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प्रश्न- किसी संविदा के प्रवर्तन के सम्बन्ध में उसके पक्षकारों का क्या उत्तरदायित्व है? उसके अनुपालन नहीं किये जाने के प्रभावों को "पालन की निविदा" के सन्दर्भ में समझाइए |

         किसी संविदा का पालन उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि कोई संविदा करना महत्वपूर्ण है | संविदा के पालन के अभाव में उस संविदा का कोई अर्थ नहीं रह जाता | संविदा करने का मुख्य उद्देश्य ही उसका पालन करना है |संविदा अधिनियम की धारा 37 में भी यही प्रावधान किया गया है | इसके अनुसार संविदा के प्रत्येक पक्षकार को अपने -अपने भाग का पालन करना चाहिए या पालन करने की प्रस्थापना करनी चाहिए | यदि कोई पक्षकार संविदा के अपने भाग का पालन कर लेता है तो वह संविदा द्वारा उद्भूत अपने दायित्व से उन्मोचित हो जाता है और दूसरा पक्षकार यदि अपने भाग का पालन करने में असफल रहता है तो वह संविदा भंग का दोषी माना जाता है और प्रथम पक्षकार को उसके विरुद्ध कतिपय उपचार प्राप्त हो जाते है |

PERFORMANCE OF CONTRACT


        अपवाद --उक्त नियम का अपवाद है अर्थात किसी संविदा के पक्षकार को अपने भाग का पालन नहीं करना होता है ,यदि उसे संविदा अधिनियम के या अन्य किसी विधि के उपबंधो के अधीन अभिमुक्ति या माफ़ी दे दी गई हो (ए० आई०आर० 1957 इलाहबाद 644) |

        निम्नांकित विधियों के अधीन संविदा के पालन से माफ़ी को इस धारा में संम्मिलित माना गया है --

        (i) परिसीमा विधि 

        (ii) दिवालिया विधि 

        (iii) राजस्थान (भाड़ा और निष्कासन नियंत्रण ) अधिनियम 1950 (आई० एल ० आरo (1955) 5 राजस्थान 575) |

        (iv) हिन्दू विधि के अधीन ' दाम्दूपत का नियम ' (ए ० आई ० आर ० 1946 नागपुर 210 ) |

        वैध प्रतिनिधियों द्वारा पालन --किसी संविदा का पालन या तो स्वय पक्षकार द्वारा किया जा सकता है या फिर उसके वैध प्रतिनिधियों द्वारा | पालन से पूर्व वचनदाताओं की मृत्यु हो जाने पर संविदा में के पक्षकारों के विनिर्दिष्ट अनुपालन की मांग कर सकते हैं और प्रतिकूल आशय के अभाव में वे संविदा के पालन के लिए आबद्ध भी होते हैं (ए० आई ० आर ० 1976 बम्बई 97) |

        उदाहरणार्थ --हकशुफ़ा की संविदा को पक्षकारों के वैध प्रतिनिधियों के विरुद्ध प्रवर्तित किया जा सकता है (ए० आई ० आर ० 1967 एस ० सी o 744 ) |

        वैयक्तिक कुशलता पर आधारित संविदाओ का पालन --कतिपय संविदाये ऐसी होती हैं जिनका पालन करना पक्षकार की वैयक्तिक कुशलता पर निर्भर करता है ,जैसे --चित्र बनाने के संविदा , पुस्तक लिखने की संविदा , नाचने और गाने की संविदा, सेवा संविदा आदि | ऐसी संविदाओ का पालन करने के लिए स्वयं ही आबद्धकर होते हैं, उनके वैध प्रतिनिधि नहीं (ए० आई ० आर ० 1954 उड़ीसा 241) |

        संविदा के पालन के दायित्व से उन्मोचित होने की विभिन्न रीतियाँ --किसी संविदा के पालन के दायित्व से निम्नाकित आधारों पर उन्मोचित हुआ कहा जा सकता है --

        (i) संविदा के पालन द्वारा,

        (ii) जब पालन असंभव अथवा अविधिपूर्ण हो जाये,

        (iii) जहा संविदा का पालन किसी पक्षकार की वैयक्तिक कुशलता पर आधारित हो, वहां ऐसे पक्षकार की मृत्यु हो जाने पर,

        (iv) विखंडन द्वारा,

        (v) नवीनीकरण द्वारा, 

        (vi) परिहार द्वारा,

        (vii) तुष्टि एवं सहमति द्वारा,

        (viii) अन्य विधियों के प्रवर्तन द्वारा |

        पालन की प्रस्थापना (पालन की निविदा ) प्रग्रहीत करने से इन्कार करने का प्रभाव --संविदा के प्रत्येक पक्षकार को अपने - पाने भाग का पालन करना चाहिए या पालन करने की प्रस्थापना (Offer of performance or tender) करना चाहिए | यदि एक पक्षकार संविदा के पाने भाग का पालन कर लेता है और दूसरा पक्षकार पालन करने में असफल रहता है तो वह संविदा भंग का दोषी माना जाता है | इसी प्रकार यदि संविदा का एक पक्षकार अपने भाग का पालन करने की प्रस्थापना करता है और उस प्रस्थापना को प्रतिगृहीत नहीं करता है तो प्रस्थापना करने वाला पक्षकार --

        (i) अपालन के लिए उत्तरदायी नहीं रह जाता, एवं 

        (ii) वह संविदा के अधीन अपने अधिकारों को नहीं खोता है ( धारा 38 ) |

        ' पालन की प्रस्थापना ' को इंग्लिश विधि में 'निविदान ' (Tender) के नाम से सम्बोधित किया जाता है |विधिमान्य निविदान का प्रभाव यह माना जाता है कि मनो निविदान करने वाले व्यक्ति ने संविदा का पलान कर लिया है (ए० आई० आर० 1928 कलकत्ता 68 ) |

        उदाहरणार्थ--यदि  ऋण ऋणदाता को शोध्यराशि का संदाय करने की विधिपूर्ण प्रस्थापना करता है तो ऋणदाता तो ऋणदाता उसे स्वीकार करने के लिए आबद्धकर होता है (ए० आई ० आर ० 1955 इलाहबाद 350 ) | यदि वह ऐसे ऋण को स्वीकार करने से इन्कार कर देता है तो ऋणी को संविदा भंग का दोषी नहीं माना जा सकता |

        किसी ऋण के 'आंशिक संदाय ' की प्रस्थापना विधिमान्य नहीं है | समुचित प्रस्थापना के लिए यह आवश्यक है कि वह सम्पूर्ण शोध्य राशि के लिए हो |


Source: CLA.

LAW OF CONTRACT -I (THE SPECIFIC RELIEF ACT 1963)

Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University Ayodhya 

Dr. RMLAU Ayodhya

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