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प्रश्न- कौन से व्यक्ति संविदा करने के लिए सक्षम होते हैं ?

            कोई भी व्यक्ति किसी व्यापार, व्यवसाय, कारोबार अथवा कार्य के लिए किसी भी प्रकार का करार, अनुबंध अथवा भारतीय संविदा अधिनियम प्रावधानों के अंतर्गत रहकर ही कर सकता है | दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि संविदा केवल वाही व्यक्ति कर सकता है जो इसके लिए सक्षम है |



संविदा के लिए कौन सक्षम है ?
(Who is Competent to Contract)

धारा 11 के अनुसार - 'हर ऐसा व्यक्ति संविदा करने के लिए सक्षम है जो उस विधि के अनुसार , जिसके वह अध्यधीन है, प्राप्तवय (वयस्क) हो और जो स्वस्थचित्त हो और किसी विधि द्वारा जिसके वह अध्यधीन है, संविदा करने से निरार्हित  न हो |' 
         इस प्रकार निम्नांकित व्यक्ति संविदा करने के लिए सक्षम माने गए हैं -
  1. जो प्राप्तवय अर्थात वयस्क है,
  2. जो स्वस्थचित्त है, एवं
  3. जो किसी विधि द्वारा , जिसके कि वह अध्यधीन है, संविदा करने के लिए अयोग्य घोषित नहीं है |
शान्ति निकेतन कोआपरेटिव हाउसिंग सोसायटी लि० बनाम डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार, कोआपरेटिव सोसायटीज, अहमदाबाद (ए० आई० आर० 2002 गुजरात 428) के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है | कि संविदा करने के लिए सक्षम होने से अभिप्राय किसी व्यक्ति के वयस्क एवं स्वस्थचित्त होने से है | ऐसे व्यक्ति की नागरिकता से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है | एक फ्रेंच नागरिक भी , यदि वह वयस्क एवं स्वस्थचित्त है तो किसी सहकारी संस्था का सदस्य हो सकता है |

व्यक्ति जो संविदा के लिए सक्षम नहीं हैं 
(The Person not competent to Contract)
1- अवयस्क के द्वारा संविदा - वयस्कता अथवा प्राप्तवय क्या है - संविदा करने के लिए किसी व्यक्ति प्रथम सक्षमता उसका प्राप्तवय अर्थात वयस्क होना है |
        भारत में प्राप्तवय के सम्बन्ध में मुख्यतया दो प्रकार की विधिया हैं-
(1) सामान्यतः संविदा करने के प्रयोजन करने के लिए सभी व्यक्तियों पर भारतीय वयस्कता अधिनियम , 1875 की धारा 3 लागू होती है | धारा  3 के अनुसार ऐसे व्यक्ति का अट्ठारह वर्ष की आयु पूरी कर लेना आवश्यक है | यदि कोई व्यक्ति अट्ठारह वर्ष से एक दिन भी छोटा है अर्थात उसके अट्ठारह वर्ष पुरे होने में एक दिन भी शेष है तो उसे विधि में अप्राप्तवय अर्थात अवयस्क माना जायेगा |
(2) जहाँ न्यायालय द्वारा किसी अप्राप्तवय (अवयस्क) का संरक्षक नियुक्त किया जाता है , वहां ऐसा व्यक्ति जब तक इक्कीस वर्ष की आयु पूरी नहीं कर लेता है, अप्राप्तवय बना रहता है |

                    अवयस्क या अप्राप्तवय द्वारा की गयी संविदाओं का प्रभाव -- अप्राप्तवय व्यक्ति संविदा के लिए अयोग्य होता है , अत: ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाने वाली संविदाएं आराम्भ्तः शून्य होती हैं , विधि की दृष्टि में ऐसी संविदाएं शून्य मणि जाती हैं | यहाँ तक कि वह अपनी ओर से संविदा करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को प्राधिकृत भी नहीं कर सकता है |

