समाश्रित या सांयोगिक संविदा की परिभाषा
(Definition of Contingent Contract)
संविदा अधिनियम की धरा 31 के अनुसार-
"समाश्रित संविदा वह संविदा है जो ऐसी किसी संविदा से साम्पर्श्विक किसी घटना के घटित होने या न घटित होने पर ही किसी बात को करने या न करने के लिए हो |"
("A Contingent contract is a contract to do or not do something, if some event, collateral to such contract, does or does not happen)."
उदाहरण- 'ख' से 'क' संविदा करता है कि यदि 'ख' का गृह जल जाये तो यह 'ख' को 10,000 रूपये देगा | यह समाश्रित संविदा है |
समाश्रित संविदा की अनिवार्य शर्तें
(Essential conditions of contingent contract)
1- घटना का अनिश्चित प्रकृति का होना; एवं
2- उसका संविदा से साम्पर्श्विक होना |
शब्द 'किसी घटना से साम्पर्श्विक' का अभिप्राय, घटना का संविदा के प्रतिफल का भाग नहीं होना, अपितु उससे स्वतंत्र होना है |
वादी एवं प्रतिवादियों में से एक प्रतिवादी के बीच यह करार होता है कि प्रतिवादियों के कब्जे में की कतिपय भूमि से सम्बंधित वाद में यदि वादी सफल रहता है तो वह उसे 300 रूपये में क्रय करेगा | यह समाश्रित संविदा है |
समाश्रित संविदा का पालन कब हो सकता है ?
(When can a contingent contract be enforced)
अधिनियम की धारा 32 से 36 तक में समाश्रित संविदाओं के प्रवर्तन सम्बन्धी नियमों का उल्लेख किया गया है |
1- किसी घटना के घटने पर - धारा 32 में ऐसी संविदाओं का उल्लेख किया गया है | जिसका प्रवर्तन भविष्य में किसी घटना के घटित हो जाने पर निर्भर करता है | यदि ऐसी घटना घटित हो जाती है तो संविदा का प्रवर्तन, किया जा सकता है, अन्यथा नहीं | यदि घटना का घटित होना असंभव हो तो संविदा शून्य हो जाती है |
जहाँ पक्षकार भलीभांति समझ कर यह करार करते हैं कि किसी अन्य व्यक्ति को भी उसका पक्षकार बनाया जाये , वहां उनके बीच तब तक कोई संविदा नहीं मानी जाएगी जब तक कि अन्य व्यक्ति करार में सम्मिलित नहीं हो जाता |
इस प्रकार विधि किसी घटना के घटित हो जाने पर किसी समाश्रित संविदा का प्रवर्तन अनुज्ञात करती है |
2- किसी घटना के न घटने पर- धारा 33 में धारा 32 के विपरीत प्रावधान किया गया है | धारा 32 के अधीन जहाँ किसी समाश्रित संविदा का प्रवर्तन किसी भावी अनिश्चित घटना के घटित हो जाने पर निर्भर करता है, वहां धारा 33 के अधीन ऐसा प्रवर्तन किसी अनिश्चित घटना के घटित नहीं होने पर अर्थात उसके असंभव हो जाने पर निर्भर करता है | ज्योंही ऐसी घटना का घटित होना असंभव हो जाता है , संविदा प्रवर्तनीय हो जाती है |
उदाहरण -
यदि 'क' करार करता है कि अमुक पोत वापस न आये तो वह 'ख' को एक धनराशि देगा | वह पोत डूब जाता है | संविदा का प्रवर्तन पोत के डूब जाने पर कराया जा सकता है |
3- किसी विशिष्ट घटना के नियत समय में न होने पर समाश्रित - किसी उल्लिखित अनिश्चित घटना के नियत समय के भीतर न होने पर किसी बात को करने या न करने की समाश्रित संविदा का अनुपालन, जबकि नियत समय का अवसान हो चूका है और ऐसी घटना घटित नहीं हुई है या नियत समय के अवसान से निश्चित हो जाता है कि ऐसी घटना नहीं होगी , विधि द्वारा कराया जा सकेगा |
कब समाश्रित संविदा शून्य होती है?
