सामान्यतः संविदाएं पक्षकारों के कार्य का परिणाम होती हैं | पक्षकार ही किसी बात को करने या करने से प्रविरत रहने का करार करते हैं और उन्ही पर उसके अनुपालन का दायित्वा रहता है | लेकिन कभी कभी पक्षकारों के बीच प्रत्यक्ष रूप से ऐसा कोई करार नही किया जाता है , फिर भी उसके बीच किये गये अथवा किये जाने वाले आचरण से ऐसे दायित्व उत्पन्न हो जाते हैं , जैसे की किसी संविदा से उत्पन्न होते हैं | विधि में ऐसी संविदाओं को विभिन्न नामों से सम्बोधित किया जाता है जैसे -
- आभासी संविदा ,
- ग्रभित संविदा ,
- संविदा - कल्प ,
- विवक्षित संविदा आदि |
कल्प संविदा या आभासी संविदा की परिभाषा
आभासी संविदा को विभिन्न विधिशास्त्रियों के द्वारा परिभाषित किया गया है , यथा -
1. पोलक-(Pollock) के अनुसार - "आभासी संविदाएं वे संविदाएं हैं जिनमे विषय क्षेत्र का काल्पनिक विस्तार होने के कारण ऐसे कर्तव्यों का आवरर्तन होता है जो वास्तव में इसके अंतर्गत नही आते हैं | अतः यह तथ्यतः संविदाएं नही हैं , किन्तु विधिक संविदाएं हैं "
2.विनफील्ड (Winfield) के अनुसार -- "आभासी संविदा एक ऐसा दायित्व है जो विधि के किसी शीर्षक के अंतरर्गत पूर्णतया निर्देशित करने योग्य नहीं है तथा किसी विशिष्ट व्यक्ति को अनुचित लाभ के आधार पर धन के लिए आरोपित किया जाता है |"
भारतीय संविदा अधिनियम के अंतरर्गत संविदा कल्प
जिन संविदाओं को आंग्ल विधि में "संविदा कल्प" (Quasi-contracts) कहा जाता है , उन्ही को भारतीय विधि में संविदा द्वारा सृजित संबंधों के सदृश उत्तरदायित्वा उत्पन्न करने वाले सम्बंधों के नाम से सम्बोधित किया जाता है इसका उल्लेख अधिनियम की धारा 68 से 72 तक में किया गया है |
1. संविदा करने के लिए असमर्थ व्यक्ति को या उसके लेखे प्रदाय की गयी आवश्यक वस्तुवों के लिए दावा (Necessaries supplied to a person incapable of contracting)- धरा 68 के अनुसार वह व्यक्ति जो किसी ऐसे व्यक्ति को जो संविदा करने में असमर्थ है या किसी ऐसे व्यक्ति को जिसके पालन - पोषण के लिए वह वैध रूप से आबद्ध हो, जीवन में उसकी स्थिति के योग्य आवश्यक वस्तुएं प्रदाय करता है , उस असमर्थ व्यक्ति को सम्पत्ति से प्रतिपूर्ति पाने का हकदार होता है | (धारा 68)
उदाहरण
एक लेनदार किसी अवस्यक व्यक्ति को उसकी आवश्यकता के लिए दिए गये उधार धन को उस अवस्यक व्यक्ति की संपत्ति से पुनः प्राप्त करने का हक़दार होता है |
यह इस सामान्य नियम का कि"अवस्यक के साथ की गयी संविदा पूर्ण रूप से शून्य होती है " का एक उपवाद है |
2. उस व्यक्ति की प्रतिपूर्ति जो किसी अन्य द्वारा शोध्य ऐसा धन देता है जिसके संदाय में वह व्यक्ति हितबद्ध है (Payment made on behalf of another) - धारा 69 के अनुसार जब कोई व्यक्ति किसी धन का संदाय करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध (Bound of Law ) है, वह ऐसा धन संदाय नही करता है, तब वह व्यक्ति जो ऐसे संदाय में हितबद्ध है , संदाय कर देता है , उस व्यक्ति से जो विधि द्वारा आबद्ध है , प्रतिपूर्ति पाने का हकदार है |
उदहारण
सरकारी राजस्व के बकाया की वसूली में 'क' का माल गलत रूप से कुर्क कर लिया जाता है | 'क' अपने माल को कुर्क होने से बचाने के लिए 'ख' द्वारा शोध्य रकम का संदाय करता है |'क' 'ख' से प्रतिपूर्ति पाने का हकदार है |
3. अनुग्रहीत न करने का आशय रखते हुए परिदत्त वस्तु का फायदा उठा लेने पर (Obligation of person enjoying benefit of non-gratuitous act ) - धारा 70 के अनुसार, जहाँ कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई बात विधिपूर्वक करता है और उसका आशय उसे आनुग्रहिकतः (Gratuitous) अर्थात निशुल्क करने का नही रहता है , और वह पश्चात कथित व्यक्ति उसका फायदा उठा लेता है , वहां वह पूर्वकथित व्यक्ति पश्चात कथित व्यक्ति से प्रतिकार प्राप्त करने का हकदार होता है |
