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प्रश्न - संविदा का नवीनीकरण, नवीनीकरण की अनिवार्य शर्तें तथा क्वान्टम मेरियट (Quantum Meruit) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए |

 संविदा का नवीनीकरण 
(Novation of Contract)

नवीनीकरण का अर्थ-   नवीनीकरण से अभिप्राय है पुराणी संविदा के स्थान पर नई संविदा का प्रतिस्थापित किया जाना | जब किसी संविदा के पक्षकार पारस्परिक सम्मति से पुरानी संविदा के स्थान पर कोई नई संविदा कर लेते हैं तो इसे 'संविदा का नवीनीकरण' कहा जाता है | दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि संविदा की तह में जाकर उसमें सारभूत परिवर्तन किया जाना संविदा का नवीनीकरण है |
novationofcontractandquantummeruit


    उदाहरण-
                'क' एक संविदा के अधीन 'ख' को धन का देनदार है | 'क' 'ख' और 'ग' के बीच यह करार होता है कि 'ख' अब 'क' के बजाय 'ग' को अपना ऋणी मानेगा | 'क' पर 'ख' के पुराने ऋण का अंत हो गया और 'ग' पर 'ख' के नए ऋण की संविदा हो गयी |

        नवीनीकरण सम्बन्धी नियम - भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 62 के अंतर्गत किसी संविदा के नवीनीकरण के सम्बन्ध में मुख्यतया 3 नियम है -
  1. दोनों संविदा के पक्षकार वाही हो सकते हैं और पुराणी संविदा के स्थान पर नई संविदा कर सकते हैं |
  2. नई और पुरानी दोनों संविदाओं की शर्ते वही हो सकती है, पर पुराने पक्षकारों के स्थान पर नए पक्षकार आ सकते हैं |
  3. जब संविदा का नवीनीकरण हो जाता है तब पुरानी संविदा पूर्णतः समाप्त हो जाती है और उसके आधार पर कोई भी दावा नहीं किया जा सकता |
नवीनीकरण की अनिवार्य शर्तें 
(Essential conditions of Novation)
किसी संविदा के नवीनीकरण के लिए निम्नांकित शर्तों का पूरा होना आवश्यक है -
  1. पुरानी संविदा का विद्यमान होना;
  2. पुरानी संविदा के अधीन दायित्वों का अस्तित्व होना;
  3. नवीनीकरण के लिए पक्षकारों का सहमत होना;
  4. नई संविदा के अधीन दायित्वों के सृजन के लिए पक्षकारों का सहमत होना; एवं
  5. नई संविदा का विद्यमान होना |
    किसी संविदा का नवीनीकरण पुरानी संविदा के विद्यमान रहते हुए ही हो सकता है | पुरानी संविदा के भंग होने के पश्चात् संविदा का नवीनीकरण नहीं हो सकता |

        संविदा के नवीनीकरण का प्रश्न वहां उठता है जहाँ संविदा के पक्षकार मूल संविदा के स्थान पर नई संविदा कर लेते हैं या मूल संविदा को विखंडित करते हैं या उसमे परिवर्तन कर देते हैं | लेकिन जहाँ किसी संविदा की मात्र एक शर्त को रूपांतरित किया जाता है और बाकी सभी शर्तों को यथावत रहने दिया जाता है , वहां यह नहीं कहा जायेगा कि पक्षकारों ने मूल संविदा प्रतिस्थापित कर दी है |

मेo पूर्वांचल केबल्स एण्ड कंडक्टर्स प्राo लिo बनाम  आसाम स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड ( एo आईo आरo 2012 एसo सीo 3167) के मामले में संविदा के नवीनीकरण को उच्चतम न्यायालय द्वारा विधि एवं तथ्य का मिश्रित प्रश्न माना गया और यह कहा गे कि इसे प्रथम बार उच्चतम न्यायालय में नहीं उठाया जा सकता |

