(Champerty and Maintenance)
जयांशभागिता करार एक ऐसा सौदा होता है जिसमें एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को संपत्ति पुनः प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है और वह आगम (Proceeds) में हिस्सा बंटाता है (हटले बनाम हटले, 1873 एल० आर० 8 क्यू० बी० 112) |
न्यायमूर्ति ब्लेकबेर्न ने जयांशभागिता की उपर्युक्त मामले में इस प्रकार परिभाषा दी है --"Champerty is a bargain where by the one party is to assist to other in recovering property and is to share in the proceeds of the action ."
संधारण--संधारण एक ऐसा करार है जिसमे कोई व्यक्ति किसी ऐसे वाद के संधारण (पोषण )की प्रतिज्ञा करता है जिसमे स्वयं का उसका कोई हित नहीं होता | यह मुक़दमेबाजी को प्रोत्साहित करता है |
मुल्ला ने इसे --"As the promotion of litigation in which one has no interest of one's own" के रूप में परिभाषित किया है |
इस प्रकार जयांशभागिता संधारण का ही एक प्रकार है | संधारण यदि जाति है तो जयांशभागिता उसकी प्रजाति | जयांशभागिता की इंग्लिश विधि भारत में लागू नहीं होती | इंग्लिश विधि की तरह जयांशभागिता की संविदा भारत में भी शून्य हो, यह आवश्यक नहीं है |
शून्य होने के लिए इसे लोक निति के विरुध्द होना आवश्यक है | भारत में यदि कोई मुक़दमे बाजी को चलाने के लिए धन देता है और उसके प्रतिफलस्वरूप यह करार करता है कि विवादग्रस्त वस्तु प्राप्त हो जाने पर वह उस व्यक्ति को उसमे हिस्सा देगा जिसने आर्थिक सहायता की थी, तो लोकनीति के विरुद्ध नहीं है | यदि किसी दावे के प्रति इस विश्वास के साथ कि वह सच्चा है, कोई व्यक्ति सदभावना पूर्वक सहायता करता है और उसके लिए उचित प्रतिकर प्रदान करता है तो वह मान्य होगा |
लेकिन यदि ऐसी सहायता किसी अनुचित उद्देश्य के लिए की जाती है तो इसे लोकनीति के विरुद्ध माना जायेगा |
(General offer)
सामान्य प्रस्थापना किसी व्यक्ति विशेष के लिए न होकर जन साधारण अथवा सम्पूर्ण विश्व के लिए होती है |कोई भी व्यक्ति ऐसे प्रस्थापना में की शर्तों का अनुपालन करके संविदा का सृजन कर सकता है |
( Important Cases )
1.कार्लिल बनाम कार्बोलिक स्माक बाल कम्पनी, (1893 ए० सी० 256) का मामला -- सन 1890 में लन्दन में एन्फ़्लुएन्जा का रोग फ़ैल गया | इस रोग का निवारण करने के लिए कार्बोलिक स्माक कंपनी ने एक औषधि का निर्माण किया तथा समाचार पत्र में यह विज्ञापन दिया कि जो व्यक्ति दो सप्ताह तक दिन में तीन बार इस औषधि का सेवन करेगा उसे एन्फ़्लुएन्जा नही होगा | यदि इसके सेवन के बाद भी किसी को एन्फ़्लुएन्जा हो जाता है तो उसे कंपनी की ओर से 100 पौण्ड की राशि का पुरस्कार दिया जायेगा | कार्लिल नाम की एक महिला को इस दवा के सेवन के बाद भी एन्फ़्लुएन्ज़ा हो गया, अतः उसने कंपनी से 100 पौण्ड की राशि के पुरस्कार का दावा किया | कंपनी ने अपने तर्क में प्रस्थापना का अभाव बताते हुए पुरस्कार की राशि देने से इन्कार कर दिया |
यह अभिनिर्धारित किया गया कि समाचार पत्रों में दिया गया विज्ञापन जन साधारण के लिए प्रस्थापना थी, अतः कार्लिल प्रस्ताव स्वीकार कर पुरस्कार प्राप्त कर सकता है |
2- हरभजन लाल बनाम हरचरन लाल A.I.R. 1925 इलाहाबाद 539 का मामला -शर्तों का पालन द्वारा प्रतिग्रहण पर यह एक महत्वपूर्ण मामला है | इसमे एक व्यक्ति ने समाचार पत्रों में यह विज्ञापन दिया कि जो कोई व्यक्ति उसके खोये हुए बालक का पता लगाकर उसे सुपुर्द करेगा उस व्यक्ति को 500 रूपये का पुरस्कार दिया जायेगा | एक अन्य व्यक्ति ने, जिसको इस विज्ञापन की जानकारी थी, उस बालक का पता लगा लिया और 500 रुपये के पुरस्कार का दावा किया | यह अभिनिधार्रित किया गया कि वह व्यक्ति पुरस्कार प्राप्त करने का हकदार था; क्योंकि विज्ञापन जन साधारण के लिए एक प्रस्थापना थी और कोई भी व्यक्ति उसकी शर्तों का पालन अथवा उसमें बताया गया कार्य करके उसका प्रतिग्रहण कर सकता था |
3. लालमन शुक्ला बनाम गौरीदत्त, 11 A.L.J. 489 का मामला -इस मामले में यह अभिनिधार्रित किया गया कि विज्ञापन के द्वारा की गई प्रस्थापनाओं एव उनके प्रतिग्रहण के लिए यह आवश्यक है कि प्रतिग्रहीता को प्रस्थापना का ज्ञान रहा है |
Source: CLA, LL.B. 3 Year, 1st Semester, 1st Paper
LAW OF CONTRACT - I
Dr Ram Manohar Lohiya Awadh University Ayodhya
Dr. RMLAU Ayodhya
0 टिप्पणियाँ