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प्रश्न- संविदा के सवर्मान्य रूप तथा लोकनीति के विभिन्न शीर्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए |

संविदा के सवर्मान्य रूप  
Standard form of Contract 

         जब कोई प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तब वह करार कहलाता है तथा यदि करार प्रवर्तनीय हो तो संविदा कहलाता है परन्तु वतर्मान में इस सम्बन्ध में कुछ परिवतर्न हुए है जिनमें बहुत से मामलों में शर्तें पहले से ही एक पक्षकार द्वारा लिखवा ली जाती है और दूसरे पक्षकार द्वारा उसे स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नही रह जाता है | इस प्रकार की संविदा सवर्मान्य रूप की संविदा कहलाती है | ऐसी संविदाओं का विकास गीतिशील वाणिज्यिक समाज की आवश्यकताओं के कारण हुआ |

standard form of contract

        इस प्रकार की संविदाये निःसंदेह स्वीकृत सिद्धान्तों से भिन्न है क्योंकि ये संविदाये व्यक्ति पर लादी जाती है |इनकी स्वीकूति विवशता में दी जाती है | जब कोई व्यक्ति ड्राईक्लीनर्स के पास कपड़े धुलवाने जाता या रेलवे के क्लार्क के रूप में अपना सामान जमा करता है या बस या रेल से यात्रा करता है तब जो स्लिप या टिकट उसे दिया जाता है उसी पर कुछ शर्तो का उल्लेख रहता है जो कि संविदाधीन शर्तें कहलाती है | पक्षकार को वे शर्तें स्वीकार करने के अलावा कोई रास्ता नही रहता है तथा संविदा भी उन्हीं शर्तों के अधीन होती है |

सवर्मान्य संविदा के मुख्य लक्षण -

  1. मितव्ययिता 
  2. अनुकूलनीयता 
  3. निश्चितता 

सवर्मान्य संविदा के सन्दर्भ में  न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्दान्त - न्यायालय ने उन पक्षकारों के लिए कुछ सिद्धांतों को प्रतिपादित किया है, जिन पर ये संविदाएं लादी जाती हैं |

        1- नोटिस संविदा के तत्कालीन होना चाहिए - इस प्रकार की संविदा की कोई भी शर्त पक्षकार पर तभी बंधनकारी होगी जबकि उसकी सूचना उसे संविदा करते समय दे दी गयी हो |

        उदाहरण- यदि टिकट लेने वाले ने यह नहीं देखा या उसे ज्ञात नहीं है कि टिकट पर कुछ लिखा है तो वह उन शर्तों के अधीन बाध्य नहीं है परन्तु यदि वह जानता है कि टिकट पर कुछ शर्तें लिखी हैं तथा वह उन्हें पढता नहीं तो वह बाध्य होगा |

        2- नोटिस युक्तियुक्त हो - नोटिस वाद की परिस्थितियों के अनुसार ही होना चाहिए | यदि नोटिस वाद की परिस्थितियों के लिए युक्तियुक्त नहीं है तब वह बंधनकारी नहीं होगी |

        3- संविदा के मौलिक उल्लंघन का सिद्धांत - कुछ निर्बन्धन इतने मौलिक होते हैं कि वे संविदा का आधार होते हैं | यदि ऐसे निर्बंधनों का उल्लंघन होता है तो माना जाता है कि संविदा का पालन नहीं हुआ |

        4- लोकनीति के विरुद्ध संविदा - कोई करार यदि सार्वजानिक निति या लोकनीति के विरुद्ध होता है तो वह शून्य होता है | लोकनीति के विरुद्ध शब्द बड़ा ही अस्पष्ट तथा भ्रामक है | अंग्रेजी वाद फेंडर बनाम जान मिल्डसे, 1938 ए०सी० 1 में प्रतिपादित सिद्धांत को भारतीय उच्चतम न्यायालय ने घेरु लाल पारीख बनाम महादेव दास,  (1959) 2 एस० सी० सी० 406 में अनुमोदित करते हुए अभिनिर्धारित किया कि लोकनीति या विधि की निति एक भ्रामक धारणा है | इसको 'अविश्वासपात्र पथ प्रदर्शक' 'अस्थिर गुण'  'अनिश्चित' 'अनियंत्रित घोडा' जैसे नाम दिए गए हैं | न्यायालयों का यह कर्तव्य है कि वे पक्षकारों द्वारा दी गयी संविदा को लागू करें, परन्तु कुछ मामलों में लोकनीति के सिद्धांत पक्षकारों को जिम्मेदारी से मुक्त कर सकते हैं | यह सिद्धांत भी अंग्रेजी विधि का एक भाग है और अंग्रेजी विधि के भाग की तरह निर्णयों पर आधारित है |

        क्या कोई संव्यवहार लोकनीति के विरुद्ध है या नहीं यह संव्यवहार की प्रकृति पर निर्भर होता है |