(When a contingent contract becomes void)
निम्नलिखित परिस्थितियों में समाश्रित संविदा शून्य होती है --
1- जब घटना असंभव हो जाती है- धारा 32 के अनुसार किसी अनिश्चित भावी घटना के घटित होने पर किसी बात को करने या न करने की समाश्रित संविदाएं शून्य हो जाती हैं यदि घटना असंभव हो जाती है |
उदाहरण -
'क' यह संविदा करता है कि जब 'ख' , 'ग' से विवाह कर लेगा तो 'क' 'ख' को एक धनराशि देगा | 'ग' 'ख' से विवाहित हुए बिना मर जाता है | संविदा शून्य हो जाती है |
2- विशिष्ट घटना के नियत समय के भीतर न होने से - किसी उल्लिखित अनिश्चित घटना के नियत समय के भीतर न होने पर किसी बात के करने या न करने की समाश्रित संविदा यदि नियत समय के अवसान पर ऐसी घटना होती है या यदि नियत समय से पूर्व ऐसी घटना असंभव हो जाती है, शून्य हो जाती है |
उदाहरण -
'क' वचन देता है कि यदि अमुक पोत एक वर्ष के भीतर वापस आ जाये तो वह 'ख' को एक धनराशि देगा | यदि पोत उस वर्ष के भीतर वापस आ जाये तो संविदा का प्रवर्तन कराया जा सकेगा और यदि पोत उस वर्ष के भीतर जल जाये तो संविदा शून्य हो जाएगी |
3- असंभव घटनाओं पर आश्रित करार- धारा 36 में यह प्रावधान किया गया है कि जहाँ किसी करार के अधीन किसी असंभव घटना के घटित होने पर ही कोई कार्य किया अथवा न किया जाना हो, वहां ऐसा करार शून्य होगा | यह उचित भी है, क्योंकि जब घटना का घटित होना ही असंभव हो वहां भला उस घटना पर आश्रित करार का प्रवर्तन कैसे कराया जा सकता है | विधि किसी व्यक्ति को असंभव कार्य करने को बाध्य नहीं करती |
समाश्रित संविदा तथा बाजी की संविदा में अंतर
(Differences between contingent contract and wagering contract)
1- समाश्रित संविदा- समाश्रित संविदा पूर्णतया वैधानिक होने से सामान्यतः न्यायालय द्वारा उनका प्रवर्तन कराया जा सकता है |
1- बाजी की संविदा- बाजी के करार न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है |
2- समाश्रित संविदा- समाश्रित संविदा एक पूर्ण संविदा होने से पक्षकार अपने वचनों का पालन करते हुए संविदा का अनुपालन करते हैं |
2- बाजी की संविदा- बाजी के करारों में पक्षकारों का उद्देश्य किसी घटना के घटने या न घटने पर कुछ धनराशि लेने या देने मात्र का होता है |
3- समाश्रित संविदा- समाश्रित संविदा में केवल एक पक्षकार ही दूसरे पक्षकार को कुछ करने या न करने का वचन देता है |
3- बाजी की संविदा- बाजी के करार में दोनों ही पक्षकार एक दूसरे को वचन देते हैं |
4- समाश्रित संविदा- समाश्रित संविदा में किसी भी पक्षकार की हार जीत नहीं होती |
4- बाजी की संविदा- बाजी के करार का आधार ही एक पक्ष की जीत तथा दूसरे पक्ष की हार का होता है |
Source: CLA, LLB 3 Year , 1st Semester, 1st Paper
LAW OF CONTRACT - I
Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University, Ayodhya
Dr. RMLAU Ayodhya
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