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प्रश्न - भूल किसे कहते है ? तथ्य की भूल का संविदा का पर क्या प्रभाव पड़ता है ? संविदा अधिनियम के अधीन भूल से सम्बंधित विधि की विवेचना कीजिए |

             

                साधारण भाषा में किसी बात के बारे में त्रुटि पूर्ण विश्वास को हम भूल या गलती कहते है | किसी संव्यवहार के सम्बन्ध में  जहाँ ऐसा त्रुटिपूर्ण विश्वास होता है वहाँ  सम्मति स्वतंत्र नहीं होती है  |


MISTAKE

भूल का वर्गीकरण 
(Classification of mistake)

अंग्रेजी विधि के अनुसार भूल को निम्नलिखित तीन कोटियों में विभाजित किया गया है --

1.सामान्य भूल -- इस प्रकार की भूल में दोनो पक्षकारो के द्वारा समान भूल की जाती है | प्रत्येक पक्षकार दूसरे  के आशय को जनता तथा  स्वीकार करता है परंतु मौलिक तथ्य के विषय में दोनों पक्षकार भूल जाते है | 

2.पारस्परिक भूल -- इस प्रकार को भूल में पक्षकार एक दूसरे को गलत समझते है तथा उद्देश्य के विषय में भूल जाते है |

3.एकाकी भूल -- जहाँ केवल एक पक्षकार भूल करता है तथा दूसरा पक्षकार उस भूल को जानता है वहां एकाकी भूल कहलाती है |

विधि की भूल एवं तथ्य की भूल --संविदा अधिनियम के अंतर्गत तथ्य की भूल से प्रभावित संविदा को शून्यकरणीय  संविदा (Voidable Contract)करार दिया जा सकता है न कि विधि की भूल के  आधार पर | संविदा अधिनियम की धारा 21 में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि ऐसी विधि के बारे में उल्लेख जो कि भारत में प्रभावशील है ,के कारण हुई संविदा को शून्यकरणीय  संविदा नहीं माना जायेगा |

    भारतीय विधि  - भारतीय संविदा अधिनियम में धाराये 20,21तथा 22 में भूल से सम्बंधित विधि का उल्लेख किया गया है |

तथ्य की भूल
(Mistake of facts)

1.सम्मति का आभाव -इस प्रकार की भूल निम्नलिखित तीन प्रकार की हो सकती है --

(1)व्यक्ति की पहचान से सम्बंधित भूल --जहा कोई व्यक्ति अपने आपको अन्य व्यक्ति के रूप में निरुपित करते हुए किसी व्यक्ति से कोई संविदा कर लेता है ,वहां पक्षकार के सम्बन्ध में भूल होना कहा जाता है |

    इस सम्बन्ध में कुण्डी बनाम लिंडसे ,(1873) 3 ए ० सी ० 459का एक महत्त्वपूर्ण मामला है | इसमें एक फर्म ने वास्तविक व्यक्ति की पहचान में भूल करके एक गलत व्यक्ति को ,जो उसी नाम का था ,कुछ सामान  उधार भेज दिया और उसने तुरंत वह सामान किसी और को बेंच कर विक्रेता फर्म को भेजने के बजाय अपने पास रख लिया | कालांतर में फर्म ने जब सामान की कीमत के लिए अंतिम क्रेता पर दावा किया तब न्यायालय  ने गलत व्यक्ति के साथ फर्म द्वारा की गई संविदा को पक्षकार की पहचान की भूल के आधार पर निरस्त करते  हुए अंतिम क्रेता को माल की कीमत  उसके वास्तविक स्वामी फर्म को चुकाने का आदेश दिया |

    फिलिप्स बनाम ब्रुक्स,(1878) 3 के० बी ० 243 का मामला --इसमें नार्थ नमक एक ठग एक जौहरी की दुकान में गया और कुछ आभूषण चुनने के बाद उसने अपने आपको सर जार्ज  बुल्लो बताते हुए चैक द्वारा उनका भुगतान किया | जौहरी सर जार्ज बुल्लो के नाम से परिचित था ,लेकिन उन्हें कभी देखा नहीं था | नार्थ ने  आभूषणों को एक अन्य व्यक्ति के पास गिरवी रख दिया | यह अभिनिर्धारित किया गया कि आभूषणों को गिरवी रखने वाले व्यक्ति से वापस नहीं लिया जा सकता था ;क्योंकि उसमे ठग नार्थ जौहरी के नाम सामने उपस्थित था ,जिसे पहचाना जा सकता था ,इसलिए यहाँ पक्षकार के सम्बन्ध में कोई भूल नहीं थी | हाँ कपट एवं दुर्व्यपदेशन  अवश्य था |

    (2) विषयवस्तु  की पहचान सम्बंधी भूल --जहाँ संविदा के दोनों पक्षकार संविदा की विषयवस्तु  के अस्तित्व पहचान ,कीमत या अन्य किसी आवश्यक बात के बात के बारे में भूल के अधीन रहे हों ,वहां संविदा शून्य होती है |        

इस सम्बन्ध में रेफिल्स बनाम विकिल हाउस,  (1864)  159 ई० आर ० 375 का एक रोचक मामला है | इसमें बम्बई के बंदरगाह पर कुछ समय आगे -पीछे आने वाले एक ही नाम के दो जहाजों से रुई आने वाली थी | रुई के एक क्रेता ने पहले ,आने वाली जहाज की रुई का क्रय करने के लिए उसके स्वामी से संविदा की जब कि रुई के स्वामी के मन में सौदा करते समय दूसरे जहाज से आने वाली रुई का विक्रय करने की बात थी ,जिसकी  किस्म में और पहले जहाज की रुई में अंतर था | यह अभिनिर्धारित किया गया कि संविदा की विषयवस्तु की पहचान के सम्बन्ध में दोनों पक्षकारों के बीच भूल होने के कारण संविदा अप्रवर्तनीय थी |

    (3)संव्यवहार की प्रकृति सम्बन्धी भूल --जहाँ संविदा की प्रकृति की पहचान के सम्बन्ध में दोनों पक्षकार भूल के अधीन रहे हों वहां पर संविदा शून्य होती है | 

    2.अज्ञानता या किसी मामले की मिथ्या धारणा से भूल --जहाँ कि किसी करार के दोनों पक्षकार करार के लिए सारभूत किसी तथ्य के बारे में भूल के अधीन है वहां करार शून्य होगे | 

    भूल का प्रभाव --जहाँ संविदा के दोनों पक्षकार किसी सारभूत तथ्य के बारे भूल करते हैं वहां संविदा शून्य होगी लेकिन जहाँ भूल एक पक्षकार की है वहां वह संविदा शून्य नहीं होगी | उपरोक्त प्रभाव केवल तथ्य की भूल पर लागू होगा | यह विधि के भूल के सन्दर्भ मे लागू नहीं होंगे | परन्तु विदेशी मूल के सम्बन्ध में वही प्रावधान लागू होंगे जो कि तथ्य की भूल के सम्बन्ध में हैं |


Source: CLA., LL.B. 3 Year, 1st Semester, 1st paper

LAW OF CONTRACT -1

Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University, Ayodhya

Dr. RMLAU  Ayodhya

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