भारतीय संविधान : कठोरे लचीला ( एक साथ )
लचीला संविधान (flexible Constitution)-- अलिखित संविधान साधारणतया लचीला संविधान होता है, जैसे कि इंग्लैंड का संविधान | लचीले संविधान में सभी विषयो को एक ही प्रक्रिया से संसद द्वारा चाहे जब संशोधित किया जा सकता है | लचीले संविधान में संसद सर्वोच्च होती है, न्यायालय संसद द्वारा निर्मित विधि को असंवैधानिक घोषित नहीं कर सकता |

कठोर संविधान (Rigid Constitution)-- लिखित संविधान का मुख्य लक्षण उसकी कठोरता होती है, अर्थात प्रत्येक लिखित संविधान कठोर होता है, जैसे कनाडा,भारत आदि देशो का संविधान | कठोर संविधान में संविधान सर्वोच्च विधि होती है | तथा उसमे विशिष्ट प्रक्रिया से ही परिवर्तन हो सकता है | न्यायालय संविधान के अनुसार ही विधियों की व्याख्या करता है |
भारतीय संविधान (Indian Constitution)
भारतीय संविधान कुछ अंशो में लचीला है, तो कुछ अंशो में कठोर भी है | इस प्रकार यह नम्यता और अनम्यता का अनोखा सम्मिश्रण है | भारतीय संविधान की परिवर्तनशीलता के सम्बन्ध में पंडित जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि, हलाकि हम इस संविधान को इतना ठोस और स्थायी बनाना चाहते हैं, जितना कि हम बना सकें, फिर भी संविधान में कोई स्थायित्व नहीं है | उसमे कुछ सीमा तक परिवर्तनशीलता होनी ही चाहिए | यदि आप किसी वस्तु को अपरिवर्तनशील और स्थायी बना देंगे तो आप राष्ट्र की प्रगति को भी रोक देंगे और इस प्रकार की दशा में इतना अनम्य नहीं बना सकते कि वह बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन न हो सके |
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया उपबंधित की गई है | केवल संसद ही संविधान में संशोधन कर सकती है और ऐसा करते समय उसे अनु ० 368 में विहित प्रक्रिया का अनुसरण करना पड़ता है | इस प्रक्रिया के अनुसार, संविधान के संशोधन के लिए कोई विधेयक संसद के किसी सदन में पेश किया जा सकता है, किन्तु उसे प्रत्येक सदन से पारित होना आवश्यक है | जिस सदन में उसे पेश किया जाय, उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत से और सदन में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से उसे पारित किया जाना आवश्यक है |
यह विशेष बहुमत से विधेयक के पारित किये जाने की प्रक्रिया है | संविधान के अधिकांश उपबंधो के संशोधन के लिए इसी प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है | कुछ उपबंधो में केवल साधारण बहुमत से ही, अर्थात किसी सदन के कुल संख्या के बहुमत से संशोधन किया जा सकता है | ये उपबंध अनुच्छेद 4,189 और 240 के हैं, किन्तु निम्नलिखित उपबन्धों में संशोधन करने के लिए विशेष बहुमत के साथ कम - से - कम आधे राज्यों का अनुसमर्थन प्राप्त करना भी अनिवार्य बना दिया गया है --
1. अनु ० 54, 55, 73, 162,या अनु ० 241; या
2. भाग 5 का अध्याय 4 (अर्थात संघ न्यायपालिका से सम्बंधित अनुच्छेद अनु ० 124 से लेकर अनु० 147 तक ) ; या
3. भाग 6 के अध्याय 5 (अर्थात राज्यों के उच्च न्यायालयों से सम्बंधित अनुच्छेद 214 से लेकर 231 तक );या
4. भाग 11 का अध्याय 1 (अर्थात संघ और राज्यों के बीच ) विधायी शक्तियों के विभाजन से सम्बंधित (अनु० 245 से लेकर अनु० 255 तक ); या
5. सातवी अनुसूची कोई भी सूची -( 1 ) संघ सूची, ( 2 ) राज्य सूची, या ( 3 ) समवर्ती सूची; या
6. संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व से सम्बंधित अनुसूची 4; या
7. अनु० 368 के उपबंध |
उपर्युक्त प्रक्रिया के अनुसार संविधान में कुछ बातो के संशोधन के सम्बन्ध में जहाँ एक ओर वह लचीला है, वाही दूसरी ओर कुछ बातों के सम्बन्ध में वह कठोर भी है किन्तु वह न तो लचीला है, जितना कि इंग्लैंड का संविधान न वह इतना अधिक कठोर है, जितना अधिक कि अमेरिका का संविधान है |
Source: CLA,
LLB. 3 YEAR PROGARMME 1st SEMESTER, 2nd PAPER
COSTITUTIONAL LAW - I
DR. RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA
DR, RMLAU, AYODHYA
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