संविदा भंग के कारण क्षति (Damages on breach of Contract)- संविदा के उल्लंघन होने से यदि हानि को साबित कर दिया जाता है तो व्यक्ति उसे प्राप्त करने का अधिकारी होता है परन्तु विधि में उल्लिखित किया गया है कि प्रतिवादी प्रत्येक हानि के लिए दायी नहीं है | कुछ ऐसी हानियाँ होती हैं जो दूरस्थ होती हैं जिनके प्रदाय हेतु वादी प्रतिकर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है |
(Remoteness of Damages)
हैडले बनाम बैक्सन्डेल, (1875) 9 एक्स 381 के मामले में न्यायाधीश एल्डरसन ने इस सम्बन्ध में विधि स्थापित की | इस मामले में वादी एक मिल का स्वामी था | उसकी मिल की मशीन का क्रेन शाफ्ट टूट गया , अतः उसने उसे मरम्मत हेतु एक निश्चित स्थान पर पहुचाने के लिए प्रतिवादी को शौंप दिया | प्रतिवादी को यह मरम्मत के बाद वापस वादी के पास लाना था | प्रतिवादी को क्रेन साफ्ट देते समय वादी द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया था कि इस कार्य में यदि तनिक भी लापरवाही की गयी तो मिल बंद पड़ी रहेगी | लेकिन प्रतिवादी (वाहक) की लापरवाही के कारण क्रेन शाफ्ट की मरम्मत का काम काफी समय तक लटका रहा जिससे वाड़ी को काफी हानि उठानी पड़ी | इस पर वादी ने क्षतिपूर्ति के लिए प्रतिवादी के विरुद्ध वाद संस्थित किया जिसमें उक हानि को अत्यधिक दूरस्थ मानते हुए वाद को ख़ारिज कर दिया गया | कारण यह बताया गया की सामान्य परिस्थितियों में ऐसा सोचना कठिन था कि क्रेन शाफ्ट के टूट जाने से मिल का काम रुक जायेगा |
(Principal laid down in judgment)
" जहाँ दो पक्षकारों वर कोई संविदा की जाए तथा उनमें से एक उसे भंग कर दे तो वह क्षतिपूर्ति जिसे प्रतिपक्षी द्वारा किया जाना चाहिए या तो ऐसी होनी चाहिए जो कि ऐसी संविदा भंग से उचित तथा स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हुई मानी जा सके अर्थात जो इस उल्लंघन के कारण घटनाओं के सामान्य अनुक्रम में उत्पन्न हुई हो या जिसके बारे में पक्षकारों को संविदा के समय ही ऐसा ज्ञान हो कि संविदा भंग का संभावित परिणाम यही होगा |
इस वाद में दो प्रकार के सिद्धांतों की विवेचना की गयी है |
1. सामान्य क्षति (General Damages) - सामान्य क्षति या नुक्सान पक्षकारों के उस ज्ञान पर आधारित होती है जो उन्हें संविदा करते समय होता है |
हान बनाम मिडलैंड रेलवे कंपनी , (1873) एल० आर० 8 सी० पी० 131 के मामले में एक निश्चित दिन वादी को फ्रांसीसी सेना के लिए लन्दन के जूते देने थे | उसने प्रतिवादी को इसके लिए नियुक्त किया जिसने की जूते पहुँचाने में विलम्ब कर दिया परिणामस्वरूप क्रेता के जूते लेने से इन्कार कर दिया | वादी ने प्रतिवादी को इसके लिए वादित किया | न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया की वह प्रतिवादी से ऐसी हानि प्राप्त नही कर सकता है जब तक की उसे जूते परिदत्त करते समय ऐसा न बताया गया हो कि यदि जूते समय पर न पहुंचे तो हानि होगी |
2. विशेष क्षति (Special damages)- विशेष क्षति उसी परिस्थिति में प्राप्त की जा सकती है जबकि प्रतिवादी ने संविदा करते समय इसकी पूर्व कल्पना कर लि थी |
