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प्रश्न - आधिपत्य और आधिपत्य के बिना अचल संपत्ति के स्वामित्व को अतिक्रमण से किस प्रकार विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 द्वारा सुरक्षित किया गया है ?

         अधिनियम की धारा 6 के अनुसार "कोई भी व्यक्ति बिना उसकी सहमति के विधि द्वारा विधिक प्रक्रिया के अन्यथा, उसके आधिपत्य में की संपत्ति से किसी व्यक्ति द्वारा निष्कासित किया जाता है तो वह व्यक्ति न्यायालय में वाद संस्थित कर उस व्यक्ति से पुनः आधिपत्य प्राप्त कर सकेगा; जिसके आधिपत्य में वह है |"

immovablepropertyprotactedfrominterferenceunderthisact1963


        विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963, की धारा 6 में किसी भी ऐसे व्यक्ति को दीवानी प्रक्रिया द्वारा किसी अचल संपत्ति पर विशेष सारभूत एवं शीघ्रतम उपचार द्वारा पुनः कब्ज़ा दिलवाया जाता है | जिसे उस अचल संपत्ति पर से बेदखल कर दिया गया हा | दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 145 के अधीन परिवादी केवल एक प्रार्थना पत्र द्वारा दण्डाधिकारी को यह आदेश देने के लिए प्रार्थना करता है कि उसे प्रार्थना से पहले दो माह के दौरान उस संपत्ति पर से बिना उसकी सहमति से अवैधानिक रूप से बेदखल कर दिया गया है | दण्ड प्रक्रिया संहिता में यह कब्ज़ा प्राप्त करने का शीघ्रतम उपचार समाज में शान्ति और व्यवस्था कायम रखने के उद्देश्य से रखा गया है | इस उपचार से परिवादी पर कोई आर्थिक भार नहीं पड़ता | लेकिन यदि वादी दो माह से अधिक समय से अपनी संपत्ति पर कब्जे से बेदखल रखा है तो वह विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 6 के प्रावधानों के अंतर्गत पुनः कब्ज़ा प्राप्ति हेतु वाद ला सकता है बशर्ते वह वाद बेदखली कीई तिथि से 6 माह के अन्दर हो तथा वादी सरकार द्वारा बेदखल नहीं किया गया हो | धारा 6 के अंतर्गत विशिष्टतः संक्षिप्त तथा शीघ्र उपचार वादी की संपत्ति पर पुनः आधिपत्य दिलाने का उद्देश्य यह है कि चाहे किसी भी व्यक्ति का संपत्ति पर कितना उचित स्वामित्व हो वह कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता | 

ऐसा आधिपत्य वैध आधिपत्य होना चाहिए अर्थात वह विधि द्वारा मान्य आधिपत्य होना चाहिए | यदि वह कपट, अनुचित प्रभाव, अनधिकृत प्रवेश आदि के द्वारा किया गया है तो धारा 6 के अर्थों में वह वैध आधिपत्य नहीं माना जायेगा | इस धारा के प्रावधान अतिचारी की सहायता नहीं करते चाहे उसका कब्ज़ा कितना ही पुराना क्यों न हो |


        धारा 6 ऐसे व्यक्तियों को उपचार प्रदान करती है जिसे किसी परिसर से बलात् निष्कासित कर दिया गया हो | ऐसा व्यक्ति निष्कासित होने के समय कब्जे की पुनः प्राप्ति के लिए वाद ला सकता है | लेकिन यह बलपूर्वक ऐसे परिसर पर पुनः काबिज हो जाता है तो वह अतिक्रमी हो जाता है और धारा 6 का लाभ नहीं उठा सकता |

(केo कृष्णा बनाम एo एनo परमकुशा भाई, एo आईo आरo 2011 आंध्र प्रदेश 165)


अचल संपत्ति के कब्जे से बेदखल व्यक्ति को उपचार
(Remedy to the Parson dispossessed of immovable property)
        
        प्रत्येक व्यक्ति को अपनी संपत्ति पर आधिपत्य रखने तथा शांतिपूर्वक उपभोग का अधिकार है और विधि की मान्यता है कि जो व्यक्ति संपत्ति पर आधिपत्य रखता है वह उसका स्वामी होगा | धारा 6 का उपचार प्राप्त करने के लिए वादी को अपना स्वत्व सिद्ध करना आवश्यक नहीं है | चाहे वादी का उस संपत्ति पर उचित स्वत्व है या नहीं, यदि उसे अवैधानिक रूप से बिना उसकी सहमति के बेदखल कर दिया है तो वह बेदखली की तिथि से 6 माह के अन्दर दीवानी न्यायालय को वाद प्रस्तुत कर उस संपत्ति पर पुनः आधिपत्य प्राप्त कर सकता है |

        इस प्रकार के अधिकार वंचित व्यक्ति को विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित उपाय प्राप्त होंगे |

1- पहला उपाय जो अधिकार वंचित व्यक्ति को प्राप्त हो सकता है वह यह कि वह विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 6 के अंतर्गत शीघ्र उपचार दिलाने वाली विधि का सहारा ले |

        यदि वादी न्यायालय में सिद्ध कर देता है कि उसको बिना किसी विधिक औचित्य के बलपूर्वक आधिपत्य से वंचित किया गया है और इस घटना को हुए 6 मास ही हुए हैं तो वह खोये हुए आधिपत्य को पुनः प्राप्त करने का हक़दार हो जायेगा | वादी वास्तविक स्वामी के विरुद्ध भी धारा 6 के अंतर्गत कब्ज़ा प्राप्त कर सकता है |

2- दूसरा उपाय जो विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम के अंतर्गत आधिपत्य वंचित व्यक्ति को भी हो सकता है वह यह है कि वह धारा 5 के अंतर्गत लम्बा समय लेने वाला वाद प्रस्तुत कर सकता है |

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 6 के उद्देश्य 
(Objects of Section 6 of the Specific Relief Act, 1963) 

        धारा 6 शान्ति एवं व्यवस्था को श्रेय देती है | यह कानून एवं, व्यवस्था को बनाये रखने तथा विवादग्रस्त विषयों को विधि की उचित प्रक्रिया द्वारा हल करने का प्रावधान करती है |
इस धारा के दो मुख्य उद्देश्य है --
        1- ऐसे व्यक्तियों को चाहे उसका स्वत्व कितना ही अच्छा क्यों न हो, विधि को अपने हाथों में लेने से रोकना है |
        2- निष्काषित व्यक्ति को शीघ्र एवं सरल प्रक्रिया द्वारा उपचार प्रदान करना है | यह उपचार सिविल न्यायालय के माध्यम से प्रदान किया जाता है |

        सुधीर जग्गी बनाम सुनील आकाश सिन्हा चौधरी, एo आईo आरo 2005 एसo सीo 1243 के वाद में वादी के पास दो फ्लैटों का कब्जा दोनों फ्लैटों का विकास करने वाले ने अपूर्ण स्थिति में प्रदान किया था और वादी ने उन्हें पूर्ण करना स्वीकार कर लिया था | ऐसा कोई करार नहीं था जिससे यह धारित होता हो कि वादी को फ्लैटों को वापस करने का दायित्व था | निर्णय हुआ कि यदि प्रत्यर्थी यह सिद्ध करने में असफल हो कि उसने वादी को सशर्त फ़्लैट सौंपे थे तो वादी को उक्त फ्लैटों से बेदखल करना अन्यायोचित होगा |

Source: CLA, 

LLB. 2 Year Programme, 1st Semester, 1st Paper

Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University Ayodhya

Dr. RMLAU Ayodhya

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