भारतीय संविधान की प्रकृति
विधिशास्त्री संविधानो को प्रायः दो भागो में विभक्त करते हैं --परिसंघात्मक(federal) तथा एकात्मक (Unitary) | एकात्मक संविधान वह संविधान है जिसके अंतर्गत सारी शक्तियां एक ही सरकार में निहित होती हैं, जो प्रायः केन्द्रीय सरकार होती हैं, प्रान्तों को केन्द्रीय सरकार के अधीन रहना पड़ता है | इसके विपरीत परिसंघात्मक संविधान वह संविधान है, जिसमे शक्तियों का केंद्र एवं राज्यों के बीच विभाजन रहता है और दोनों सरकार अपने-अपने क्षेत्रो में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं |
भारतीय संविधान की प्रकृति कैसी है, यह संविधान विशेसज्ञों के बीच विवाद का विषय रहा है | कुछ विद्वानों का मत है कि भारतीय संविधान एकात्मक है, केवल उसमे कुछ परिसंघीय लक्षण विद्यमान है | प्रोफ़ेसर ह्वियर के अनुसार, भारत का संविधा न प्रबल केन्द्रीयकरण प्रवृतियुक्त परिसंघीय है |
कोई संविधान परिसंघात्मक है या नहीं इसके लिए हमें यह जानना चाहिए कि उसके आवश्यक तत्व क्या हैं ?
परिसंघात्मक संविधान के आवश्यक तत्व
(Essential Characteristics of a Federal Constitution)
किसी संविधान को संघात्मक कहलाने के लिए उसमे निम्न लिखित तत्त्वो का होना आवश्यक है --
1. संविधान की सर्वोच्चता-- परिसंघात्मक संविधान सर्वोच्च होता है, क्यिंकि परिसंघीय राज्य का जन्म संविधान से होता है | उच्चतम न्यायालय ने ए० के० गोपालन बनाम मद्रास राज्य, (AIR 1952 S.C. 27) ; केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (AIR 1973 SC 1461 ) आदि अनेक मामलों में अभिनिर्धारित किया है कि भारत का संविधान सर्वोच्च है इस दृष्टि से भारत का संविधान परिसंघात्मक है |
शक्तियो का वितरण-- परिसंघात्मक संविधान का मेरुदंड है -परिसंघ और उसकी इकाईयो में शक्तियो का विभाजन | भारतीय संविधान में भारत संघ और उसकी इकइयो अर्थात राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है | इस दृष्टि से तीन सूचियों के लिए उपबंध किया गया है , जो कि इस प्रकार है --(1) संघ सूची, (2)राज्य सूची और (3) समवर्ती सूची | संघ सूची में शामिल किये गए विषयों पर केवल परिसंघ विधान मण्डल अर्थात संसद ही विधि बना सकती है राज्य सूची संन्विष्ट में किए गए विषयो पर केवल राज्य के विधान मण्डल ही विधि बना सकते है | समवर्ती सूचि में दिए गए विषयो पर संसद और राज्य के विधान मण्डल दोनों ही विधि बना सकते हैं |अतएव यह कहना सही कि भारत का संविधान परिसंघात्मक है |
3. लिखित संविधान -- परिसंघीय संविधान लिखित होता है; क्योंकि शक्तियों के विभाजन की योजना अधिलिखित संविधान या मौखिक समझौते से सुरक्षित नहीं रह सकती | भारत का संविधान लिखित है | अतएव भारत का संविधान परिसंघीय है |
4. द्वैध शासन -- ऐकिक राज्य में एक सरकार होती है अर्थात राष्ट्रीय सरकार | परिसंघीय सरकार के अनुसार परिसंघीय राज्य में दो सरकारे होती हैं - राष्ट्रीय या परिसंघीय सरकार और प्रत्येक संघटक राज्य की सरकार | हमारे संविधान द्वरा ऐसी शासन व्यवस्था बनायीं गई है | इस दृष्टि से भारत का संविधान परिसंघीय है |
5.कठोरता -- परिसंघीय संविधान कठोर होता है, ताकि शक्ति वितरण की व्यवस्था कायम रहे | यह तत्व भी भारतीय संविधान में विद्यमान है क्योंकि संविधान का संशोधन अनुच्छेद 368 के अधीन विहित की गई प्रक्रिया के अनुसार ही किया जा सकता है अन्यथा नहीं |
6.न्यायालय का प्राधिकरण-- परिसंघीय राज्य में संविधान की विधिक सर्वोच्चता परिसंघीय प्रणाली के लिए आवश्यक है | सरकार की समकक्ष शाखाओं के बीच और परिसंघीय शासन और संघटक राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन को बनाये रखना अपरिहार्य है | यह सुनिश्चित करने के लिए कि न्यायालय में संविधान के निर्वचन की सर्वोच्च शक्ति निहित होती है, न्यायालय को यह शक्ति प्राप्त होती है,कि वह परिसंघीय और राज्य सरकारों द्वारा किए गए ऐसे कार्यों को शून्य घोषित कर दे जो संविधान के उपबंधों का उल्लंघन करते हैं | यह कार्य भारत में उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों को सौपा गया है |
हामारे संविधान द्वारा जिस राजनितिक प्रणाली को अपनाया गया है, उसमे परिसंघीय राज्य-व्यवस्थाके सभी तत्व विद्यमान है | अतएव हमारा संविधान परिसंघत्मक है |
क्या भारत का संविधान परिसंघात्मक,अर्धपरिसंघात्मक,अथवा एकात्मक है ?
