पर संविदा शून्य हो जाती है |
4.परिस्थतियो में परिवर्तन --परिस्थतियो में परिवर्तन हो जाने से भी ,संविदा शून्य हो जाती है |
5.सरकार या विधायिका द्वारा हस्तक्षेप किया जाना --किसी राज्य द्वारा एकाधिकार प्रप्त करने की संविदा संबिधान के लागू होने पर शून्य हो जाती है |लिकिन एसा हस्तक्षेप अस्थायी प्राकृति का हो तथा संविदा के मूल अधिकार को प्रभावित न करती हो तो संविदा समाप्त नहीं होती |
6.युद्ध का होना -युध्द कल में नागरिको तथा युद्ध में लगे हुए राज्य के नागरिको के बीच में की संविदाये अवैध होती है |उनका कभी भी प्रवर्तन नहीं काराया जा सकता |युद्धकाल में शत्रुओ के साथ किये गये संव्यवहार प्रारम्भ से ही शून्य होते हैं बाद में शान्ति हो जाने पर भी वे शून्य तथा अप्रवर्तनीय ही रहते है |
7.विधि में परिवर्तन --यदि विधि के परिवर्तन से संविदा का पालन असंभव हो जाता है तो संविदा का उन्मोचन हो जाता है |
भारतीय विधि --भारत में उक्त सिधांत पूर्ण रूप से लागू नहीं है यहाँ इसी संविदाये धारा 32 तथा 56 के तहत नियंत्रित होती है | धारा 56 के अनुसार वह करार जो ऐसा कार्य करने के लिए स्वतः असंभव है शून्य है |
ऐसा कार्य करने की संविदा जो कि संविदा करने के पश्चात् असंभव या किसी अन्य ऐसी घटना के कारण जिसका निवारण प्रतिज्ञाकर्ता नहीं कर सकता विधिविरुद्ध हो जाती है तब शून्य हो जाती है जबकि वह कार्य असंभव या विधिविरुद्ध हो जाता है |
इसके लिए पक्षकार को निम्न लिखित बातें सिद्ध करी आवश्यक है --
1.संविदा का पालन असंभव हो गया हो |
2.असम्भवता किसी ऐसी घटना के करण है जिसे प्रतिज्ञाकर्ता रोक नही सकता था |
3.असम्भवता प्रतिज्ञाकर्ता के द्वारा या उसकी उपेक्ष्जा से नहीं हुई हो |
असम्भवता --अपालन के बहाने के रूप में असम्भवता ,सामान्य नियम के रूप में .कोई भौतिक या विधिक असम्भवता होनी चाहिए न कि केवल वाचनदाता की परिस्थतियो तथा वचन दाता के सम्बन्ध में कोई असम्भवता |
कृत्य केवल वचन दाता के लिए असंभव नहीं होना चाहिए |बल्कि स्वयं में असंभव होना चाहिए |न्यायालय को इस बात से पुर्णतः संतुष्ट होना चाहिए कि कृत्य भौतिक रूप से असंभव हो गया है |संविदा कृत्य वस्तुओ का प्रदाय करने के में कठिनाई या अधिक मूल्य दिया जाना ही संविदा के पालन को असंभव नही बना सकता |
सत्यव्रत घोष बनाम मुगनीराम, ए. आई. आर. 1954 एस. सी. 44 के मामले में न्यायालय ने मत व्यक्त किया है कि असम्भवता का अर्थ भौतिक तथा शब्दिक असम्भवता से नहीं लगाना जाना चाहिए | किसी कार्य का पालन केवल भौतिक रूप से ही असंभव नही हो जाता है बल्कि अंतिम उद्देश्य के पालन की असम्भवता से भी असम्भवता होती है | इस मामले के तथ्य इस प्रकार थे -- प्रत्यर्थी कंपनी ने भूमि विकास के लिए लोक कालोनी संस्था प्रारंभ की जिसके तहत उसने भूमि अनेक भागों में विभाजित किया और सडकें , नालियां आदि पूरा करने का उत्तरदायित्वा लिया | अपीलार्थी ने उसमे एक प्लाट ख़रीदा था | बाद में उस भूमि को जिला कलेक्टर ने रक्षा नियमों के तहत शैनिक उद्देश्य के लिए अभिप्राप्त की |
कंपनी ने करार ख़त्म कर धन वापस करने के लिए विकल्प दिया | अपीलार्थी ने करार को पूरा करने के लिए कहा तथा वाद दायर किया | कंपनी ने करार के पालन की असम्भवता का सहारा लिया | न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि संविदा का पालन असंभव नही हुआ है | क्योंकि जब भूमि अधिग्रहीत की गयी थी तब कार्य को प्रारंभ नही किया गया था अतः उसके रुकने का प्रश्न नही उठता है | इसी सिद्धांत को श्रीमती सुशीला बनाम हरीसिंह, ए. आई. आर. 1971 अस. सी. 1756 के मामले में अनुमोदित किया गया |
पालन की असम्भवता के सिद्धांत का अपवाद (Exception to the Doctrine of Impossibility of performance )--धारा 56 (3) में उक्त नियम का अपवाद भी दिया गया है जिसके अनुसार जहाँ कि एक व्यक्ति ने ऐसी कोई बात करने की प्रतिज्ञा की है जिसका असंभव या विधिविरुद्ध होना वह जानता था या युक्तियुक्ति तरीके से जाना जा सकता था और प्रतिग्रहीता नही जानता था वहां ऐसे प्रतिग्रहीता को पालन न करने के लिए प्रतिज्ञाकर्ता को प्रतिकर देना होगा |
Source: CLA, LL.B. 3 Year, First Semester, 1st Paper
LAW OF CONTRACT - I
Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University Ayodhya
Dr. RMLAU Ayodhya
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