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प्रश्न- मिथ्या दुर्व्यपदेशन की परिभाषा दीजिए | इसके आवश्यक तत्वों का उल्लेख करते हुए कपट और मिथ्या दुर्व्यपदेशन में अंतर स्पष्ट कीजिये |

        
            दुर्व्यपदेशन जिसे मिथ्या व्यपदेशन भी कहते हैं, संविदा को दूषित करने वाला एक तत्त्व है | कपट से यह थोडा भिन्न है | सिर्फ एक तत्व ऐसा है जो इसे कपट से भिन्न करता है | कपट में जो व्यक्ति किसी बात का सुझाव करता है उसके सत्य होने का विश्वास नहीं होता , जबकि दुर्व्यपदेशन में उस बात के सत्य होने का उसे विश्वास होता है | यद्यपि उन दोनों ही मामलों में तथ्य का मिथ्या कथन किया जाता है जिससे एक पक्ष भुलावे में पड़ जाता है |


misrepresentation and fraud


मिथ्या व्यपदेशन अथवा दुर्व्यपदेशन 
( Misrepresentation )
सरल शब्दों में हम कह सकते हैं ककि जब कोई व्यक्ति किसी बात का मिथ्या कथन यह जानते हुए करता है कि वह असत्य है या फिर यह जानते हुए करता है कि वह सत्य हो तो प्रथम अवस्था में उसको कपट करना ही कहा जाता है और दूसरी अवस्था में दुर्व्यपदेशन |

        मिथ्या दुर्व्यपदेशन में -
  1. नैतिक दोष नहीं होता;
  2. धोखा देने का आशय नहीं होता ;
  3. सदभावना विद्यमान रहती है;
  4. मात्र संयोगवश कोई पक्षकार भुलावे में पड़ जाता है |
इस प्रकार धोखा देने के आशय का आभाव ही दुर्व्यपदेशन को कपट से अलग करता है |

मिथ्या व्यपदेशन के आवश्यक तत्व 
(Essential elements of misrepresentation)

संविदा अधिनियम की धारा 18 के अनुसार -
  1. एक पक्षकार द्वारा दुसरे पक्षकार से किसी तथ्य का निरूपण अथवा व्यपदेशन किया जाना;
  2. ऐसे तथ्य के सम्बन्ध में जो वस्तुतः सत्य नहीं है , सत्य होने का विश्वास करते हुए निरूपण किया जाना ;
  3. ऐसे निरूपण से दूसरे पक्षकार का भुलावे में पड़ जाना; एवं
  4. ऐसे निरूपण का इस प्रकार का होना कि जिसका प्रभाव दूसरे पक्षकार द्वारा संविदा पर स्वीकृति देने का हो |

महत्वपूर्ण मामले -

    1- डेरी बनाम पीक [(1889) 14 ए० सी० 337] का मामला - इया वाद में एक ट्रामवे कंपनी को अपनी ट्राम पशुशक्ति द्वारा और व्यापर मण्डल की सम्मति से भापशक्ति द्वारा चलाने की सर्वाधिक शक्ति प्राप्त थी | कंपनी के संचालकों ने जनता को अंशों का क्रय करने के लिए आवेदन करने हेतु आमंत्रित करते हुए एक विवरण पत्रिका निकाली | विवरण पत्रिका में यह लिखा था कि व्यापर मण्डल को कोई आपत्ति नहीं होगी, किन्तु व्यापर मण्डल ने भापशक्ति का उपयोग करने के लिए मना कर दिया , परिणामस्वरूप कंपनी को बंद कर देना पड़ा | यह अभिनिर्धारित किया गया कि संचालक दुर्व्यपदेशन के दोषी थे न की कपट के |

    2- श्रीमती कमलावन्ती बनाम  लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन ऑफ़ इण्डिया,  ए० आई० आर० 1981 इलाहबाद 336 का मामला - इस मामले में उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि एक ५६ वर्षीय व्यक्ति का बीमा किया गया और उसके बारे में यह कहा गया कि वह मधुमेह तथा जहरवात के रोग से ग्रस्त था, लेकिन उसके द्वारा प्रस्तुत किये गए निजी विवरण में इसका उल्लेख नहीं किया गया | यह ऐसा दुर्व्यपदेशन नहीं है जिससे कि संविदा शून्य हो सके |

कपट तथा मिथ्या दुर्व्यपदेशन में अंतर 
(Difference between fraud and misrepresentation)
  1. कपट- कपट से प्रवंचना कारित करने का आशय रहता है |
  2. मिथ्या दुर्व्यपदेशन-  दुर्व्यपदेशन में ऐसा कोई आशय नहीं होता |
  3. कपट-  कपट से प्रेरित संविदा को भंग किया जा सकता है एवं पीड़ित पक्षकार क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होगा |
  4. मिथ्या दुर्व्यपदेशन- दुर्व्यपदेशन से प्रेरित संविदाओं को केवल भंग किया जा सकता है , क्षतिपूर्ति प्राप्त नहीं की जा सकती |
  5. कपट- कपट के मामलों में वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध कपट का आरोप लगाया गया है , अपने बचाव में यह कह कर उत्तर दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता कि पीड़ित व्यक्ति के पास सत्यता का पता लगाने के साधन मौजूद थे |
  6. मिथ्या दुर्व्यपदेशन- दुर्व्यपदेशन के मामलों में यह प्रतिवाद प्रस्तुत किया जा सकता है |

Source: CLA, LLB. 3 Year Programme, 1st Semester, 1st Paper,

PAPER- LAW OF CONTRACT - I

Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University Ayodhya

Dr. RMLAU Ayodhya

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