                        महत्वपूर्ण वाद (Important cases)
    मोहरी बीबी बनाम धर्मोंदास घोस (1903) 30 कलकत्ता 593 का मामला - यह इस सम्बन्ध में अब तक का एक प्राधिकृत मामला है | इसमें बीस वर्ष की आयु के एक व्यक्ति ने, जिसके लिए न्यायालय ने संरक्षक एवं प्रतिपाल्य नियुक्त कर रखा था , एक साहूकार के पक्ष में 20000 रूपये के लिए एक बंधक विलेख निष्पादित कर दिया | साहूकार द्वारा वस्तुतः उसे 8000 रूपये ही दिए गए थे | इस संव्यवहार के कुछ ही समय पूर्व संरक्षक द्वारा साहूकार को बन्धककर्ता के अवयस्क होने की सूचना दे दी गयी थी | अवयस्क की ओर से बंधक को अपास्त करने के लिए वाद लाया गया | जिसका यह कहकर विरोध किया गया कि यह एक शून्यकरणीय संविदा होने से अवयस्क द्वारा उधार ली गयी धनराशि को धारा 64 के अधीन वापस लौटाया जाना चाहिए | प्रिवी काउन्सिल ने यह अभिनिर्धारित किया कि यह संविदा पूर्ण रूप से शून्य है | अतः उधार लिए गए धन को वापस लौटाने का प्रश्न ही नहीं उठता है |

2- विकृतचित्त व्यक्ति द्वारा संविदा - संविदा करने वाला व्यक्ति यदि विकृतचित्त है तो संविदा शून्य होती है |
        स्वस्थ्यचित्त अथवा चित्त-विकृत्ति की कसौटी यह है कि कोई भी व्यक्ति कारोबार को सम्हालने में तथा अपने हितों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में समुचित निर्णय लेने में समर्थ है अथवा असमर्थ | यदि समर्थ है तो वह स्वस्थचित्त है | इस प्रकार कारोबार की प्रकृति को समझने की क्षमता एवं अपने हितों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में समुचित निर्णय लेना ही स्वस्थचित्तता की कसौटी है | पागलपन, जड़ता, उन्मत्तता आदि चित्त विकृत्ति नहीं कहा जा सकता है |

    स्वस्थ अन्तराल में की गयी संविदा - धारा 12 की अपेक्षा यह है कि संविदा करने के समय पक्षकार स्वस्थचित्त हो , अर्थात एक व्यक्ति जो प्रायः विकृतचित्त रहता है किन्तु कभी-कभी स्वस्थचित्त हो जाता है | वह स्वस्थचित्त रहने के दौरान संविदा कर सकता है | लेकिन यदि वह प्रायः स्वस्थचित्त रहता है और कभी-कभी विकृतचित्त हो जाता है तो ऐसी चित्त विकृति के दौरान वह संविदा नहीं कर सकेगा |
        श्रीमती नीलिमा घोस बनाम हरजीत कौर (ए० आई० आर० 2011 दिल्ली 104) के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया कि धारा 11 के अंतर्गत व्यक्ति का विकृत चित्त होना उस समय आवश्यक है जब संविदा निष्पादित की गयी थी |

3- विधि द्वारा निरर्हित व्यक्ति (Person Disqualified by law) - विधि द्वारा निरर्हित व्यक्तिओं को भी संविदा करने के लिए निर्योग्य घोषित किया गया है | जैसे विदेशी शत्रु , अपराधी, दिवालिया, आदि | भारत में विवाहित स्त्रियाँ संविदा करने के लिए सक्षम मानी गयी हैं क्योंकि उन्हें संपत्ति रखने का अधिकार है |


Source: CLA, LLB 3 Year Programme, 1st Semester, 1st Paper
Paper- LAW OF CONTRACT - I

Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University, Ayodhya 
Dr. RMLAU Ayodhya

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