1. लिखितो का प्रतिसंहरण
(Cancellation of instruments)
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 30 तथा 33 यह व्यवस्था करती है कि वादी जिसके लिए संविदा शून्य या शून्यकरणीय है, विशेष रूप से न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर घोषणा करा सकता है कि लिखित संविधान जो शून्यकरणीय है, को निरस्त किया जाये और वह प्रलेख वादी को दिया जाये या निरस्त (रद्द) किया जाये | ऐसा वादी इसलिए आवश्यक समझता है कि उस प्रलेख को रद्द नहीं किया गया तो प्रतिवादी या वह व्यक्ति जिसके पास वह प्रलेख होगा आगे इससे लाभ ले सकता है | लाभ अर्जित करने के बदले में प्रतिकर प्राप्त करने वाले पक्षकार को लाभ मूल्य सिद्ध करना होगा | गोविन्दराम बनाम एडवर्ड रेड्बोन, (1974) आई० ए० 295]
उदाहरण
'अ' एक अनपढ़ वृद्ध महिला से वसीयत पर इस आशय के साथ हस्ताक्षर करा लेता है कि मूल प्रलेख से उसे राज्य से पैसा मिलेगा | वृद्ध महिला से वास्तविक तथ्य की जानकारी होने पर वह न्यायालय से प्रार्थना कर सकती है कि यह घोषित किया जाय कि उसका हस्ताक्षर युक्त प्रलेख वसीयतनामा कपट से लिखाया गया है इसलिए वह निरस्त कर रद्द किया जाये |
यदि उत्पीडन, कपट,अनुचित प्रभाव, मिथ्या वर्णन, तथ्य व विधि की भूल, असम्भवता,अवैधानिक प्रतिफल के फलस्वरूप कोई संविदा जिसके परिणामस्वरुप एक या अधिक पक्षो के अधिकार व अन्य कर्तव्यों का उद्भव होता है तो ऐसी संविदा शून्य या शून्यकरणीय है, और पीड़ित पक्षकार उनको निरस्त करवा सकता है | धारा 31 यह अधिकार देती है कि ऐसे प्रलेखों को वह पक्षकार मांग सकता है या रद्द करवा सकता है |
2. पारस्परिक करार का सिद्धांत
(Doctrine of Mutuality)
यह नियम पारस्परिकता के सिद्धान्त पर आधारित है | पारस्परिकता के सिद्धान्त का मतलब यह है कि संविदा का प्रवर्तन दोनों पक्षकारों द्वारा किया जाना चाहिये | अर्थात संविदा के पक्षकार का उसके प्रवर्तन की स्वतन्रता होनी चाहिए, संविदा की शर्तों के अनुसार जहाँ प्रतिवादी संविद को शून्य घोषित नहीं करवा सकता, लेकिन वादी के हक़ में संविदा के विनिर्दिष्ट अनुपालन की डिक्री देने से प्रतिवादी के साथ असमान और अन्यायपूर्ण व्यव्हार होगा तो न्यायालय संविदा के विनिर्दिष्ट अनुपालन की डिक्री जारी नहीं करेगा | पारस्परिक करार के सिद्धांतानुसार यह आवश्यक है कि संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन उसी समय करवाया जा सकता है जबकि संविदा के दोनों पक्षकार उसकी शर्तों के अनुसार आपसी कार्य को पूरा करे | जहाँ संविदा की शर्तों में संविदा के दोनों पक्षकारों को किसी कार्य को करने के लिए बाध्य किया जा सकता है तो ऐसी स्थिति में संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन वादी द्वारा अपनी ओर से कार्य को पूरा करने के बाद या प्रतिवादी द्वारा वादी के कार्य करने वाले कार्य त्याग देने के बाद ही संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन करवाया जा सकता है | भारत में अवयस्क से की गयी संविदा शून्य मानी जाती है और इसी कारण पारस्परिक करार का सिद्धांत अवयस्क के मामले में लागू नहीं होता | इस अधिनियम के लागू होने के बाद अब भारत में यह सिद्धांत समाप्त हो गया है | मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रदीप कुमार बनाम इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट , (1978) में निर्धारित किया गया कि धारा 20 (4) में प्रयोग की गई भाषा से यह अनुमान नहीं निकाला जा सकता है कि पारस्परिकता का सिद्धांत भारत में पूर्ण रूप से समाप्त हो गया है | धारा 20 (4) में प्रयोग किये गए शब्दों से प्रकट होता है कि न्यायालय केवल इसी कारण से संविदा के विनिर्दिष्ट अनुपालन का उपचार प्रदान करने से इन्कार नहीं कर सकता कि यह संविदा दूसरे पक्षकार की इच्छा पर प्रवर्तनीय नहीं है |
अन्य परिस्थितियों के साथ यह भी उपचार देने से इन्कार करने का एक ही कारण हो सकता है लेकिन केवल इसी कारण के आधार पर उपचार देने से इन्कार नहीं किया जा सकता |
3. विवाह के लिए संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन
विनिर्दिष्ट अनुपालन की डिक्री वहां प्रदान की जायेगी जहाँ प्रतिकार के रूप में क्षतिपूर्ति पूर्ण अनुतोष नही है | विनिर्दिष्ट अनुपालन की आज्ञा उस समय तक प्रदान नहीं करेगी जब तक कि संविदा भंग न हुई हो |
विवाह के लिए की गई संविदा के भंग होने पर विनिर्दिष्ट अनुपालन का अनुतोष अनुदत्त नहीं किया जा सकता क्योंकि विवाह की संविदा के भंग होने पर जिस पक्षकार को हानि हुई है वह प्रतिकार के लिए दावा दायर कर सकता है |
4. उधार देने की संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन
उधार देने के लिए किये गए करार का विनिर्दिष्ट अनुपालन नहीं कराया जा सकेगा क्योंकि विनिर्दिष्ट अधिनियम की धारा 14 कहती है कि जहाँ संविदा के पालन के लिए धन पर्याप्त अनुतोष है अर्थात जंगम संपत्ति के हस्तांतरण की संविदा के भग्नता के लिए (Frustration of contract) को छोड़कर जिनका उल्लेख धारा 10 में पहले किया गया है वहां उधार देने के लिए की गई संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन नहीं कराया जायेगा |
Source: CLA
LAW OF CONTRACT - I
THE SPECIFIC RELIEF ACT 1963
DR. RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA
DR. RMLAU, AYODHYA
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