संविदा करने का जितना महत्व है, उतना ही महत्व उसके अनुपालन का भी है | संविदा के दोनों पक्षकारों को अपने अपने भाग का अनुपालन करना होता है, और यदि कोई पक्षकार अपने भाग का अनुपालन करने में असमर्थ रहता है या चूक करता है तो वह संविदा भंग का दोषी माना जाता है | ऐसी दशा में पीड़ित पक्षकार को निम्नांकित उपचार उपलब्ध होते हैं -
(Remedies of Breach of Contract)
- संविदा के विनिर्दिष्ट अनुपालन के लिए वाद संस्थित करने का अधिकार;
- व्यादेश अर्थात निषेधाज्ञा प्राप्त करने का अधिकार;
- संविदा भंग से कारित क्षति या नुकसान के लिए प्रतिकर प्राप्त करने का अधिकार |
1. संविदा के विनिर्दिष्ट अनुपालन के लिए वाद संस्थित करने का अधिकार - संविदा भंग किये जाने पर पीड़ित पक्षकार को उपलब्ध यह प्रथम उपचार है | इसके अंतर्गत पीड़ित पक्षकार संविदा के विनिर्दिष्ट अनुपालन (Specific Performance of Contract) के लिए वाद ला सकता है |
सामान्यतः इस उपचार की मांग नही की जाती है , क्योंकि अधिकांश संविदाएं ऐसी होती हैं जिनका विनिर्दिष्ट अनुपालन नहीं करवाये जाने पर पक्षकारों को कोई विशेष क्षति नहीं होती है और आर्थिक प्रतिकर के रूप में उसकी क्षतिपूर्ति की जा सकती है | लेकिन कुछ संविदाएं ऐसी होती हैं जिनका विनिर्दिष्ट अनुपालन ही एकमात्र उपचार होता है | इनका उल्लेख विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 10 में किया गया है | ऐसी संविदाएं निम्नांकित हैं --
- जहाँ क्षतिपूर्ति के निर्धारण के लिए मापदण्ड का अभाव हो ;
- जहाँ आर्थिक प्रतिकर पर्याप्त अनुतोष नहीं हो;
- जहाँ आर्थिक प्रतिकर प्राप्त करना असंभव हो |
इनके विपरीत कुछ संविदाएं ऐसी हैं जिनके विनिर्दिष्ट अनुपालन का आदेश नही दिया जाता | इनका उल्लेख विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 14 में किया गया है | ऐसी संविदाएं निम्नलिखित हैं -
- जहाँ आर्थिक प्रतिकर पर्याप्त अनुतोष हो ;
- जहाँ व्यक्तिगत सेवाएं अंतर्ग्रस्त हों;
- जहाँ न्यायालय का निरंतर पर्यवेक्षण आवश्यक हो , आदि |
2. व्यादेश अर्थात निषेधाज्ञा प्राप्त करने का अधिकार (Right to Injunction )- संविदा भंग के मामलों में उपलब्ध दूसरा उपचार व्यादेश अर्थात निषेधाज्ञा का है | इसका मुख्या लक्ष्य किसी पक्षकार को वह कार्य करने के लिए बाध्य करना अथवा किसी कार्य विशेष को नहीं करने का आदेश देना है जिसका किया जाना अथवा नहीं किया जाना उसका कर्तव्य है |व्यादेश भी चार प्रकार के होते हैं --
- स्थायी व्यादेश ;
- अस्थायी व्यादेश ;
- निषेधात्मक व्यादेश ; एवं
- समादेशात्मक व्यादेश |
व्यादेश के बारे में विस्तृत व्याख्या सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 तथा विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 36 से 42 तक में की गयी है |
3. संविदा भंग से कारित क्षति या नुकसान के लिए प्रतिकर करने का अधिकार (Right to damages or compensation for breach of contract) - तीसरा एवं महत्वपूर्ण उपचार है | इसके अंतर्गत संविदा भंग से पीड़ित व्यक्ति दोषी व्यक्ति से प्रतिकर प्राप्त करने के लिए वाद संस्थित कर सकता है | इस सम्बन्ध में भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 73 से 75 तक की धाराओं में प्रावधानों को उल्लिखित किया गया है क्षति या नुक्सान के लिए प्रतिकर प्राप्त करने हेतु वाद लाने के लिए दो बातें आवश्यक हैं -
- जो ऐसी घटनाओं के प्रायिक अनुक्रम में प्रकृत्या ऐसे भंग से उद्भूत हो , जिसका संविदा भंग का संभाव्य परिणाम होना पक्षकार उस समय जानते थे जब उन्होंने संविदा की थी ;
- जो भंग के कारण हुई दूरस्थ और परोक्ष (remote and indirect) हानि या नुक्सान नहीं हो |
संविदा भंग के लिए क्षतिपूर्ति के मामलों में 'क्षति' (damages) को साबित किया जाना आवश्यक है | इसके अभाव में परिनिर्धारित क्षतिपूर्ति का क्लेम किया जा सकता है | (विशाल इंजीनियर्स एंड विल्डर्स बनाम इंडियन आयल कारपोरेशन लि० , ए० आइ० आर० 2012 एन० ओ० सी० 165 दिल्ली )
Source: CLA, LL.B. 3 Year, First Semester, 1st Paper
LAW OF CONTRACT - I
Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University Ayodhya
Dr. RMLAU Ayodhya
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