विक्टोरिया लांड्री बनाम न्यूमैन इन्डस्ट्रीज लिमिटेड , (1949) 2 के० बी० 528 के मामले में वादी ने अपने व्यापार का विस्तार करने के उद्देश्य से नया 'बायलर' खरीदने के लिए प्रतिवादी से संविदा की | बायलर का परिदान काफी समय बाद किया गया जिससे वादी को हानि हुई जिसके लिए प्रतिवादी पर दावा दायर किया गया | न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा कि प्रतिवादी को इस बात की जानकारी थी कि वादी को 'बायलर' की तुरंत आवश्यकता है अतः वह विलम्ब के लिए उत्तरदायी है |
(Principles for determination of damages under the Indian Contract Act)
भारत में इस सन्दर्भ में धारा 73 में प्रावधानों का उल्लेख किया गया है | इंग्लैंड के समान भारत में भी नुकसान वादी को तभी दिलाया जा सकता है जबकि वह यह सिद्ध कर दे कि जिन विशेष परिस्थितियों में विशेष नुकसान हुआ है , उसका ज्ञान प्रतिवादी को था |
संविदा अधिनियम की धारा 73 के अनुसार "जबकि कोई संविदा भंग कर दी गयी है तब वह पक्षकार जो ऐसे भंग से क्षति उठाता है , उस पक्षकार से जिसने संविदा भंग की है , अपने तदद्वारा कारित किसी ऐसी हानि या नुकसान के लिए प्रतिकार पाने का हकदार है, जो ऐसी घटनाओं के प्रायिक अनुक्रम में प्रकृत्या ऐसे भंग से उद्भूत हुआ हो , जिसका संविदा भंग का संभाव्य परिणाम होना पक्षकार उस समय जानते थे जब उन्होंने संविदा भंग की थी | ऐसा प्रतिकर उस भंग के कारण उठाई गयी किसी दूरस्थ और परोक्ष हानि या नुकसान के लिए नहीं दिया जाना है |"
(Measure of Damages)
क्षति का धन के रूप में मूल्यांकन किस प्रकार किया जाए इस सम्बन्ध में दो सिद्धांत हैं |
1. प्रतिकार के प्रकृति की क्षतिपूर्ति (Compensatory nature of damages)- संविदा के उल्लंघन के लिए क्षतिपूर्ति जब दण्ड के स्वरुप में न दी जाकर प्रतिकर के रूप में दी जाती है तब वह प्रतिकर के प्रकृति की क्षति होती है | इसमे क्षतिपूर्ति दिलाने का उद्देश्य यह होता है कि प्रभावित पक्षकार को लगभग उसी स्थिति में लाया जाये जिसमें कि वह होता यदि संविदा का पालन किया जाता | इसके तहत प्रतिकर संविदा भंग का स्वाभाविक परिणाम होता है या जिसकी कल्पना की जा सकती थी|
2. हानि को कम करने का कर्त्तव्य (Duty to mitigate the damage suffered)- धारा 73 में व्याख्या की गयी है | की संविदा भंग किये जाने से पैदा होने वाली हानि का प्राक्कथन करने में उन साधनों को ध्यान में रखना चाहिए जो कि संविदा के अपालन से हुई असुविधा का उपचार करने के लिए विद्दमान थे | अतः जिसको नुक्सान हुआ है उसका भी कर्तव्य होता है कि वह क्षति को कम करने के लिए कदम उठाये | यदि वह ऐसा नही करता है तो स्वयं भी क्षति के लिए उत्तरदायी होगा |
(Penalty and Liquidated Damages)
संविदा करते समय कभी कभी पक्षकार यह तय कर लेते हैं कि उसका भंग किये जाने पर दोषी पक्षकार पीड़ित पक्षकार को एक अमुक धनराशि देगा | संविदा अधिनियम की धारा 74 के अनुसार ऐसी धनराशि दो रूपों में हो सकती हैं --
- शास्ति (Penalty) के रूप में ; या
- परिनिर्धारित हानिपूर्ति (Liquidated damages) के रूप में |
शास्ति के रूप में देय धनराशि परिनिर्धारित हानिपूर्ति के रूप में देय धनराशि से भिन्न होती है | किसी संविदा में शास्ति की शर्त का मुख्य उद्देश्य दोषी पक्षकार को भयभीत रखना होता है जबकि परिनिर्धारित हानिपूर्ति हानि का वास्तविक पूर्व-प्राक्कलन होती हैं |
उदाहरण
