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प्रश्न - संविधान के भाग 3 में उल्लखित मूल अधिकारों के सामान्य अधिकारों के सामान्य लक्षणों की विवेचना कीजिए |

 मूल अधिकारों के सामान्य लक्षण
(General Characteristics of Fundamental Rights )

        (1) संविधान द्वारा प्रत्याभूत (गारंटी) है --संविधान में उल्लखित किया गया है कि मूल अधिकार संविधान द्वारा गारंटी किये गए एम० नागराज बनाम भारत संघ ( ए० आइ० आर० 2007 एस० सी ० 71 ) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अवलोकन किया है कि मूल अधिकार नागरिकों को राज्य के द्वारा दान नहीं है | संविधान का भाग 3 मूल अधिकारों को प्रदान नहीं करता बल्कि इस बात की पुष्टि करता है कि उनका अस्तित्व है और यह भाग उन्हें संरक्षण प्रदान करता है | व्यक्ति को बिना संविधान के केवल इस कारण कि वे मनुष्य वर्ग के सदस्य हैं मूल अधोकर प्राप्त होता है | 


GeneralCharacteristicsofFundamentalRights



        संविधान में यह उपबंध किया गया है कि --

        1. ऐसा कानून नहीं बन सकता है, जो मूल अधिकारों से असंगत हो या उन्हें कम करने वाला हो |

        2. उच्चतम न्यायलय को यह शक्ति दी गई है कि वह मूल की रक्षा कर सके |

        3.अनु० 32 और 226 के अंतर्गत क्रमशः उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के द्वारा मूल अधिकारों का प्रवर्तन कराय जा सकता है |

        ( 2 ) मूल अधिकार वाद योग्य तथा न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय है --यदि राज्य द्वारा बनाइ गई कोई विधि या कार्यपालिका का कोई  अध्यादेश या आदेश किसी व्यक्ति के मूल अधिकार का उल्लंघन करता है, तो वह व्यक्ति उसे उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकता है और उच्चतम न्यायालय अनुछेद 32 के अंतर्गत अथवा उच्च न्यायालय अनु० 226 के अंतर्गत, ऐसी विधि, अध्यादेश या आदेश को असंवैधानिक घोषित करके उस मूल अधिकार को लागू करने के लिए उपयुक्त रिट जारी कर सकता है |

        ( 3 ) ये पूर्ण या अत्यान्तिक नहीं है -- देश और समाज के व्यापक हितों में मौलिक अधिकारों पर ऐसे युक्तियुक्त निर्बन्धन लगाये जा सकते हैं जिनका उल्लेख संविधान के भाग 3 में संबंधित मूल अधिकार के साथ ही किया गया है | उदाहरण के लिए अनु० 19 (1) द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रताओ पर वे युक्तियुक्त निर्बन्धन लगाये जा सकते हैं, जिनका उल्लेख अनुच्छेद 19 के खण्ड (2) से लेकर खण्ड (6) तक में किया गया है |

        ( राज्य के विरुद्ध - अनु० 13 से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है, कि केवल राज्य के लिए ही इस बात का निषेध किया गया है कि वह ऐसी विधि न बनाये जिससे किसी मूल अधकार का अतिक्रमण होता हो | राज्य और विधि की व्याख्या भी क्रमशः अनु० 12 और अनु० 13 में कर दी गई है | 

        दिल्ली डोमेस्टिक वर्किंग डिफेन्स फोरम  के पूर्व यह निर्णीत हुआ था कि राज्य की विधि के विरुद्ध मूल अधिकारों को असंवैधानिक संरक्षण प्राप्त है, किन्ही निजी व्यक्तियों के कार्यों के विरुद्ध उन्हें संरक्षण प्राप्त नहीं है | निजी व्यक्तियों के कार्यो के विरुद्ध देश की अन्य साधारण विधियों के अंतर्गत उपचार प्राप्त किया जा सकता है --यह बात पी० डी० शामदासिनी बनाम सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया (AIR 1952 SC 56 ) के वाद में स्पष्ट कर दी गई है | इस वाद में बैंक के एक कर्मचारी की संपत्ति जब्त करने का आदेश बैंक के अधिकारियों ने जारी किया था, तब उस कर्मचारी ने अनु० 19 और अनु० 31 के अंतर्गत प्रदत्त अपने मूल अधिकारों के हनन के विरुद्ध अनु० 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय ने रिट जारी करने के लिए याचिका दायर की | न्यायालय ने इस याचिका को इस आधार पर ख़ारिज कर दिया कि व्यक्तियों के अनुचित कार्यों के विरुद्ध मूल अधिकारों को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त नहीं है |

