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प्रश्न - 'स्वतंत्र सहमति' शब्द की व्याख्या कीजिये | एक व्यक्ति द्वारा दी गयी सहमति को कौन से तत्व निष्प्रभावी कर देते हैं ?

सहमति की परिभाषा 
        ( Definition of Consent )

            सहमति को धारा 13 में परिभाषित किया गया है, जिसके अनुसार "जब कि दो या दो से अधिक व्यक्ति एक सी ही भाव में करार करते हैं तब उनके बारे में कहा जाता है कि वे सहमति हुए" इसे एक ही बात पर और एक ही अर्थ में मतैक्य होना कहते हैं तथा वैध संविदा के लिए यह आवश्यक है |

consent

          स्वतंत्र सहमति - (Free Consent)- धारा 14 के अनुसार जबकि सहमति उत्पीडन से , असम्यक असर से, कपट से, मित्थ्या व्यपदेशन (Misrepresentation) से या भूल से, न कराई गयी हो तब उसके बारे में कहा जाता है कि वह स्वतंत्र है |

            संविदा के निर्माण के लिए करार के दोनों पक्षकारों की सहमति आवश्यक है तथा यह सहमति बिना उत्पीडन , असम्यक असर , कपट , मिथ्याया व्यपदेशन भूल के द्वारा दी गयी हो | यदि सहमति उपरोक्त के अधीन है तो वह स्वतंत्र सहमति नहीं कहलाएगी |

सहमति के निष्प्रभावी करने वाले तत्व 
(Factors which vitiate the consent)

        1- उत्पीडन (Coercion) - उत्पीडन को धारा 15 में परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार उत्पीडन एसे किसी कार्य को करना या करने की धमकी देना है जो की भारतीय दण्ड संहिता द्वारा निषिद्ध है या किसी संपत्ति को किसी व्यक्ति पर , चाहे यह कोई हो , प्रतिकूल प्रभाव डालने के आशय से किसी व्यक्ति से करार में प्रवेश कराया जाये, विधिविरुद्ध रूप से निरुद्ध करना है या निरुद्ध करने की धमकी देना है |

        2. असम्यक असर अथवा अनुचित प्रभाव (Undue Influence) - धारा 16 के अनुसार जहाँ कि पक्षकारों के बीच विद्यमान सम्बन्ध इस प्रकार के हैं कि पक्षकारों में से एक दूसरे की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में है और वह उस स्थिति का उपयोग उस दूसरे से अपेक्षाकृत अनुचित प्रलाभ अभिप्राप्त करने के लिए करता है कि वह असम्यक असर द्वारा उत्प्रेरित की गयी है |

उदाहारण (Illustration) 

        'क' जिसने पुत्र '' को आवश्यकता के दौरान में धन उधार दिया '' के वयस्क होने पर '' ने अपने पैतृक असर के दुरूपयोग द्वारा उस उधार धन से अधिक धन के लिए बंधपत्र प्राप्त किया | '' ने असम्यक असर का प्रयोग किया |

        3- कपट(Fraud) - कपट को इस अधिनियम की धारा 17 में परिभाषित किया गया है | इस धारा के अनुसार कपट से अभिप्रेत और उसके अन्तर्गत निम्न कार्यों में से कोई कार्य है जो संविदा के एक पक्षकार द्वारा या उसकी मौनानुकूलता से या उसके अभिकर्ता द्वारा उसमें के दूसरे पक्षकार को या उसके अभिकर्ता को धोखा देने के या उसके संविदा करने के लिए उत्प्रेरित करने के आशय से किया गया है --

  1. उस बात को जो सत्य नहीं है , एसे व्यक्ति के द्वारा जो उसके सत्य होने का विश्वाश नही करता , तथ्य के रूप में सुझाव ,
  2. किसी तथ्य का उस तथ्य पर विश्वाश या ज्ञान रखने वाले व्यक्ति के द्वारा सक्रिय छिपावट ,
  3. पालन करने के किसी आशय के बिना की गयी कोई प्रतिज्ञा ,
  4. धोखा देने के आशय से किया गया अन्य कार्य ,
  5. कोई ऐसा कार्य या कार्य-लोप जिसका कपटपूर्ण होना विधि विशेष रूप से घोषित करती है |

कपट के तहत किये गये करार शून्यकरणीय होते हैं |

उदाहारण (Illustration)  

'ख' 'क' से कहता है कि यदि तुम इस बात को मना नहीं करते तो मैं मान लूँगा कि घोड़ा स्वस्थ है तथा यदि 'क' कुछ नही बोलता तब 'क' की चुप्पी बोलने की तुल्य है तथा उसने 'ख' के साथ कपट किया है |

        4. मिथ्या व्यपदेशन (misrepresentation) - किसी संविदा के सारवान तथ्यों का मित्थ्या प्रकटीकरण मिथ्या व्यपदेशन कहलाता है | मिथ्या व्यपदेशन को अधिनियम की धारा 18 में परिभाषित किया गया है| मिथ्या व्यपदेशन के तहत किये गये करार शून्य होते हैं |

उदाहारण (Illustration)   

'ख' को प्रवंचित करने के आशय से 'क' व्यपदेशन करता है कि उसके कारखानों में 500 टन नील प्रति वर्ष बनायी जाती है तथा तद्द्वारा 'ख' को यह कारखाना खरीदने के लिए उत्प्रेरित करता है |'क' ने मिथ्या व्यपदेशन का प्रयोग किया |

        5. भूल (Mistake) - धारा 20, 21 तथा 22 में भूल सम्बन्धी विधि का वर्णन किया गया है | भूल व्यक्ति की पहचान संव्यवहार की प्रकृति से सम्बंधित हो सकती है | जहाँ दोनों पक्षकार किसी सारभूत तथ्य के बारे में भूल करते हैं तो वह करार शून्य होगा | धारा 21 में बताया गया है कि केवल तथ्य की भूल के सम्बन्ध में ही लागू होते हैं विधि की भूल के सम्बन्ध में लागू नही होते हैं | परन्तु यदि भूल विदेशी विधि में है तो ऐसे करार शून्यकरणीय  होंगे |

उदाहरण  (Illustration) 

 1. 'ख' से एक घोडा खरीदने का करार 'क' करता है | यह पता चलता है कि घोडा सौदे के समय मर चुका था  तथा दोनों पक्षकारों को जानकारी नहीं थी | करार शून्य होगा |

2. 'क' तथा 'ख' इस गलत विश्वास पर संविदा करते हैं कि एक विशिष्ट ऋण भारतीय परिसीमा अधिनियम द्वारा वर्णित है, संविदा शून्यकरणीय है |

इया प्रकार कहा जा सकता है कि यदि कोई सहमति उपरोक्त तथ्यों के अधीन दी जाती है तो वह स्वतन्त्र सहमति नहीं होती है | स्वतन्त्र सहमति के लिए आवश्यक है कि उपरोक्त दोषों से रहित हो |


Source: CLA, LLB. 3 Year Programme, 1st Semester, 1st Paper,

PAPER- LAW OF CONTRACT - I

Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University Ayodhya

Dr. RMLAU Ayodhya 



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