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प्रश्न - अस्थायी व्यादेश अथवा निषेधाज्ञा की व्याख्या कीजिए | अस्थायी व्यादेश अथवा निषेधाज्ञा कब जारी किया जा सकता है |

 अस्थायी व्यादेश अथवा निषेधाज्ञा 
( Temporary Injunction)
        
        विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 37 (1) के अनुसार अस्थायी व्यादेश किसी निश्चित समय या न्यायालय के अग्रिम आदेश तक जारी किये जा सकते है और वादी और वाद के दौरान किसी भी अवस्था में प्रार्थना करने पर जारी किये जा सकते है तथा दीवानी प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों द्वारा विनियमित होगे | दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 के नियम 1 एवं 2 में कुछ विशेष परिस्थितियों में न्यायालय द्वारा अस्थायी व्यादेश जारी करने का अधिकार प्रावधानित है |

temporaryinjunction

        अस्थायी व्यादेश न्यायालय का एक ऐसा आदेश होता है जिसके द्वारा वाद के एक पक्षकार को वाद के अंतिम निर्णय का न्यायालय के अग्रिम आदेश तक किसी कार्य को करने या न करने के लिए बाध्य किया जाता है | यह अंतिम आदेश की प्रकृति का होता है | इसको जारी करने का उद्देश्य यह है कि वाद के पक्षकारों के बीच जिस सम्पत्ति से सम्बंधित विवाद चल रहा है उसे कोई हानि या क्षति नहीं पहुचाई जा सके या उसका विक्रय या हस्तांतरण न हो सके, क्योंकि ऐसा होने पर वादी वाद में सफल होने पर भी उस संपत्ति में होने वाला लाभ नहीं प्राप्त कर सकेगा | यदि कोई ऋणदाता सम्पति से धन वसूल करने के लिए वाद प्रस्तुत करता है लेकिन देखता है कि कर्जदार उसे हानि पहुँचाने के उदेश्य से उस संपत्ति को क्षति पंहुचा रहा है या पंहुचाने का प्रयास कर रहा है तो न्यायालय से प्रार्थना कर कर्जदार को अस्थायी व्यादेश के द्वारा ऐसा करने से रोक सकता है |

अस्थायी निषेधाज्ञा अथवा व्यादेश जारी करने की आवश्यक शर्ते 
(When Perpetual Injection can be issued)

        न्यायालय अस्थायी व्यादेश जारी करने से पूर्व निम्न बातों पर ध्यान देगा --
        1. वादी अंतिम आदेश द्वारा प्राप्त करने के लिए सदभाव से प्रार्थना कर रहा है |
        2. यदि वाद का अंतिम निर्णय हो तो असुविधा का संतुलन किसकी तरफ रहेगा |
        3.वादी का प्रथम दृष्टया वाद में अधिकार और उसका न्यायालय में पेश करने का अधिकार बनता है |
        4.न्यायालय इस बात से संतुष्ट हो कि यदि व्यादेश जारी नहीं किया गया तो वादी को अमूल्य क्षति पहुच सकती है, जिसकी पूर्ति आर्थिक प्रतिकर के रूप में नहीं की जा सकती |
        5.न्यायालय यह भी देखेगा कि वाद के अंतिम निर्णय पर वादी को अस्थायी व्यादेश प्राप्त करने का अधिकार होगा या नहीं |
        6.न्यायालय को यह विश्वास होना चाहिए कि अस्थायी व्यादेश के अतिरिक्त वादी को अन्य कोई समुचित उपाय उपलब्ध नहीं है |
        अस्थायी व्यादेश जारी करना न्यायलय के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है | लेकिन न्यायालय इस विवेकाधिकार का प्रयोग पूर्व निर्धारित सिद्धांतो के आधार पर न्यायिक रूप से करेगा, न कि मनमाने ढंग से | व्यादेश के लिए साम्य के सिद्धांतो का महत्वपूर्ण स्थान है | वादी को यह संतुष्ट करना होगा कि जो  व्यक्ति साम्या के आधार पर न्याय मांगने आया है वह स्वयं साम्य का व्यव्हार कर रहा है (He, who seeks equity, must do equity) तथा जो यह कहते हुए कि उसे अंतिम आदेश प्रदान नही किया गया तो अमूल्य क्षति हो सकती है,वह स्वयं निर्दोष होना चाहिए | (He who comes to equity, must comes with clean hands) | यदि वादी ने किसी कार्य को करने का मौन स्वीकृति प्रदान कर दी गई है या वादी अनावश्यक देरी से वाद लाने का दोषी है, तो न्यायलय अस्थायी व्यादेश द्वारा निषेधाज्ञा जारी नहीं करेगा |

Source: CLA,

LAW OF CONTRACT- I

THE SPECIFIC RELIEF ACT 1963

DR. RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA

DR. RMLAU, AYODHYA

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