शून्य तथा शून्यकरणीय संविदा में अंतर
शून्य तथा शून्यकरणीय संविदा में अन्तर
शून्य संविदा |
शून्यकरणीय संविदा |
जब कोई संविदा विधि द्वारा प्रवर्तित नहीं हो सकती तब वह शून्य संविदा होती है | |
जब संविदा पीड़ित पक्षकार की इच्छा पर प्रवर्तित होती है तब शून्यकरणीय संविदा होती है |(धारा 19 तथा धारा 19-अ) |
संविदा तब तक वैध बनी रहती है जबतक कि वह प्रवर्तन योग्य रहती है | |
तब तक वैध बनी रहती है जबतक कि पीड़ित पक्षकार उसे शून्य घोषित नहीं करा देता है | |
ऐसी संविदाओं को विधि भी वैध नहीं बना सकती | |
पक्षकारों की इच्छा पर निर्भर करता है| |
पक्षकारों को क्षतिपूर्ति का अधिकार नहीं मिलता है | |
इसमें कतिपय दशाओं में क्षतिपूर्ति का अधिकार होता है | |
(एलएलबी त्रिवर्षीय , प्रथम सेमस्टर, प्रथम प्रश्न पत्र, लॉ ऑफ़ कॉन्ट्रैक्ट)
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