-एन्सन ने इस बात को बड़े रोचक शब्दों में इस प्रकार प्रस्तुत किया है -
"प्रस्ताव के लिए स्वीकृति की वही स्थिति है जो बारूद से भरी हुई गाडी के लिए जलती हुई दियासलाई की है" इससे कुछ ऐसी चीज उत्पन्न होती है जिसे वापस नहीं किया जा सकता जिसे अकृत (undone) नहीं किया जा सकता | बारूद तब तक बारूद के रूप में पड़ा रहता है जब तक कि वह भीगा हुआ रहता है | उसे वहां से कभी भी वापस हटाया जा सकता है लेकिन दियासलाई लगने के बाद उसका स्वरूप ही बदल जाता है | इसी प्रकार स्वीकृति से पूर्व प्रस्ताव को कभी भी वापस लिया जा सकता है अथवा उसका अपखण्डन किया जा सकता है |
धारा 2 (b) में स्वीकृति को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है ,"जबकि वह व्यक्ति जिसे प्रस्ताव किया जाता है उसके प्रति अपनी अनुमति प्रदान करता है तब कहा जाता है कि प्रस्ताव स्वीकृति हो गया है |"
(Essential condition of a valid Acceptance)
किसी वैध स्वीकृति के लिए निम्नलिखित शर्ते होना आवश्यक है -
1.स्वीकृति की वैध संसूचना -स्वीकृति की परिभाषा से स्पष्ट होता है कि वैध स्वीकृति के लिए स्वीकृति की संसूचना आवश्यक है | इस सम्बन्ध में फेल्ट हाउस बनाम बिन्डले ,(1863) 7 एल० टी० 835 का वाद महत्वपूर्ण है | इस वाद में वादी ने अपने भतीजे को प्रस्ताव भेजा कि वह उसका घोडा 30 पौण्ड 15 शि ० में खरीदना चाहता है | साथ ही यह भी लिखा है कि यदि उसका जवाब नहीं आता है तो वह समझेगा कि घोडा उसका हो गया | भतीजे ने कोई उत्तर नहीं दिया परन्तु प्रतिवादी जो नीलामीकर्ता था, से कहा की वह घोडा न बेंचे परन्तु उसने वह घोडा बेंच दिया | न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि भतीजे ने स्वीकृति की संसूचना नहीं भेजी थी, अतः उनके बीच संविदा का निर्माण नहीं हुआ था | किसी व्यक्ति के चुप रहने को स्वीकृति नहीं समझा सकता | इसी सिद्धांत को भगवान दास बनाम गिरधारी लाल ,ए० आई० आर० 1966 एस० सी० 543 के मामले में प्रतिपादित किया गया की प्रस्तावकर्ता स्वीकृतिकर्ता पर दायित्व नही ला सकता है कि वह स्वीकृति न करने की दशा में अस्वीकृति की सुचना दे अन्यथा उसके चुप रहने से यह अर्थ निकाला जायेगा कि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है | जबकि ऐसा नहीं है की चुप रहना स्वीकृति नहीं माना जा सकता है | (धारा 3 )
2.स्वीकृति की सूचना उस व्यक्ति द्वारा की जानी चाहिए जिसे स्वीकार करने का अधिकार है -- वैध संस्वीकृति के लिए आवश्यक है कि संसूचना स्वयं वह व्यक्ति करे जिसे प्रस्ताव किया गया है या उसका कोई एजेंट करे | किसी अन्य व्यक्ति द्वारा संस्वीकृति की संसूचना वैध नहीं होती |
पावेल बनाम ली , ( 1908 ) 91 एल० टी० 284 के मामले में भी यह अभिनिर्धारित किया गया कि स्वीकृति की संसूचना तभी वैध होगी जब कि वह उसी व्यक्ति द्वारा की जाये जिसे स्वीकार करने का अधिकार है |
3. स्वीकृति स्पष्ट या गर्भित हो सकती है --यह आवश्यक नहीं है कि स्वीकृति सदैव व्यक्त हो , इसका निष्कर्ष पक्षकारो के आचरण द्वारा भी निकला जा सकता है | राम जी दया वाला एंड संस प्रा० लि ० बनाम इन्वेस्ट इम्पोर्ट , ए ० ई० आर० 1981 एस० सी० 2085 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया की यह सत्य है कि सामान्य नियम यह है वचनग्रहीता के चुप रहने से प्रस्ताव की स्वीकृति नहीं होती है परन्तु ऐसा संभव हो सकता है कि अन्य तथ्यों तथा चुप रहने से स्वीकृति मान ली जाये |
4. स्वीकृति पूर्ण तथा बिना शर्त के होनी चाहिए --धारा 7 के अनुसार वैध स्वीकृति के लिए आवश्यक है कि वह पूर्ण तथा बिना किसी शर्त के होनी चाहिए |
स्वीकृति का ढंग--स्वीकृति उसी ढंग से की जानी चाहिए जिस ढंग से प्रस्ताव निर्धारित करता है | यदि प्रस्ताव में कोई ढंग प्रस्तावित नहीं किया गया है तो स्वीकृति उसी प्रकार होनी चाहिए जैसा कि आमतौर पर होता है |
स्वीकृति कब पूर्ण होती है -- प्रस्तावक के विरुद्ध संस्वीकृति की संसूचना तभी पूर्ण होती है जबकि वह उसका पारेषण कर देता है | जिससे वह स्वीकृति करने वाले की शक्ति से परे हो जाये | परन्तु स्वीकृति करने वाले के विरुद्ध तभी पूर्ण होती है जब वह प्रस्तावक के ज्ञान में आ जाता है | (धारा 4)
Source: CLA, LLB 3 Year, 1st semester, 1st Paper, Law of Contract.
Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University, Ayodhya (Dr. RMLAU Ayodhya)
0 टिप्पणियाँ