प्रतिफल (Consideration)
संविदा निर्माण के लिए प्रतिफल का होना अत्यंत आवश्यक है | प्रतिफल को भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2 (d) में परिभाषित किया गया है | जिसके अनुसार - "जब एक प्रतिज्ञाकर्ता की इच्छा पर प्रतिज्ञाग्रहीता या अन्य व्यक्ति ने कोई कार्य किया है या करने से प्रतिविरत रहा है या करता है , या करने से प्रतिविरत रहता है , या करने की या प्रतिविरत रहने की प्रतिज्ञा करता है तब ऐसा कार्य या प्रतिविरत या प्रतिज्ञा , उस प्रतिज्ञा के लिए प्रतिफल कहलाती है |
उदाहरण
'अ' 'ब' से एक घडी 500 रूपये में क्रय कर लेने का प्रस्ताव करता है | 'ब' 500 रूपये में इसको खरीदने की अपनी स्वीकृति देता है | यहाँ 500 रूपये 'अ' के लिए घडी का प्रतिफल है |
प्रतिफल की परिभाषा से निम्नलिखित तत्व निकलते हैं -
- प्रतिज्ञाकर्ता की इच्छा पर,
- प्रतिज्ञाग्रहीता या अन्य कोई व्यक्ति,
- कोई कार्य किया या उससे प्रतिविरत रहा,
- या करता है या प्रतिविरत रहता है ,
- या करने या प्रतिविरत रहने की प्रतिज्ञा करता है ,
- तब ऐसा कार्य या प्रतिविरति या प्रतिज्ञा या प्रतिज्ञा के लिए प्रतिफल कहलाता है |
- प्रतिफल का वचनदाता के लिए लाभकारी होना आवश्यक नहीं है |
- प्रतिफल का वास्तविक होना आवश्यक है |
- प्रतिफल का वैध होना आवश्यक है |
- प्रतिफल पर्याप्त या अपर्याप्त भी हो सकता है |
- प्रतिफल भूतकालिक , वर्तमान तथा भावी हो सकता है |
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