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प्रश्न - निवारक निरोध किसे कहते है? निवारक निरोध से सम्बंधित विधि के अंतर्गत गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को संरक्षण देने वाले संवैधानिक उपबंधों की विवेचना कीजिए |

 बंदीकरण तथा निरोध के विरुद्द संवैधानिक संरक्षण 
(Constitutional Protection against arrest and detention )

        मनमाने बंदीकरण और निरोध को रोकने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को निम्नलिखित संवैधानिक संरक्षण अनु० 22 के द्वारा प्रदान किये गये हैं -    


arrest




  

 1. गिरफ़्तारी के कारन को जानने का अधिकार -- अनु० 22 (1) के प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को जो कि गिरफ्तार किया जा रहा है, यह जानने का अधिकार है कि उसे किस कारण से तथा किन आधारों पर गिरफ्तार किया जा रहा है |

        2. पसंद या रूचि के वकील से प्रतिरक्षा करवाने का अधिकार - अनु० 22 (2) में उपबंधित किया गया है कि गिरफ्तार किये गये प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि अपनी पसंद के वकील से प्रतिरक्षा करवा सकता है | यदि कोई व्यक्ति अपने लिए वकील करने में असमर्थ है, तो न्यायालय का कर्तव्य है कि वह उस व्यक्ति के लिए वकील नियुक्ति करे | क्योंकि प्रत्येक व्यक्त निःशुल्क विधिक सहायता पाने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है |

        3. चौबीस घंटे के अन्दर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किये जाने का अधिकार - कोई भी व्यक्ति 24 घंटे से अधिक अवधि तक पुलिस की हिरासत में नहीं रखा जायेगा | उसे 24 घंटे के भीतर नजदीक के मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है | परन्तु इस समय में यात्रा में व्यतीत हुए समय को नहीं जोड़ा जायेगा |

        4. चौबीस घंटे से अधिक निरोध मजिस्ट्रेट के आदेश के अधीन हीओ होगा -  यदि किसी गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक समय के लिए निरुद्ध करने की आवश्यकता है, तो उसको रिमांड पर लेने के लिए मजिस्ट्रेट का आदेश आवश्यक है | 

निर्णीतवाद 

Decided Cases 

        होमी डा०  मिस्त्री बनाम नफीसुल हसन [(1958) 60 BLR 279 ] के मामले में बंदी को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किये बिना 24 घंटे से अधिक रखा गया था | न्यायालय ने उसे मुक्त करने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण रीट जारी कर दिया | 

        जोगिन्दर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [(1994) 4 SCC 260 ] में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित  किया कि निर्दोष व्यक्तियों को पुलिस द्वारा अवैध तथा मनमानी गिरफ़्तारी से संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए | 

        डी० के० बासू० बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (AIR 1997 SC 610 ) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि किसी भी प्रकार क्रूर, अमानवीय या अपमान जनक व्यव्हार चाहे वह जाँच  के दौरान पूंछने पर या अन्य स्थान पर हो, व्यक्ति के अधिकारों का उल्लघन करता है | पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु होना विधि शासन द्वारा शासित सभी समाज में जघन्यतम अपराध है | न्यायालय ने निर्धारित किया कि व्यक्ति को प्राप्त संवैधानिक संरक्षणों के पालन में विफलता होती है, तो उसे नायाय्लय की अवमानना माना जायेगा | न्यायालय द्वारा इं सबको कठोरता से पालन किये जाने के लिए कहा गया है | 

        अपवाद - उपर्युक्त संरक्षण देश की सामान्य दण्ड विधि के अंतर्गत मनमाना बंदीकरण एवं निरोध के विरुद्ध प्रदान किये गए है, किन्तु वे निम्नलिखित दो अपवादों में लागू नहीं होगे - 

        (1) विदेशी शत्रु, और (2) ऐसे व्यक्ति को जिसे निवारक निरोध विधि के अंतर्गत गिरफ्तार किया जाता है | 

