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प्रश्न - संविदाओ का विखंडन क्या है ? संविदाओं का कब स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है ? व्याख्या कीजिए |

संविदाओं का विखंडन 

        विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम संविदाओ के विनिर्दिष्ट अनुपालन का उपचार प्रदान करता है | उसी भांति संविदाओं का विखंडन संविदाओं का विनिर्दिष्ट अनुपालन के ठीक विपरीत उपचार है | प्रायः पक्षकार संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन करवाने को तत्पर रहते है लेकिन कभी-कभी विनिर्दिष्ट अनुपालन के बजाय संविदा को विखंडित करवाना चाहते है जो एक अनुतोष है | ऐसा इसलिए कि जब कोई संविदा कपट, मिथ्यावर्णन, दबाव, अनुचित प्रभाव व भूल के अंतर्गत की जाती है और परिणामतः किसी पक्ष को भारी क्षति होने की सम्भावना होती है ऐसी क्षति से बचने के लिए संविदा के पक्षकार को न्याय प्रदान करने के लिए संविदा के विखंडन का अनुतोष प्रदान किया जाता है |

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        संविदा के विखंडन से आशय संविदा का प्रारंभ से ही निरस्त या शून्य बनाना है | यह संविदा के विनिर्दिष्ट  अनुपालन के विपरीत है |

        संविदाओं का विखंडन कब स्वीकार किया जा सकता है ? --संविदा के विखंडन के लिए कोई भी हित रखने वाला व्यक्ति दावा का सकता है तथा धारा 27 के तहत न्यायालय निम्नलिखित परिस्थितियों में से किसी परिस्थिति में विखंडन की स्वीकृत अनुदत्त कर सकता है --

        1. जहाँ संविदा वादी द्वारा अनुकरणीय या निरस्त करने योग्य हो |

        2.जहाँ संविदा ऐसे कारणों से अवैध है जो बाह्य रूप से अस्पष्ट है और जिसके लिए प्रतिवादी वादी से अधिक दोषी हो | 

        संविदाओं का विखण्डन कब अस्वीकार किया जा सकता है ?--न्यायालय निम्न आधारों पर संविदा का विखंडन करने से इन्कार कर सकेगा--

        1.जहाँ वादी ने प्रकट या अप्रकट रूप से संविदा को अनुसमर्पित (Rectification)कर दिया हो |

        2.जहाँ संविदा निर्माण के बाद परिस्थितियों में ऐसा परिवर्तन हो गया हो (जो स्वयं प्रतिवादी के किसी कार्य के कारण नहीं हो ) कि पक्षकारों को ऐसी स्थिति में प्रतिस्थापित नही किया जा सकता जो संविदा के समय थी |

        3.जहाँ तीसरे या अन्य व्यक्ति ने संविदा के अस्तित्व में रहते हुए सदभावना पूर्वक एवं प्रतिफल देकर अधिकारों का अर्जन किया हो | 

         4.जहाँ संविदा के किसी एक भाग का विखंडन (Rectification) किया जाना हो और ऐसा भाग शेष संविदा से अलग नहीं किया  जा सकता हो |

        संविदा के भाग के विनिर्दिष्ट पालन के मामले में 'त्यजन ' का दावा अभिवचन में विनिर्दिष्ट उल्लेख किये बिना कभी भी किया जा सकता है | (जीत सिंह बनाम दौलत राम, ए० आई० आर० 2012 पंजाब एंड हरियाणा 3 )


Source: CLA

LAW OF CONTRACT-I

THE SPECIFIC RELIEF ACT 1963

DR. RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA

DR. RMLAU, AYODHYA 

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