शून्यकरणीय संविदा (Voidable Contract)
अधिनियम की धारा 2 (i) के अनुसार 'वह संविदा जो कि उसके पक्षकारों में से एक या अधिक के विकल्प पर विधि द्वारा प्रवर्तनीय हो किन्तु अन्य के विकल्प पर नहीं , तब वह शून्यकरणीय संविदा कहलाती है |
शून्यकरणीय संविदा एक ऐसी दोषयुक्त संविदा है जिसका लाभ एक पक्षकार चाहे तो उठा सकता है लेकिन दूसरा नहीं | सामान्यतः प्रपीडन , असम्यक असर अथवा अनुचित प्रभाव , कपट दुर्व्यप्देशन तथा भूल के अधीन की गयी संविदाएं शून्यकरणीय संविदा होती है |
उदाहरण- 'अ' कपट द्वारा 'ब' को अपने साथ संविदा करने के लिए प्रेरित करता है | ' अ' ऐसी संविदा के अनुपालन के लिए आबद्ध है जबकि 'ब' अपने विकल्प पर उसका प्रवर्तन कर सकता है या नहीं |
शून्य संविदा (Void Contract)
धारा 2 (j) के अनुसार "जो सविदा विधि द्वारा प्रवर्तनीय नहीं रह जाती है तब वह शून्य हो जाती है |" इस प्रकार प्रवर्तन की दृष्टि से शून्य संविदाएं दो प्रकार की हो सकती है --
- ऐसी संविदाएं जो शुरू से ही प्रवर्तनीय होती हैं जिन्हें आरम्भतः शून्य संविदा कहते हैं |
- ऐसी संविदाएं जो संविदा किये जाने के समय से तो प्रवर्तनीय होती हैं परन्तु बाद में प्रवर्तनीय नहीं रह जाती हैं तब उन्हें प्रवर्तनीय न रह जाने पर शून्य संविदा कहते हैं |
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