- नैतिक दोष नहीं होता;
- धोखा देने का आशय नहीं होता ;
- सदभावना विद्यमान रहती है;
- मात्र संयोगवश कोई पक्षकार भुलावे में पड़ जाता है |
- एक पक्षकार द्वारा दुसरे पक्षकार से किसी तथ्य का निरूपण अथवा व्यपदेशन किया जाना;
- ऐसे तथ्य के सम्बन्ध में जो वस्तुतः सत्य नहीं है , सत्य होने का विश्वास करते हुए निरूपण किया जाना ;
- ऐसे निरूपण से दूसरे पक्षकार का भुलावे में पड़ जाना; एवं
- ऐसे निरूपण का इस प्रकार का होना कि जिसका प्रभाव दूसरे पक्षकार द्वारा संविदा पर स्वीकृति देने का हो |
- कपट- कपट से प्रवंचना कारित करने का आशय रहता है |
- मिथ्या दुर्व्यपदेशन- दुर्व्यपदेशन में ऐसा कोई आशय नहीं होता |
- कपट- कपट से प्रेरित संविदा को भंग किया जा सकता है एवं पीड़ित पक्षकार क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होगा |
- मिथ्या दुर्व्यपदेशन- दुर्व्यपदेशन से प्रेरित संविदाओं को केवल भंग किया जा सकता है , क्षतिपूर्ति प्राप्त नहीं की जा सकती |
- कपट- कपट के मामलों में वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध कपट का आरोप लगाया गया है , अपने बचाव में यह कह कर उत्तर दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता कि पीड़ित व्यक्ति के पास सत्यता का पता लगाने के साधन मौजूद थे |
- मिथ्या दुर्व्यपदेशन- दुर्व्यपदेशन के मामलों में यह प्रतिवाद प्रस्तुत किया जा सकता है |
Source: CLA, LLB. 3 Year Programme, 1st Semester, 1st Paper,
PAPER- LAW OF CONTRACT - I
Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University Ayodhya
Dr. RMLAU Ayodhya
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