भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं
भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं -
1. विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान --भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है | विश्व के किसी भी देश का इतना बड़ा और विस्तृत नहीं है | प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक सर आइवर जेनिंग्स का कथन सही है कि भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा और विस्तृत संविधान है |
2. सम्पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, लोकतंत्रात्मक, पंथनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य की भारत में स्थापना -- यह संविधान भारत में एक प्रभुत्व सम्पन्न, लोकतंत्रात्मक,पंथनिरपेक्ष,समाजवादी गणराज्य की स्थापना करने की बात अपनी उद्देशिका (Preamble) me hi कहता है |
3.संसदीय प्रणाली की सरकार की स्थापना --यह संविधान भारत में इंग्लैंड की तरह की संसदीय प्रणाली की सरकार की स्थापना करता है, जिसमें राष्ट्रपति भारतीय संघ का नाम मात्र का संवैधानिक प्रमुख है, जबकि वास्तविक कार्यपालिका शक्ति मंत्र परिषद के हाथों में सौंपी गई है | यह मंत्री परिषद जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा होती है |
4. द्विसदनात्मक विधानमंडल की स्थापना-- या संविधान संघीय संसद (केंद्रीय विधान मंडल) में दो सदनों -- (1) लोकसभा और (2) राज्यसभा की व्यवस्था करता है | लोकसभा निम्न सदन कहलाती है , जिसमें प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने हुए जनता के प्रतिनिधि बैठते हैं | राज्यसभा उच्च सदन कहलाती है, जिसमें राज्यों के विधान सभाओ के चुने हुए जनप्रतिनिधियों द्वारा चुने गए जन प्रतिनिधि बैठते हैं | राष्ट्रपति,लोकसभा और राज्यसभा, इन तीनों को मिलाकर केंद्रीय विधान मंडल गठित होती है, जिसको भारत की ससंद कहते है |
5. पूर्ण वयस्क मताधिकार की व्यवस्था--यह संविधान देश में प्रजातंत्रीय सरकार की स्थापना करने के लिए पूर्ण वयस्क मताधिकार की व्यवस्था भी करता है | इस व्यवस्था के अंतर्गत देश के प्रत्येक स्त्री और पुरुष को चुनाव में मतदान करने का और इस प्रकार से अपने जन प्रतिनिधि का चुनाव करने का अधिकार प्रदान किया गया है | 61वे संविधान संशोधन द्वारा व्यस्क मताधिकार की न्यूनतम आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई |
6. मूल अधिकार --यह संविधान अपने देश के नागरिको के लिए कुछ ऐसे मूल अधिकारों की घोषणा करता है ,जो उनके व्यक्तित्व और बहुमुखी विकास के लिए आवश्यक होता है | यह स्वाभाविक ही है कि जब हमने लोकतांत्रिक पद्धति की सरकार अपनाई है ,तो देश की जनता को ऐसे मूल अधिकार प्रदान किये ही जाये | यही नहीं ,बल्कि इन मूल अधिकारों को राज्य के विरुद्ध लागू करवाने के लिए उच्चतम न्यायालय को शक्ति प्रदान की गई है वह भी मूल अधिकारों में शामिल है |
7. नागरिको के मूल कर्त्तव्य --संविधान 42वे संशोधन अधिनियम 1976 के द्वारा एक नया भाग 4 [क] और उसके अंतर्गत एक नया अनुच्छेद 51 [क] जोड़कर भारत के सभी नागरिको को कुछ मूल कर्तव्यों का पालन करने के लिए भी कहा है | ये 10 कर्त्तव्य है -जैसे संविधान का पालन करना ,उसके आदर्शो तथा संस्थाओ का ,राष्ट्रीयध्वज और राष्ट्रीयगान का आदर करना ,भारत की प्रभुसत्ता ,एकता और अखंडता की रक्षा करना ,देश की रक्षा करना इत्यादि |
8. राज्य-निति के निदेशक सिद्धांतो की घोषणा-- लोक कल्याणकारी राज्य का सपना पूरा करने के लिए यह संविधान राज्य के नीति के ऐसे कुछ तत्वों की घोषणा करता है ,.जिसका पालन करना राज्य का परम कर्त्तव्य है | ये तत्व जनता को आर्थिक,राजनीतिक और सामाजिक न्याय दिलाने के लिए सिद्धांत के रूप में आवश्यक है |