'क' अमुक दिन न्यायालय में स्वयं उपसंजात होने के लिए मुचलका देता है जिसमें ऐसा न करने पर वह 500 रूपये की शास्ति देने के लिए आबद्ध है | उसका मुचलका समपह्त हो जाता है | यह शास्ति के तौर का अनुबंध होने से वह सम्पूर्ण शास्ति देने का दायी है |
शास्ति के अनुबंध का प्रवर्तन नही किया जा सकता है, जबकि परिनिर्धारित हानिपूर्ति के अनुबंध का प्रवर्तन किया जा सकता है, यदि--
- वह हानि के वास्तविक पूर्व प्राक्कलन का परिणाम हो , पूर्व
- उसमें भयभीत रखने वाली कोई निश्चित धनराशि सम्मिलित नहीं हो |
संविदा अधिनियम की धारा 74 के अनुसार, "जबकि कोई संविदा भंग कर दी गयी है, तब यदि उस संविदा में ऐसी कोई राशि नामित हो जो ऐसे भंग की दशा में संदेय होगी या यदि शास्ति के तौर का कोई अन्य अनुबंध उस संविदा में अन्तर्विष्ट हो तो चाहे यह साबित किया गया हो या नहीं कि उस भंग से वस्तुतः नुकसान या हानि हुई है, भंग का परिवाद करने वाला पक्षकार उस पक्षकार से जिसने संविदा भंग किया है, यथास्थिति ऐसी नामित रकम से या अनुबद्ध शास्ति से अनधिक युक्तियुक्त प्रतिकर पाने का हकदार होगा |"
भारतीय संविदा अधिनियम में शास्ति तथा परिनिर्धारित हानिपूर्ति के बीच अंतर को समाप्त कर दिया गया है | अर्थात पक्षकार शास्ति अथवा परिनिर्धारित हानिपूर्ति के रूप में उतनी ही राशि प्राप्त करने के लिए अनिवार्यतः हकदार नहीं होते हैं जितनी कि उन्होंने संविदा में निर्धारित की है | यह न्यायालय के विवेक पर छोड़ दिया गया है कि वह चाहे तो संविदा में उल्लिखित सम्पूर्ण राशि दिलवाने का आदेश दे या फिर उसमें उल्लिखित राशि से अनधिक कोई युक्तियुक्त राशि (reasonable amount) |
उदाहरण
'ख' से 'क' संविदा करता है कि यदि वह 'ख' को एक निर्दिष्ट दिन 500 रूपये देने में असफल रहे तो वह 'ख' को 1000 रूपये देगा | 'क' उस दिन 'ख' को 500 रूपये देने में असफल रहता है | 'क' से 'ख' 1000 रूपये से अनधिक ऐसा प्रतिकर जो न्यायालय युक्तियुक्त समझे वसूलने का हकदार है |
फतेह चन्द्र बनाम बाल कृष्ण दास, ए० आइ० आर० 1963 एस० सी० 1405 के मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि यह कहना अनुचित होगा कि धारा 74 केवल तभी लागू होगी जबकि क्षतिग्रस्त पक्षकार वादी के रूप में अनुतोष प्राप्त करना चाहता है | यह एक ऐसी विधि की घोषणा करती है जो सभी पर समान रूप से लागू होती है | मौला बक्स बनाम भारत संघ, ए० आइ० आर० 1970 एस० सी० 1955 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 74 के अंतर्गत क्षति तभी देय होती है जब कुछ पूर्ववर्ती शर्तें पूरी हों और धारा 74 का लाभ तभी मिल सकता है जबकि संविदा भंग हुई हो |
महावीर प्रताप गुप्ता बनाम स्टेट आफ मध्य प्रदेश (ए० आइ० आर० 2012 एन० ओ० सी० 250 मध्य प्रदेश) के मामले में वादी की नीलामी विक्रय में दूकान का विक्रय किया गया था | बाद में यह विक्रय इस आधार पर एकतरफा निरस्त कर दिया गया था कि दूकान का विक्रय किसी प्रायवेट व्यक्ति को नहीं किया जा सकता था | म्युनिसिपल कौन्सिल द्वारा की गयी नीलामी अवैध थी | न्यायालय ने क्रेता वादी को अपनी अग्रिम राशि (premium amount) पुनः प्राप्त करने का हकदार माना |
Source: CLA, LL.B. 3 Year, First Semester, 1st Paper
LAW OF CONTRACT - I
Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University Ayodhya
Dr. RMLAU Ayodhya
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