प्रो०व्हियरऔर जेनिंग्स जैसे कुछ विदेशी संविधानवेत्ताओ ने हमारे संविधान को संघात्मक मानाने में आपत्ति की है | प्रो० व्हियर के अनुसार,संघात्मक संविधान में कुछ अपवाद हो सकते है, किन्तु उसमे परिसंघात्मक तत्त्वों की प्रधानता होती है | यदि किसी संविधान में ऐसे तत्व हैं, जो संघात्मक तत्वों को गौण बना देते हैं,तो वह संविधान परिसंघात्मक नहीं रह जाता है | इस संविधान की कसौटी पर प्रो० व्हियर भारतीय संविधान को एक अर्धसंघीय (quasi-federal) संविधान अथवा एक ऐसा एकात्मक राज्य मानते हैं, जिसमे एकात्मक तत्व सहायक कहे जा सकते हैं |
जेनिंग्स ने भारतीय संविधान को ऐसा संविधान कहा है , जिसमे विकेन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति सबल है |
भारतीय संविधान के निम्नलिखित उपबंधो के कारण आलोचक उसे शुद्ध संघात्मक मानने से आपत्ति करते हैं --
(1) राज्यपाल की नियुक्ति-- राष्ट्रपति प्रत्येक राज्यपाल के लिए एक राज्य पल नियुक्त करता है, जो राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत अपने पद पर पदासीन रह सकता है | वह राष्ट्रपति न कि विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी होता है | जबकि दूसरी ओर वह बहुत कुछ बातों में अपने विवेक के अनुसार करने के लिए स्वतंत्र होता है और बिना उसकी स्वीकृति के कोई विधेयक राज्य की विधि नहीं बन सकता है और कुछ विधेयक को वह राष्ट्रपति के विचार के लिए रोक सकता है |
आलोचकों के अनुसार, यह व्यवस्था परिसंघीय सिद्धांत के विरुद्ध है, क्योंकि इससे राज्यों की स्वायत्तता पर आघात पहुचता है |
आलोचना का खण्डन -- संविधान के अनुसार, राज्यपाल केंद्र का प्रतिनिधि और राज्य का संवैधानिक प्रमुख अवश्य है, किन्तु व्यवहार में वह राज के मंत्रिमंडल के परामर्श और सहयोग से ही संविधान के अंतर्गत कार्य करता है |
(2) राज्य सूची के विषय पर भी विधि बनाने की संसद की शक्ति -- संविधान के अनुछेद 249 के अनुसार, यदि राज्य सभा दो-तिहाई बहुमत से यह घोषित करे कि राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक और इष्टकर है कि संसद राज्यसूची के किसी विषय पर विधि बनाये, तब संसद ऐसी विधि बना सकती है |
(3) नए राज्यों के निर्माण एवं वर्मन राज्यों के क्षेत्रों, सीमओं या नामो के बदलने की शक्ति --संविधान के अनुच्छेद 3 संसद के नए राज्यों के निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमओं या नामो के बदलने की शक्ति प्रदान करता है | इसलिए आलोचक कहते है कि इससे राज्यों का अस्तित्व केंद्र की इच्छा पर निर्भर करता है जो संघीय सिधांत पर एक बहुत बड़ा आघात है |
(4)आपात-उद्घोषणा के लिए उपबंध --भारतीय संविधान में आपात- उद्घोषणा के सम्बन्ध में जो व्यस्था की गई है, उससे निश्चय ही राज्यों की स्वतन्रताकेन्द्रीय सत्ता में लुप्त हो जाती है और उस समय भारतीय संघ एकात्मक राज्य बन जाता है | आलोचकों की यह आलोचना सही है, किन्तु यह एक अपवाद है,जिसके अंतर्गत ऐसे संकटकाल से निपटने के लिए केब्द्र को अधिभाव्की शक्ति प्रदान की गई है |
निष्कर्ष--हमारा संविधान पूर्व-अनुभवो के आधार पर देश की समसामयिक आवश्यकताओ और हितो को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है | भले ही उसमें अमेरिकी संविधान की तरह शुद्ध परिसंघियता न हो, फिर भी परिसंघात्मक संविधान के आवश्यक सभी तत्त्व मौजूद हैं | प्रत्येक राज्य की परिसंघियता का स्वरुप उस देश की अपनी ऐतिहासिक, राजनितिक, भोगोलिक,आर्थिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है | भारत की ऐसीही विशेष परिस्थितियों ने हमारे संविधान-निर्माताओ का ध्यान इस बात की ओर खिंचा कि केंद्र को सशक्त बनाये रखना आवश्यक है | इसलिए हमारा संविधान केन्द्रोंमुखीअवश्य है और अधिक से हम यह कह सकते हैं कि वह पर्संघियता और एकात्मकता का एक अनोखा सम्श्रमिण है |
Source: CLA,
LLB. 3 YEAR PROGAMME, 1st SEMESTER, 2nd PAPER
COSNTITUTIONAL LAW - I
DR. RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA
DR. RMLAU, AYODHYA
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