इन निदेशक तत्वों के अंतर्गत जिन कार्यो को करने लिए राज्य से कहा गया है ,वे लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करने में सहायक है | ग्लेनविल आस्टिन ने इन तत्वों को 'राज्य की आत्मा ' कहा है
9.पंथ निरपेक्ष राज्य की स्थापना-- यह संविधान किसी भी विशेष पंथ को राज्य का धर्म घोषित न करते हुए सभी धर्मो के लोगो को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करके और सभी धर्मो के समान आदर की नजर से देखते हुए भारत में एक पंथ निरपेक्ष राज्य की स्थापना करता है |
10. संघात्मक और एकात्मक स्वरुप का मिश्रण -- यह संविधान सामान्य स्थित में और मूलभूत रूप से संघात्मक ही है | केवल संकट कालीन स्थिति में वह एकात्मक हो जाता है ,क्योंकि उस समय केन्द्र को अधिभावी शक्तियां प्राप्त हो जाती है | सामान्य स्थिति में भारतीय संघ में शामिल इकाई राज्य अपने आंतरिक प्रसाशन में स्वतंत्र रहते है और संविधान के कुछ उपबन्धो में संसद तभी संशोधन कर सकती है ,जब ऐसे संशोधनो से आधे दे अधिक सहमत हो | सारे देश के लिए सर्वोच्च विधि के रूप में एक ही संबिधान लागू है ,उच्चत न्यायालय के रूप में एक ही उच्चतम न्यायालय है ,और एक ही नागरिकता लागू है -इन लक्षणों के साथ यह संविधान संघात्मक है ,जबकि संकटकालीन स्थिति में राष्ट्रपति द्वारा आपात उद्घोषणा लागू किए जाने पर वह देश की अखंडता और रक्षा के लिए केन्द्रीय सरकार को अधिक शक्तिशाली बना देता है |
11. लचीला और कठोर दोनों है --यह संबिधान लचीला और कठोर दोनों है और इस प्रकार नम्यता (Flexibility) और अनम्यता (Rigidity) दोनों लका अनोखा सम्मिश्रण है | उसमे आवश्यकतानुसार समय समय पर संशोधन किये जा सकते हैं | यह इस बात का सबूत है कि वह लचीला (नम्य) है | उसे कठोर इसलिए कहा जाता है कि संशोधनों को संसद को विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है | कुछ विशेष प्रावधानों के संशोधनों के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे संशोधनो को संसद के दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाय और साथ ही उन पर कम-से-कम आधे राज्यों की स्वीकृति भी प्राप्त की जाय |
12. स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना -- इस संबिधान द्वारा सारे देश के लिए एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई है, जो कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त है और उसे इतना शक्तिशाली बनाया गया है कि वह केंद्र और राज्यों के बीच, उत्पन्न संवैधानिक विवादों का निपटारा कर सके | एक ओर तो यह संविधानका संरक्षक है, दूसरी ओर वह राज्य के अतिक्रमण के विरुद्ध नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करतेहुए मूल अधिकारों का रक्षक है | इसी प्रकार राज्यों में एक- एक उच्च न्यायालयों की स्य्थापना की गई है और वे सभी कार्यपालिका के ऊपर नियंत्रण रखते है और राज्य के विरुद्ध विभिन्न प्रकार के लेख (Writes) उसी प्रकार जारी करने की शक्ति रखते है, जिस प्रकार उच्चतम न्यायालय रखता है |
13. इकहरी नागरिकता --इस संविधान द्वारा सारे देश के लिए एक ही नागरिकता मान्य की गई है | देश के किसी भी राज्य का नागरिक केवल भारत का नागरिक है | अमेरिका में दुहरी नागरिकता की व्यवस्था की गई है -एक अमेरिकी संघ की और दूसरी उन पृथक-पृथक राज्यो की जो अमेरिकी संघ में शामिल है |
Source: CLA,
LLB. 3 YEAR PROGAMME, 1st SEMESTER, 2nd PAPER
COSNTITUTIONAL LAW - I
DR. RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA
DR. RMLAU, AYODHYA
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