अधिनियम की धारा 70 के अंतर्गत क्वान्टम मेरियट का सिद्धांत सन्निहित है |
इस प्रकार यह व्यवस्था भी साम्य एवं न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है | ऐसे सिद्धांत प्रत्यावर्तन एवं अन्यायपूर्ण समृद्धि के निवारण के साम्यिक सिद्धांत हैं |
उदहारण
एक व्यापारी 'क' कुछ माल 'ख' के गृह पर भूल से छोड़ जाता है | 'ख' उस माल को अपने माल के रूप में बरतता है | उसके लिए 'क' को संदाय करने के लिए वह आबद्ध है | लेकिन जहाँ 'ख' की संपत्ति को 'क' आग से बचाता है और परिस्थितियाँ दर्शित करती हैं कि 'क' का आशय आनुग्रहिकतः कार्य करने का था , तो वह 'क' 'ख' से प्रतिकर पाने का हकदार नहीं है |
4.पड़ा हुआ माल पाए जाने पर (Finder of goods) - धारा 71 के अनुसार जहाँ किसी व्यक्ति को कोई पीडीए हुआ माल मिलता है , वहां वह उस माल के प्रति उपनिहिती हो जाता है और उस माल के सम्बन्ध में उसका वही उत्तरदायित्व होता है जो उपनिहिती का होता है |
ऐसे मामलों में सामान्यतः उपनिहिती का यह उत्तरदायित्व होता है कि वह ऐसे माल के प्रति वैसी ही सतर्कता एवं सावधानी बरतें जैसी मामूली प्रज्ञा वाला | व्यक्ति वैसी ही परस्थितियों में अपने ऐसे माल के प्रति बरतता है |
5. भूल या प्रपीडन के अधीन धन आदि का संदाय किये जाने पर (Money paid of things delivered under mistake or coercion) -धारा 72 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति भूल से या प्रपीडन के अधीन कोई धन संदत्त करता है या किसी चीज़ का परिदान कर देता है तो वह ऐसे धन या चीज को पुनः प्राप्त करने का हकदार होता है |
उदहारण
'क' और 'ख'सयुंक्त रूप से 'ग' के 1000 रुपये के देनदार है |अकेला 'क' ही 'ग' को वह रकम संदत्त करा देता है और इस तथ्य को न जानते हुए 'ग' को 'ख'1000 रुपये फिर संदत्त करा देता है |इस रकम को 'ख' को प्रति संदाय करने के लिए 'ग' आबद्ध है |
धारा 72 के अन्तर्गत धन या वस्तु को वापस लौटने के आधार अन्याय पूर्ण समृद्धि का सिद्धांत है |
मेसर्स सहकारी खांड उद्योग मण्डल लि० बनाम कमिश्नर ऑफ़ सेन्ट्रल एक्साइज़ एंड कस्टम्स ,ए ० आई ० आर ० 2005एस ० सी० 1897में उच्चतम न्यायालय ने यह अवलोकन किया है कि अन्य्यापूर्ण समृद्धि का सिद्धान्त है इस आधार पर अनुदोष प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि वादी या (अपील कर्ता ) यह साबित करे कि उसने उस धन का जिसके लिए वह अनुतोष मांग रहा है नहीं प्रदान किया गया तो हानि सहन करनी पड़ेगी |
परन्तु हुडा तथा अन्य बनाम बालेश्वर कनवरतथा अन्य ,ए ० ई ० आर ० 2005 एस० सी ० 1491 में इस आधार पर विकाश प्राधिकरण ने धन जब्त कर लिया था कि प्रार्थी ने आवंटित भूमि स्वीकार नहीं किया एवं स्वीकार न किये जाने की संसूचना देने में एक महीने से अधिक देरी की | उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णीत किया कि संसूचना में देरी इसलिए प्रत्यार्थी ने किया था क्योकि डाकघर में छुट्टी थी और विकास कार्यालय का प्राधिकरण बंद था |अतः प्र्त्यार्थी ने 9 प्रतिशत ब्याज सहित अग्रिम धन पाने का अधिकार है |
चंडीप्रसाद उनियल बनाम स्टेट आफ उत्तराखंड (ए ० आइ० आर ० 2012 एस ० सी० 2951 )केमामले में कर्मचारी को अतिरिक्त भुगतान कर दिए जाने को उच्चतम न्यायालय ने अयुक्तियुक्त लाभ मानते हुए उसे पुनः वसूल किये जाने योग्य बताया |
Source: CLA, LL.B. 3 Year, First Semester, 1st Paper
LAW OF CONTRACT - I
Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University Ayodhya
Dr. RMLAU Ayodhya
0 टिप्पणियाँ