राजस्थान राज्य बनाम बसन्त नहाटा, ए० आई० आर० 2005 एस० सी० 340 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि लोकहित के सिद्धांत विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत स्थापित हो चुके हैं फिर भी न्यायालय विभिन्न परिस्थितियों में इसे लागू करने के लिए इसका विस्तार कर सकते हैं | भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 23 के अंतर्गत 'लोकनीति के विरुद्ध' एक प्रतिरक्षा है | न्यायालयों को संविदा की विधिमान्यता पर निर्णय देते समय निम्न बातों पर ध्यान देना होता है | 

  • दीवानी प्रक्रिया संहिता के निबंधनों के अंतर्गत आदेश 6 के अंतर्गत अभिवचन ,
  • वाद को नियंत्रित करने वाला अधिनियम,
  • भारतीय संविधान के भाग 3 एवं 4 के उपबन्ध ,
  • विशेषज्ञों के साक्ष्य ,
  • वाद के रिकॉर्ड में लाई गयी सामग्री,
  • अन्य सुसंगत बातें , यदि कोई हों |
        सेन्ट्रल इनलैंड वाटर ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन लिमिटेड बनाम तरुण कान्ती सेन गुप्ता तथा अन्य, ए० आई० आर० 1986 एस० सी० 1571 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि संविदा अधिनियम, 'लोकनीति' के विरुद्ध' या 'लोकनीति के विपरीत' पदों को परिभाषित नहीं करता है | वस्तुओं की प्रकृति के अनुसार , 'लोकनीति', 'लोकनीति के विरुद्ध' या 'लोकनीति के विपरीत' पदों की सूक्ष्म परिभाषा नही दी जा सकती | यह जन लाभ या जन अच्छाई से सम्बंधित मामलों से अर्थ रखता है | लोकहित या जन अच्छाई के लिए या लोकहित के लिए क्या क्षतिकारक या हानिकारक होगा, यह विधिमान्य समय के साथ-साथ बदलती रहती है |

        जोधपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रेड्रेसल फोरम (ए० आई० आर० 2012 एन० ओ० सी० 353 राजस्थान) के मामले में जोधपुर विकास प्राधिकरण द्वारा वादियों को भूमि का आवंटन इस शर्त पर किया गया था कि भूमि पर अतिक्रमियों को हटाने का दायित्व आबंटितियों (Allotees) का होगा | न्यायालय द्वारा इस शर्त को लोकनीति के विरुद्ध होने से शून्य माना गया |

        पीo जगदेश्वर रेड्डी बनाम बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र (एo आईo आरo 2011 एनo ओo सीo 397 आन्ध्र प्रदेश ) के मामले में प्रतिपादित किया गया है कि धारा 23 ऐसे उद्देश्यों एवं प्रतिफलों पर लागू होती है , जो -
  • विधि के किसी उपबंध को विफल करने वाले हों, अथवा
  • लोकनीति के विरुद्ध हो |
लोकनीति के विभिन्न शीर्षक 
(Different Heads of Public Policy)
        1- जो राज्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं- इस शीर्षक में दो प्रकार की संविदाएं आ सकती है |
  1. शत्रु के साथ व्यापार करने की संविदा लोकनीति के विरुद्ध संविदा कहलाती है |
  2. सार्वजानिक पदों का क्रय या विक्रय लोकनीति के विरुद्ध होता है |
        2- न्याय प्रशासन में प्रतिकूल प्रभाव डालना- कोई भी ऐसा करार जो कि न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करे लोक निति के विरुद्ध कहलायेगा |
        यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन बनाम भारत संघ, एo आईo आरo 1992 एसo सीo 248 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि अभियोजन को दबाने या अवरुद्ध करने का सिद्धांत वहां लागू नहीं होता है जहाँ सिबिल दायित्व पूर्व विद्यमान हो तथा प्रतिफल वहां अवैध माना जायेगा जहाँ कि संविदा व्यक्तिगत पक्षकारों के मध्य हो | जहाँ सर्कार पक्षकार है वहां प्रतिफल शून्य नहीं होगा |

        3- सार्वजानिक शिष्टता का उल्लंघन - - विवाह करने सम्बन्धी करार जो कि पुरस्कार के उद्देश्य से किये गए हों या अन्य ऐसे करार जो सार्वजानिक शिष्टता का उल्लंघन करते हो, लोकनीति के विरुद्ध करार कहलायेंगे तथा ऐसे करार शून्य होंगे |
        लोकनीति को संक्षेप में परिभाषित नहीं किया जा सकता | लोकनीति की अवधारणा को परिभाषित करने का कार्य न्यायपालिका का है , कार्यपालिका का नहीं |

स्टेट ऑफ़ राजस्थान बनाम बसन्त नाहटा (एo आईo आरo 2005 एसo सीo 3401)


Source: CLA, LLB 3 Year, 1st Semester, 1st Paper

LAW OF CONTRACT- I

Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University, Ayodhya

Dr. RMLAU Ayodhya

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