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प्रश्न- प्रस्थापना तथा प्रस्थापना के लिए निमंत्रण को परिभाषित कीजिये |

 प्रस्थापना अथवा प्रस्ताव की परिभाषा 

(Definition of proposal or offer)

शब्द प्रस्थापना आंग्ल विधि के शब्द "offer" का पर्यायवाची है | इसे हम प्रस्ताव भी कहते हैं | यह किसी करार अथवा संविदा का प्रथम चरण है | प्रस्थापना ही प्रतिग्रहण अर्थात स्वीकृति को जन्म देता है | 

                संविदा अधिनियम की धारा 2 (अ) के अनुसार प्रस्थापना में एक व्यक्ति किसी बात को करने या न करने से प्रविरत रहने की अपनी रजामंदी किसी अन्य व्यक्ति को इस दृष्टि से संज्ञापित करता है कि ऐसे कार्य या प्रविरत के प्रति वह अपनी अनुमति प्रदान करे |




    इस प्रकार प्रस्थापना में --

  1.  एक व्यक्ति जिसे प्रस्थापनाकर्ता कहा जाता है , किसी अन्य व्यक्ति को अपनी इच्छा या रजामंदी प्रकट करता है |
  2. ऐसी रजामंदी किस बात को करने या करने से प्रविरत रहने के बारे में होती है |
  3. ऐसी रजामंदी का उद्देश्य ऐसी किसी बात को करने या करने से प्रविरत रहने के लिए अन्य व्यक्ति की अनुमति अभिप्राप्त करना होता है |
उदहारण -
   एक व्यक्ति अश्वनी कुमार अपनी एक घडी एक सौ रूपये में बेचना चाहता है और इसी उद्देश्य से वह अपनी उक्त इच्छा कुमारी उषा के समक्ष अभिव्यक्त अथवा प्रकट करता है , इसलिए कि कुमारी उषा उस घडी को क्रय करने की अपनी अनुमति प्रदान कर दे | यहाँ अश्वनी कुमार की इच्छा अभिव्यक्ति को प्रस्थापना कहा जायेगा |

प्रस्ताव के आवश्यक तत्व (Essential elements of proposal) -

1- संसूचना- प्रताव का एक आवश्यक तत्त्व यह है कि प्रस्ताव को संसूचित किया गया हो | परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि संसूचना सदैव व्यक्त ही हो , वह विवक्षित हो सकती है | धारा 4 के अनुसार किसी प्रस्ताव की संसूचना तब पूर्ण हो जाती है जबकि वह उस व्यक्ति को जिसको कि वह दी गयी है, ज्ञान में आ जाती है |

लालमन बनाम गौरीदत्त ,  1918 ए एल जे 489 , के वाद में प्रतिवादी का भतीजा घर से चला गया | और उसने अपने नौकर लालमन को उसकी तलाश में भेजा तथा बाद में यह घोषित किया कि जो कोई उसके भतीजे को खोजेगा उसे 501 रूपये का पुरस्कार दिया जायेगा | लालमन को इस घोषणा का ज्ञान तब हुआ जब वह लड़के को खोज चूका था | लालमन ने पुरस्कार के लिये दावा किया | न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि यहाँ वैध संविदा का निर्माण नहीं हुआ था क्योंकि लालमन को प्रस्ताव की संसूचना नहीं की थी |

2- विधिक दायित्व - प्रस्थापना का ऐसा होना आवश्यक है कि उससे पक्षकारों के बीच विधिक दायित्व अथवा संबंधों की उत्पत्ति हो | जहाँ किसी प्रस्थापना से विधिक दायित्वों अथवा संबंधों की उत्पत्ति नहीं होती हो , वहां संविदा के प्रयोजन के लिए उसका कोई महत्व नहीं होगा | कुछ प्रस्थापनाएं ऐसी होती हैं जिनमें विधिक संबंधों का उद्भव न होकर मात्र सामाजिक अथवा नैतिक सम्बन्ध उत्पन्न होते हैं ; जैसे भोजन के लिए आमंत्रित करना , फिल्म देखने के लिए बुलाना, आदि | ऐसे मामलों में यदि वह भोजन पर आमंत्रित किया गया है , भोजन पर नहीं आता है तो प्रस्थापनाकर्ता के पास कोई विधिक उपचार नहीं होता |

बलफोर  बनाम बलफोर का मामला (1919) 2 के०वी० 371, इस सम्बन्ध में यह एक महत्वपूर्ण मामला है | इसमें पति श्रीलंका में व्यवसाय करता था , तथा पत्नी इंग्लैंड में रहती थी | पति ने अपनी पत्नी को यह वचन दिया कि जब तक वह स्वास्थ्य लाभ के लिए इंग्लैंड में रहेगी तब तक वह उसे एक निश्चित राशि प्रतिमास भत्ते के रूप में देता रहेगा | | यह संविदा किसी प्रकार के विधिक दायित्व अथवा संबंधों की उत्पत्ति नहीं करती थी ; अतः पत्नी इसका प्रवर्तन नहीं करा सकती थी |

3- निश्चितता - किसी मान्य संविदा का सृजन करने के लिए प्रथापना का निश्चित होना आवश्यक है ताकि पक्षकारों के बीच अधिकार एवं दायित्वों को निर्धारित किया जा सके | प्रथापना की अस्पष्टता अथवा संदिग्धता से संविदात्मक सम्बन्ध स्थापित नहीं हो सकते |

उदाहरण- 
                संविदा अधिनियम 1872 की  धारा 29 के अनुसार यह करार जिसका अर्थ अस्पष्ट है या स्पष्ट होने योग्य नहीं है जैसे अ, ब से एक सौ टन तेल बेचने का करार करता है तो यह करार शून्य होगा | क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि अ किस प्रकार का तेल बेचने का इरादा रखता है |



