शिक्षा का मूल अधिकार
(Fundamental Right of Education )
संविधान के 86 वे संशोधन अधिनियम, 2001 द्वारा एक नया अनु० 21-क जोड़ा गया है जो यह उपबंधित करता है कि "राज्य ऐसी रीति से जैसा कि विधि बनाकर निर्धारित करे 6 वर्ष की आयु से 14 वर्ष की आयु के सभी बालको के लिए निः शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के लिए उपबंध करे |"
शिक्षा का अधिकार एक मूलभूत मानव का अधिकार है | किसिस भी लोकतान्त्रिक प्रणाली की सरकार की सफलता वहां के नागरिको के शिक्षित होने पर निर्भर करती है | एक शिक्षित नागरिक स्वयं को विकसित करता है और साथ ही साथ अपने देश को भी विकास की ओर बढ़ने में योगदान प्रदान करता है शिक्षा ही के मानव की गरिमा प्रदान करती है | हमारे देश में यह कहा गया है कि एक अशिक्षित व्यक्ति पशु के समान है | इस प्रकार हम देखते है कि शिक्षा का महत्त्व सर्वविदित है |किन्तु हमारे संविधान निर्माताओ ने सभी बालको को शिक्षा देने का कर्तव्य संविधान में राज्य के निति निदेशक तत्व के रूप में भाग IV में रखा था | अनु० 45 के अधीन राज्य का 14 वर्ष के सभी बालको को निः-शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा देने का कर्तव्य था | यह माना गया था जनता द्वारा चुनी गई सरकारे संविधान के इस निदेश को ईमानदारी से कार्यान्वित करेंगी | डॉ. आंबेडकर ने यह कहा था कि निदेशक तत्व एक पवित्र घोषणा मात्र नहीं है बल्कि एक संविधानिक दायित्व है और उन्हें लागू न करने पर सरकारों को जनता के समक्ष जवाब देना पड़ेगा और कोई भी सरकार इसकी उपेक्षा नहीं कर सकता है संविधा लागू होने के दिन से 52 वर्ष बीत जाने के पश्चात् भी भारत के ४० प्रतिशत बालक अज भी शिक्षा से वंचित है |
उच्चतम न्यायालय ने यूनी कृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य [(1993) 4 SCC 645 ] के मामले में 6 वर्ष से 14 वर्ष के बालको की शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार घोषित कर दिया | सभी ओर से शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार घोषित करने की मांग उठाई गई जाती रही | इसके फलस्वरूप सरकार ने 86 वे संविधान संशोधन अधिनियम 2001 द्वारा शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार बाना दिया |
Source: CLA,
LLB. 3 YEAR PROGRAMME 1st SEMESTER 2nd PAPER
CONSTITUTIONAL LAW - I
DR.RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA
DR. RMALU, AYODHYA
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