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प्रश्न - शून्यकरणीय संविदा और शून्य संविदा को परिभाषित कीजिये | (डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या , एलएलबी त्रिवर्षीय , प्रथम वर्ष , प्रथम प्रश्न पत्र )

 शून्यकरणीय संविदा (Voidable Contract)

अधिनियम की धारा 2 (i) के अनुसार 'वह संविदा जो कि उसके पक्षकारों में से एक या अधिक के विकल्प पर विधि द्वारा प्रवर्तनीय हो किन्तु अन्य के विकल्प पर नहीं , तब वह शून्यकरणीय संविदा कहलाती है |

                शून्यकरणीय संविदा एक ऐसी दोषयुक्त संविदा है जिसका लाभ एक पक्षकार चाहे तो उठा सकता है लेकिन दूसरा नहीं | सामान्यतः प्रपीडन , असम्यक असर अथवा अनुचित प्रभाव , कपट दुर्व्यप्देशन तथा भूल के अधीन की गयी संविदाएं शून्यकरणीय संविदा होती है |


उदाहरण- 'अ' कपट द्वारा 'ब' को अपने साथ संविदा करने के लिए प्रेरित करता है | ' अ' ऐसी संविदा के अनुपालन के लिए आबद्ध है जबकि 'ब' अपने विकल्प पर उसका प्रवर्तन कर सकता है या नहीं |

शून्य संविदा (Void Contract)

धारा 2 (j) के अनुसार "जो सविदा विधि द्वारा प्रवर्तनीय नहीं रह जाती है तब वह शून्य हो जाती है |" इस प्रकार प्रवर्तन की दृष्टि से शून्य संविदाएं दो प्रकार की हो सकती है --

  1. ऐसी संविदाएं जो शुरू से ही प्रवर्तनीय होती हैं जिन्हें आरम्भतः शून्य संविदा कहते हैं |
  2. ऐसी संविदाएं जो संविदा किये जाने के समय से तो प्रवर्तनीय होती हैं परन्तु बाद में प्रवर्तनीय नहीं रह जाती हैं तब उन्हें प्रवर्तनीय न रह जाने पर शून्य संविदा कहते हैं |
उदहारण - 'अ' 'ब' के साथ चोरी की अफीम को खरीदने की संविदा करता है | यह आरम्भतः शून्य संविदा है | 'अ' 'ब' का मकान खरीदने की संविदा करता है परन्तु वह संविदा से पहले जलकर नष्ट हो जाता है तो ज्यों ही मकान नष्ट होता है | संविदा शून्य हो जाती है | अर्थात शून्य संविदा से तात्पर्य उन संविदाओं से है जिनका प्रवर्तन विधि के द्वारा नहीं कराया जाता है |

अवन्ती को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी  बनाम मनोहर (ए०आई०आर०2012 छत्तीसगढ़ 146) के मामले में प्रतिफल रहित करार को शून्य माना गया है |

(Agreement without consideration is void under section 25 of Contract Act)


(LLB 3 YEAR PROGRAMME , FIRST SEMESTER, FIRST PAPER, LAW OF CONTRACT)

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