क्वान्टम मेरियट
(Quantum Meruit)
        आभासी संविदाओं में प्रतिपूर्ति के मामलों के सन्दर्भ में अभिव्यक्त 'क्वान्टम मेरियट' का एक महत्वपूर्ण स्थान है | यह आंग्ल विधि का एक आधार सूत्र है, जिसका अर्थ है- "किये गए कार्यों के अनुपात में |" जहाँ कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से पारिश्रमिक तय किये बिना अपने लिए कोई कार्य करने का अनुरोध अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से करता है , लेकिन अनुरोध की परिस्थितियों में यह लगता है कि किये गए कार्य का मूल्य दिया जायेगा , तो ऐसी अवस्था में किये गए कार्य के लिए युक्तियुक्त पारिश्रमिक देने की विवक्षित प्रतिज्ञा होती है | यही क्वान्टम मेरियट का सार है |

        क्वान्टम मेरियट का सिद्धांत भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 70 में सन्निहित है | इस धारा के अनुसार, "जहाँ कि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई बात या उसे किसी चीज का परिदान आनुग्रहिकतः करने का आशय न रखते हुए विधिपूर्वक करता है और ऐसा अन्य व्यक्ति उसका फायदा उठाता है वहां वह पश्चातकथित व्यक्ति उस पूर्वकथित व्यक्ति को ऐसी की गयी बात या परिदत्त चीज के बारे में प्रतिकर देने या उससे प्रत्यावर्तित करने के लिए आबद्ध है |"

दृष्टान्त 
(क) एक व्यापारी 'क' कुछ माल 'ख' के गृह पर भूल से छोड़ जाता है | 'ख' उस माल को अपने माल के रूप में बरतता है | उसके लिए 'क' को संदाय करने के लिए वह आबद्ध है |
(ख) 'ख' की संपत्ति को 'क' आग से बचाता है | यदि परिस्थितियां दर्शित करती हो कि 'क' का आशय आनुग्रहिकतः कार्य करने का था, तो वह 'ख' से प्रतिकर पाने का हकदार नहीं है |

        परन्तु क्वान्टम मेरियट सूत्र ऐसे मामलों में लागू नहीं होता है , जहाँ कोई संविदा -
  1. सम्पूर्ण कार्य के लिए हो;
  2. अविभाज्य हो; या
  3. पक्षकार ने उसका केवल एक भाग ही पूरा किया हो और शेष भाग का पूरा किया जाना असंभव हो गया हो |
        पूरनलाल शाह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, एo आईo आरo 1971 एसo सीo 712 के मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि क्वान्टम मेरियट का सिद्धांत भारत में भी अपनाया जाता है | 

        आलोपी प्रसाद एण्ड संस बनाम भारत संघ, एo आईo आरo 1960 एसo सीo 588 के मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि क्वान्टम मेरियट में प्रतिकर तभी दिया जाता है जबकि कोई  कार्य जो सेवा की गई है उसके लिए कोई दर निश्चित न हो | ऐसा निश्चित है तो क्वान्टम मेरियट का दावा नही किया जा सकता है |

           क्वान्टम मेरियट के सम्बन्ध में स्टेट आफ जम्मू एंड कश्मीर बनाम बसन्त राय अमरेश पारीख, 1978 कश्मीर एल० जे० 13 का एक महत्वपूर्ण मामला है | इसमे प्रतिवादी अपनी कुछ मशीनरी को जितना शीघ्र हो सके बम्बई से श्रीनगर ले जाना चाहता था | उसने अपने अभिकर्ता एव कर्मचारियो से सम्पर्क स्थापित किया, लेकिन वे या तो अत्यधिक दर के कारण या किसी अन्य कारण से सहमत नही हुए |अन्त में वादी के साथ प्रति ट्रक जिसमे 250 टन भार ले जाया जा सकता था, 2,900 रूपये में सौदा तय हुआ | यह अभिनिधार्रित किया गया कि वादी प्रति ट्रक 2,900 रूपये प्राप्त करने का हकदार था | 

Source: CLA, LL.B. 3 Year, 1st Semester, 1st Paper

LAW OF CONTRACT - I

Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University, Ayodhya

Dr. RMLAU Ayodhya
  

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