        निवारक निरोध - संविधान में 'निवारक निरोध ' को कोई परिभाषा नहीं दी गई है , किन्तु उसका उद्देश्य अपराधों को रोकना है, यदि सरकार को यह आशंका है कि यह व्यक्ति या व्यक्तियों का कोई समूह अभ्यस्त अपराधी है या आपराधिक उद्देश्य पोर करने वाला है, जिसे सरकार ने प्रतिबंधित कर रखा है, तो सरकार पहले से उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए निवारक विधि के अंर्तगत गिरफ्तार करके जेल में निरुद्ध रख सकती है | अस्तु निवारक निरोध दंडात्मक नहीं है, बल्कि केवल निवारक है | अनु० 22 निवारक निरोध के लिए, एक विशिष्ट प्रक्रिया विहित करता है, जो अनु० 22 के खण्ड (4) से लेकर खण्ड (7) तक में निम्नलिखित उपबंधो में विहित की गई है | 


        निवारक निरोध विधियों के विरुद्ध संवैउधानिक संरक्षण 

        1. सलाहकार बोर्ड द्वारा पुनर्विलोकन - किसी व्यक्ति को निवारक निरोध विधियों के तहत 2 माह तक गिरफ्तार रखा जा सकता है | दो माह से अधिक अवधि तक गिरफ्तार रखने के  लिए सलाहकार बोर्ड द्वारा राय का दिया जाना आवश्यक है | यदि सलाहकार बोर्ड अपनी राय  नही देता है, तो उसे गिरफ्तार व्यक्ति को दो माह से अधिक अवधि तक गिरफतार नहीं रखा जायेगा | 


        2. अभ्यावेदन देने का अधिकार --  अनु० 22 (5) गिरफ्तार व्यक्ति को दो अधिकार प्रदान करता है - 

        (1) गिरफ़्तारी के आधारों को जानने का अधिकार, तथा

        (2) गिरफ़्तारी आदेश के विरुद्ध अभ्दयावेदन देने का अधिकार | 

        उपरोक्त दोनों अधिकारों का प्रयोग गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा शीघ्र करना दिया जायेगा | 


निर्णीत 

        लालू भाई जोगी भाई  बनाम भारत संघ (AIR 1981 SC 728 ) के वाद में न्यायालय ने कहा है, कि निरोध के आधार के मूल तथ्यों को पर्याप्त और पूर्ण निरुद्ध व्यक्ति को ऐसी भाषा में कराया जाना चाहिए, जिसे वह समझता हो, जिससे वह अपना अभ्यावेदन प्रभावी रूप से कर सके | यदि निरोध के आधार मौखिक रूप से बताये जाते है, लिखित रूप में कुछ नहीं दिया जाता है, जिसे वह नहीं समझता है, तो अनु० 22 (5) का उल्लंघन होता है, क्योंकि वह प्रभावी रूप से अभ्यावेदन नहीं कर सकता है | 

        कमलेश कुमार बनाम भारत संघ, [(1995) 4 SCC 51 ] के मामले में निर्धारित किया गया कि N.D.P.S. या  COFEPOSA अधिनियमों के अधीन विशिष्ट अधिकारी के समक्ष प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के सम्बन्ध में सूचना पाने का अधिकार है | ऐसी सूचना न देने पर निरोध अवैध हो जाता है | 

      निवारक निरोध आदेशों का न्यायिक पुनर्विलोकन 

        निवारक निरोध विधियों के तहत दिए गए आदेश आत्मनिष्ठ समाधान पर आधारित होते है | न्यायालय ने स्थापित किया है, कि  उपरोक्त के विषय में उन परिस्थतियों की जाँच की जा सकती है, जिनके आधार पर वह समाधान आधारित है ए० डी० एम० जबलपुर बनाम एस० शुक्ला, (AIR 1976 SC 120 ) के मामले में न्यायमूर्ति श्री खन्ना ने अभिनिर्धारित किया कि राष्ट्रपति के आदेश के बावजूद एक निरुद्ध  व्यक्ति निरोध को इस आधार पर चुनौती दे सकता है, कि या तो उसे निरुद्ध करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है या कानूनी अधिकार का सम्यक पालन नहीं कराया गया है | 

 

Source: CLA,

LLB. 3 YEAR PROGRAMME 1st SEMESTER 2nd PAPER

CONSTITUTIONAL LAW - I

DR.RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA

DR. RMALU, AYODHYA

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