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प्रश्न - स्थायी निषेधाज्ञा अथवा व्यादेश कब जारी किया जा सकता है? अस्थायी तथा स्थायी व्यादेश अथवा निषेधाज्ञा में अंतर बताइए |

 

स्थायी व्यादेश अथवा निषेधाज्ञा 
(Perpetual Injunction)

        विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 38 स्थायी व्यादेश के सम्बन्ध में प्रावधान करती है | डिक्री के ऊपर में स्थायी व्यादेश उस समय जारी किया जा सकता है जब वाद के गुणों के आधार पर दोनों पक्षों को सुनने के बाद निपटाया जाता है | इसके द्वारा प्रतिवादी को स्थायी रूप से यह आदेश दिया जाता है कि वह अपने अधिकारों का प्रयोग या किसी कार्य को इस प्रकार से न करे, जिससे वादी के अधिकारों का हनन होता हो |

perpetualinjunction



निषेधाज्ञा अथवा स्थायी व्यादेश कब जारी किया जा सकता है ?
(When Perpetual Injunction can be issued)

        स्थायी व्यादेश निम्नलिखित स्थिति में जारी किया जा सकता है --
    1- इस अध्याय में वर्णित या इसके द्वारा निर्दिष्ट अन्य उपबंधों के अधीन स्थायी व्यादेश वादी के पक्ष में अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से विद्यमान आभार की भग्नता का निवारण करने के लिए प्रदान किया जा सकेगा |

    2- जबकि ऐसा आभार संविदा से उत्पन्न हुआ है तब न्यायालय इस अधिनियम के अध्याय II में दिए गए नियमों व उपबंधों में दिग्दर्शित होगा |

    3- जब प्रतिवादी वादी के संपत्ति सम्बन्धी अधिकार में या संपत्ति के उपभोग में हस्तक्षेप करेगा, हस्तक्षेप करने की धमकी दे तो न्यायालय निम्न दशाओं में शाश्वत व्यादेश जारी कर सकेगा -
  1. जहाँ वादी प्रतिवादी की संपत्ति का न्यासधारी हो |
  2. जहाँ हस्तक्षेप पहुंचाए गए या पहुंचाए जा सकने वाले वास्तविक नुकसान का निर्धारण करने के कोई निश्चित मापदंड नहीं हों |
  3. जहाँ हस्तक्षेप ऐसा है कि आर्थिक प्रतिकार पर्याप्त अनुतोष नहीं होगा |
  4. हाँ न्यायिक कार्यवाहियों के बाहुल्य को रोकने के लिए व्यादेश आवश्यक हो |
इसके अतिरिक्त भी किसी संपत्ति के सम्बन्ध में स्थायी व्यादेश तभी जारी किया जा सकता है जब वादी यह साबित कर दे कि विवादग्रस्त संपत्ति उसके वास्तविक कब्जे में है |

        मांगीलाल वेणीराम जी कूलम्बी बनाम मांगी लाल सवाजी कूलम्बी (एo आईo आरo 2012 एनo ओo सीo 357 मध्य प्रदेश ) के मामले में वादी पिछले 47 वर्षों से प्रतिवादी के कुएं से पानी ले रहा था | प्रतिवादी द्वारा उसे रोकने का प्रयास किया गया | न्यायालय ने वादी को प्रतिवादी के कुएं से पानी लेने का हक़दार मानते हुए शाश्वत व्यादेश जारी किया |


अस्थायी तथा स्थायी निषेधाज्ञा अथवा व्यादेश में अन्तर 
(Difference between temporary and perpetual injunctions) 


क्र.स.

अस्थायी व्यादेश या निषेधाज्ञा

स्थायी व्यादेश या निषेधाज्ञा

1

यह वाद दायर करने के बाद किसी भी अवस्था में प्रदान किया जा सकता है |

यह तब ही प्रदान किया जाता है जब वादी ने अपने पक्ष में अधिकार के अस्तित्व को सिद्ध कर दिया हो |

2

यह आदेश से प्रदान किया जाता है |

यह आज्ञप्ति द्वारा ही प्रदान किया जा सकता है |

3

यह वाद के अंत तक ही रहता है |

यह पक्षकारों के अधिकारों का निर्णय है तथा प्रतिवादी को शिकायत किये गए कार्य करने से रोकता है |

4

यह अस्थायी प्रकार का उपचार है |

यह वास्तव में आज्ञप्ति है तथा यह स्थायी उपचार है |

5

इसका उद्देश्य वाद के दौरान विवादित संपत्ति को यथास्थिति रखना होता है |

इसका उद्देश्य वादी के अधिकार की रक्षा करना है |

6

यह व्यव्हार प्रक्रिया संहिता से निगमित हिता है |

यह विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 38 से 42 तक से निगमित होता है |

 

Source: CLA,

LAW OF CONTRACT- I

THE SPECIFIC RELIEF ACT 1963

DR. RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA

DR. RMLAU, AYODHYA

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