वे संविदाएं जिनका विनिर्दिष्ट अनुपालन नहीं कराया जा सकता
1.संविदाए जो विधि में वैध न हो -- धारा 14 (क) यह उपबंध करती है कि किसी ऐसे करार को जो कि संविदा नहीं है , कोई अनुतोष उपलब्ध नहीं होगा | संविदा के अंतर्गत किसी विशिष्ट दोष अथवा अपूर्णता के होने पर और दोष अथवा अपूर्णता की जानकारी हो जाने पर अंशपालन के साम्यिक सिद्धान्त को लागू नहीं करवाया जा सकता है | जैसे--न्यास भंग के दौरान न्यासधारी द्वारा संविदा का किया जाना |
2.संविदाये जिनमे विधिक उपचार पर्याप्त हो --जहाँ संविदा भंग के लिए विधि में क्षतिपूर्ति पर्याप्त अनुतोष है वहां संविदाये निर्दिष्टतः प्रवर्तित नहीं करायी जा सकती |
उदाहरण
'क' 40 नील की पेटियां 'ख' को 1000 रुपये प्रति पेटी बेचने की संविदा करता है उक्त नील बाजार में आसानी से उपलब्ध है | उक्त संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन नहीं हो सकता है क्योंकि प्रतिकार द्वारा क्षतिपूर्ति की जा सकती है |
3.संविदाये जिनमे सेवा अंतर्ग्रस्त हो --संविदा जिनमे सूक्षम अथवा बहुसंख्यक विवरण सम्मिलित हो, अथवा जो पक्षकारों की योग्यता पर अथवा प्रयास पर इतना निर्भर हो अथवा अन्यथा जिनकी प्रकृति ऐसी हो कि न्यायालय उसकी सारवान शर्तों का प्रवर्तन न कर सके , विनिर्दिष्ट प्रवर्तन नहीं कराया जा सकता है | इसमें व्यक्तिगत सेवा, पुस्तक लेखन, विवाह, चित्रकारी आदि की संविदाये आती है |
4.संविदायें जिनमे न्यायालय का निरंतर पर्यवेक्षण अंतर्ग्रस्त है --ऐसी संविदाये जिनमे तीन वर्ष से अधिक काल तक कर्तव्य का निरंतर पालन अपेक्षित हो,जिनका यथावत पालन नहीं कराया जा सकता है | यदि न्यायालय ऐसे मामले में यथावत पालन का आदेश दे तो उससे वादकरण का अंत नहीं होगा बल्कि उसके प्रतिकूल वादियों को लाभ ही होगा | इस प्रकार की संविदाओं में खदानों में काम करने की संविदाये, धर्मशाला की संविदा आदि आती हैं |
5.अनिश्चित शर्तों के साथ संविदा --जहाँ संविदा अनिश्चित है अर्थात जहा विषयवस्तु पक्षकार, मूल्य या अन्य शर्ते निश्चित नहीं है तो वहां उस संविदा का विनिर्दिष्ट पालन नहीं कराया जा सकता है | इसका कारण ऐसे विषयों में विशिष्ट अनुपालन का आदेश अनुदत्त करने की असमर्थता है |
उदाहरण
'क' एक मनोरंजन कक्ष के स्वामी 'ख' से उसकी को बेचने तथा अनावश्यक सामग्री की व्यवस्था करने की संविदा करता है | यहाँ व्यवस्था एवं सामग्री की प्रकृति अनिश्चित है अतः संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन नहीं हो सकता है |
6.निर्माण तथा जीर्णोद्धार की संविदाये --यह स्थापित नियम है कि निर्माण एवं जीर्णोद्धार की संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन नहीं किया जा सकता है | परन्तु न्यायालय निम्न दशा में ऐसी संविदा का प्रवर्तन करा सकता है जहाँ कि वाद ऐसी संविदा का प्रवर्तन करने के लिए हो जो कोई निर्माण करने के लिए या भूमि पर कोई अन्य कार्य के निष्पादन के लिए है |
7.विखंडनीय हितों की संविदाये --न्यायालय उन संविदाओं का विनिर्दिष्ट अनुपालन नहीं करेगा जो अपनी प्रकृति में विखानीय हो अथवा जिनमे अधिकार प्रदान करना तात्पर्यित होता है |
उदाहरण
'क' तथा 'ख' ऐसी व्यापार भागीदारी के भागीदार बनने की संविदा करते हैं जी कि निश्चित अवधि की नहीं है | संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन नहीं कराया जा सकता है |
8.पंच निर्णय के लिए संविदाये --किसी विवाद की मध्यस्थता के लिए निर्देशित करने वाली संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन नहीं कराया जा सकता है |
9.संविदाये जिनमे पारस्परिकता का आभाव हो --संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन तब तक नहीं किया जा सकता है जब तक कि संविदा के दोनों पक्षकारों द्वारा दावा नै किया जा सकता है अथवा अस्वीकृत नहीं किया जा सकता है | इस पर काफी विवाद है कि क्या और कहाँ तक पारस्परिकता के सिद्धांत को माना जाये |
Source: CLA.
LAW OF CONTRACT -I (THE SPECIFIC RELIEF ACT 1963)
Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University Ayodhya
Dr. RMLAU Ayodhya
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