परन्तु दिल्ली डोमेस्टिक वर्किंग डिफेन्स फोरम बनाम भारत संघ [(1994) SCC 14 ] के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि मूल अधिकार एक प्राइवेटसंस्था तथा व्यक्ति के विरुद्ध भी लागू किये जा सकते हैं |

        (5) वे निलंबित किये जा सकते हैं -- संविधान के अनु० 352 के अंतर्गत जारी की गई आपात उद्घोषणा (Proclamation of emergency) के लागू रहने के दौरान राज्य अनु० 358 के अंतर्गत आदेश द्वारा अनु० 20 और 21 को छोड़कर, भाग 3 द्वारा प्रदत्त अन्य किन्ही भी मूल अधिकारों को, निलंबित कर सकते हैं | राष्ट्रपति, अनु० 359  के अंतर्गत, अपने आदेश द्वारा निलंबित अधिकारों के न्यायालय द्वारा प्रवर्तित किये जाने के अधिकार को भी अपने उसी आदेश द्वारा निलंबित कर सकता है |

        न्यायालय द्वारा, उपर्युक्त रीती से निलंबित किये गए किन्ही मूल अधिकारों के प्रवर्तित किये जाने के अधिकार को भी निलम्बित किये जाने के सम्बन्ध में माखन सिंह बनाम पंजाब राज्य (AIR 1964 SC 381) के मामले में उच्चतम न्यायालय नने यह निरुपित किया था कि राष्ट्रपति के आदेश के बावजूद, निरूध्द व्यक्ति अपने अपने - निरोध आदेश की वैधता को इस आधार पर न्यायालय में चुनौती दे सकता है, कि निरोध- आदेश अधिनियम के उपबंधो  के अनुकूल नहीं है या असद्भावनापूर्वक  जारी किया गया है या अत्यधिक प्रत्यायोजन के दोष से युक्त है |

        किन्तु बंदी प्रत्यक्षीकरण ए० डी ० एम० जबलपुर बनाम एस० शुक्ला० (AIR 1976 SC 1207) के मेल में उच्चतम न्यायालय ने अपने उपर्युक्त निर्णय को उलटते हुए यह निर्णय दिया कि की अनु० 359 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा जारी किये गए आदेश  के लागू रहने तक किसी भी व्यक्ति को अपने निरोध -आदेश की वैधता को किसी भी न्यायालय में किसी भी आधार पर चुनौती देने का कोई विधिक अधिकार नहीं होगा |

(6) वे सैनिक के सम्बन्ध में निर्बन्धित या कम किये जा सकते हैं -- अनु० 33 के अनुसार लोक व्यवस्था के रखरखाव के प्रभाव से प्रभावित सेनाओ के सम्बन्ध में संसद कानून द्वारा इन मूल अधिकारों को प्रतिबंधित या कम कर सकती है |

        (7) मार्शल लॉ लागू रहने के दौरान वे प्रतिबंधित किये जा सकते हैं --अनु० 34 के अनुसार संसद विधि द्वारा उस विशेष क्षेत्र  में जहाँ मार्शल लॉ लागू हो, इं मूल अधिकारों को प्रतिबंधित कर सकती है |

        (8) वे संशोधित किये जा सकते हैं - अनु० 368 के अंतर्गत संसद किन्ही भी मूल अधिकारों को संशोधित कर सकती है | 


Source: CLA,

LLB. 3 YEAR  PROGARMME 1st SEMESTER, 2nd PAPER

COSTITUTIONAL  LAW - I
 
DR. RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA 

DR, RMLAU, AYODHYA 

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