प्रस्थापना के प्रकार 
Kinds of Offer
  1. सामान्य प्रस्थापना 
  2. विनिर्दिष्ट प्रस्थापना
  3. स्थाई प्रस्थापना

1- सामान्य प्रस्थापना - सामान्य प्रस्थापना किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं होकर जन साधारण अथवा सम्पूर्ण विश्व के लिए होती है | कोई भी व्यक्ति ऐसी प्रस्थापना में की शर्तों का अनुपालन करके संविदा का सृजन कर सकता है |
कार्लिल बनाम कार्बोलिक स्माक बाल कंपनी , (1983) 1 क्यू०बी० 256 के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि समाचार पत्रों में दिया गया विज्ञापन जनसाधारण के लिए प्रस्थापना थी ; अतः कार्लिल प्रस्ताव स्वीकार कर पुरस्कार प्राप्त कर सकता है |

2- विनिर्दिष्ट प्रस्थापना - किसी व्यक्ति, वर्ग अथवा समूह विशेष को की जाने वाली प्रस्थापना विनिर्दिष्ट प्रस्थापना कहलाती है | ऐसी प्रस्थापना को केवल वे ही व्यक्ति प्रतिग्रहीत कर सकते हैं जिनको की वे की गई हैं |

उदाहरण-
            भगवती सुरेन्द्र से अपनी एक गाडी का विक्रय करने की प्रस्थापना करता है | यह एक विनिर्दिष्ट प्रस्थापना है क्योंकि यह केवल सुरेन्द्र से की गयी है और केवल सुरेन्द्र ही उसे प्रतिग्रहीत कर सकता है |

3- सामान्य प्रस्थापना (निविदा) - निविदा एक प्रस्ताव नहीं होती | निविदा की स्वीकृति के पश्चात् कभी कभी यह स्थाई प्रस्ताव में परिणत हो जाती है | संविदा का निर्माण तभी होता है जबकि इसके अंतर्गत आर्डर दिया जाता है | किसी वर्ष में जब-जब माल की सप्लाई करने का निविदान एक 'स्थाई प्रस्थापना' है | आदेश दे दिए जाने पर यह संविदा का रूप ले लेती है |

प्रस्ताव का आमंत्रण 
Invitation of offer

प्रस्ताव तथा प्रस्ताव का आमंत्रण आपस में एक सामान नहीं है | प्रस्ताव के आमंत्रण में आमंत्रणदाता अपनी इच्छा को दुसरे को व्यक्त कर बताना चाहता है कि वह किस प्रकार का संव्यवहार चाहता है | इस सन्दर्भ में हार्वे बनाम फेसी  (1893) ए०सी० 252 का वाद महत्वपूर्ण है | इस वाद में प्रतिवादी एक जमीन के टुकड़े का स्वामी था जिसका नाम बम्पर हाल पेन था | वादी उसे क्रय करना चाहता था | वादी ने तार दिया कि क्या आप बम्पर हाल पेन हमें बेचेंगे , कम से कम मूल्य का तार दें | प्रतिवादी ने उत्तर दिया कि उक्त का मूल्य कम से कम 900 पौण्ड है | वादी ने पुनः तार दिया कि हम 900 पौण्ड में उक्त भूमि खरीदने को तैयार हैं | कृपया अपना स्वत्व विलेख भेजें | प्रतिवादी उक्त विक्रय के संव्यवहार से मना कर दिया | न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि वादी का प्रथम तार प्रस्ताव नहीं था बल्कि प्रस्ताव के लिए आमंत्रण था तथा दूसरा तार प्रस्ताव था जिसे प्रतिवादी ने अस्वीकार कर दिया | परिणामस्वरूप दोनों के बीच किसी प्रकार की संविदा का निर्माण नहीं हुआ था जिसका प्रवर्तन कराया जा सके |

मैकफर्सन बनाम अपन्ना , ए०आई०आर०1975 एस०सी० 184 के मामले में वादी ने प्रतिवादी के बंगले को क्रय करने का प्रस्ताव उसके एजेंट द्वारा किया | एजेंट के मालिक को तार दिया कि 6000 रूपये का प्रस्ताव मिला है | मालिक ने उत्तर दिया कि 10000 रूपये से कम में नहीं बेचेंगे | वादी ने 10000 रूपये की स्वीकृति का पत्र एजेंट को दे दिया परन्तु मालिक ने उसे किसी अन्य व्यक्ति को बेंच दिया | न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि प्रतिवादी का उत्तर कि 10000 रूपये से कम में नहीं बेचेगा प्रस्ताव न होकर केवल प्रस्ताव का आमंत्रण है | वादी द्वारा 6,000 रूपये के स्थान पर 10,000 रूपये के मूल्य को प्रस्तावित करना प्रतिप्रस्ताव था | जिसने मूल प्रस्ताव को नष्ट कर दिया था | यहाँ यह आवश्यक है कि सामान्यतः न्यूनतम कीमत बताना प्रस्ताव का आमंत्रण होता है | परन्तु यदि उसके साथ एक निश्चित प्रस्ताव भेजा जाय तो स्थिति भिन्न होगी |
                नीलामी की बोली में नुनतम कीमत निश्चित करने का उद्देश्य नीलामकर्ता के अधिकार को सीमित करना होता है | निविदा के लिए आमंत्रण प्रस्ताव नहीं, प्रस्ताव करने का प्रयास होता है |
अनिल कुमार श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश , (ए० आई० आर० 2004 एस० सी० 4299) |



(डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या , एलएलबी त्रिवर्षीय , प्रथम सेमेस्टर , प्रथम प्रश्न पत्र , संविदा विधि -i)

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