विलेखों का परिशोधन
विलेखों का परिशोधन से आशय किसी लिखित दस्तावेज में ऐसा सुधार करना है जिसके परिणाम स्वरुप वह दस्तावेज पक्षकारों के उस उद्देश्य की पूर्ति करने में सफल हो सकेगा जिसे प्राप्त करने के लिए उस दस्तावेज का निर्माण किया गया हो | विलेखों में सतर्कता बरतने के बावजूद भी कुछ छोटी बड़ी त्रुटि या भूल हो जाती है किन्तु इस भूल या त्रुटि की वजह से उन्हें निरस्त नहीं किया जाता है | त्रुटि या भूल जानबूझकर या संयोगवश भी हो सकती है |उसका गलत हानिकारक प्रभाव भी किसी पक्षकार या पक्षकारों पर पड़ सकता है | उस त्रुटि या भूल का गलत अर्थ भी लगाया जा सकता है अतः इस दशा में न्यायालय त्रुटि या भूल सुधार करके उस विलेख को पक्षकारों के आशय के अनुसार बना देता है | धारा 26 पक्षकारों के हित में निर्मित की गई है एवं इसका इसका उदेश्य विलेख में परिशोधन कर ऐसे अन्याय को रोकना है जो यदि परिशोधन नहीं किया जाता है तो संभव होता |
विलेखो में परिशोधन की आवश्यक शर्तें
धारा 26 के अंतर्गत विलेखों में परिशोधन की निम्नलिखित आवश्यक शर्तें इस प्रकार हैं --
1. परिशोधन की मांग किये जाने से पूर्व पक्षकारों के मध्य कोई अनुबंध पूर्ण होना आवश्यक है | अनुबंध की शर्तें लिखित या मौखिक हो सकती है |
2. दूसरी शर्त यह कि मौखिक आशय को लिखित दस्तावेज में परिणित करते समय कपट या भूल का सिद्ध किया जाना आवश्यक है |
3. विलेख में प्रत्येक भूल या कपट ऐसी हो जिससे विलेख का अर्थ स्पष्ट नहीं हो पा रहा हो |
4. किसी भूल या त्रुटि या कपट में जो विलेख में है यदि परिशोधन न किया जाय तो अन्याय होने की सम्भावना हो |
5. विलेखो में परिशोधन तब तक नही किया जा सकता जब तक कि पक्षकारों द्वारा ऐसी मांग न की गई हो |
6. तीसरे व्यक्ति द्वारा सदभावनापूर्वक हित अर्जित किये जाने की दशा में उनकर हितो पर विपरीत प्रभाव डालने वाला परेशां नहीं किया जा सकता |
विलेखो में परिशोधन कब किया जा सकता है ?
1. जब पक्षकारों को पारस्परिक भूल या कपट के कारण कोई संविदा या लिखित विलेख (जो कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत कंपनी की संस्था की अंतर्नियामावली नहीं है ) उसके आशय को ठीक ढंग से प्रकट नहीं करता है तो -
(i) उसका कोई पक्षकार या उसका प्रतिनिधि दावा दायर कर सकेगा, या
(ii) वादी ऐसे किसी वाद में विलेख के अंतर्गत यदि कोई अधिकार विवादास्पद है, अपने अभिवचन में लिखित परिशोधन की मांग कर सकता है |
(iii) उपर्युक्त (ii) में निदेशित वाद की दशा में प्रतिवादी अपने अन्य प्रतिरक्षा के अतिरिक्त, विलेख में परिशोधन की मांग कर सकता है |
2. खण्ड (1) निर्देशित तरीके से न्यायालय में विलेख में परिशोधन हेतु वाद दायर किया जाता है और न्यायालय देखता है कि पक्षकारों किसी भूल या कपट के कारण वह विलेख में उनके सही अर्थ को प्रकट नहीं कर पा रहा है तो वह अपने विवेकानुसार किसी तीसरे पक्षकार द्वारा सदभावनापूर्वक अर्जित हितो पर विपरीत प्रभाव डाले बिना उस विलेख में परिशोधन का आदेश दे सकेगा |
3. लिखित संविदा पहले परिशोधित की जा सकेगी और उसके बाद यदि वादी ने अपने वाद पत्र में ऐसी प्रार्थना की है और न्यायालय ठीक समझे तो विनिर्दिष्ट अनुपालन किया जा सकेगा |
4. विलेख में परिशोधन की अनुमति तब तक नहीं दी जाएगी जब तक कि कोई पक्षकार विशिष्ट रूप से उसकी मांग न करे | परन्तु अभिवचन में अनुतोष नहीं मांगे जाने की दशा में न्यायालय वाद में किसी क्रम पर उसमे संशोधन व ऐसे अनुतोष को शामिल करने की अनुमति नहीं दे सकेगा |
सीमा अवधि --किसी विलेख में भूल या कपट का पता लगाने के बारे में कोई अवधि सीमा निर्धारित नहीं की गई है | जब कभी भी पक्षकारों की जानकारी में ऐसी भूल या कपट आये तो वह न्यायालय में परिशोधन के लिए वाद संस्थित कर सकेंगे |
Source: CLA
LAW OF CONTRACT - I
THE SPECIFIC RELIEF ACT 1963
DR. RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA
DR. RMLAU, AYODHYA
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