उत्तर-- विधिपूर्ण उद्देश्य एवं प्रतिफल विधिमान्य संविदा की एक अन्य शर्त है | कोई भी करार तब तक प्रवर्तनीय नहीं हो सकता जब तक कि उसका उद्देश्य एवं प्रतिफल विधिपूर्ण न हो | करार को संविदा का रूप धारण करने के लिए अन्य बातों के साथ -साथ उसके उद्देश्य एवं प्रतिफल का विधिपूर्ण होना आवश्यक है |
विधिपूर्ण उद्देश्य एवं प्रतिफल
ऐसे उद्देश्य एवं प्रतिफल को विधि पूर्ण माना गया है --
जो विधि द्वारा निषिद्ध नहीं है ,अथवा जो ऐसी प्रकृति का नहीं है यदि उसे अनुज्ञात किया जाये तो वह किसी विधि के उपबंधो को निष्फल कर देगा , अथवा जो कपट पूर्ण नहीं है अथवा उसमे अन्य किसी के शरीर या संपत्ति की क्षति अन्तर्वलित या विवक्षित नहीं है ,या जो न्यायालय के विचार में अनैतिक अथवा लोक निति के विरुद्ध नहीं है |
1.विधि द्वारा निषिद्ध-- किसी करार का ऐसा उद्देश्य अथवा प्रतिफल जो विधि द्वारा निषिद्ध हो ,अविधिपूर्ण होता है | दूसरे शब्दों में ऐसा कोई भी कार्य जिसका किया जाना किसी व्यवस्था का उल्लंघन करता हो ,वह एक ऐसा कार्य होता है जिसे करने का करार लिया जाता है तो वह अवैध होगा ठीक यही बात प्रतिफल के बारे में लागू होती है |
उदाहरण
'क' 'ख' को 1000 रुपये देने का करार करता है यदि 'ख' 'ग' की हत्या कारित कर दे | यहाँ उद्देश्य एवं प्रतिफल दोनों का विधि द्वारा निषिद्ध होने का कारण करार अवैध है क्योंकि भारतीय दण्ड संहिता किसी व्यक्ति की हत्या कारित करने की अनुज्ञा नहीं देती है |
2.विधि के उपबंधो को विफल कर देने वाला करार -- यदि करार ऐसी प्रकृति का है कि यदि उसकी अनुमति दी जाये तो वह विधि के उपबंधो को निष्फल कर देगा तो ऐसे करार के उद्देश्य या प्रतिफल को अवैध कहा जायेगा | अतः किसी करार का उद्देश्य या प्रतिफल केवल इस कारण अवैध नहीं हो सकता है कि वह किसी द्वारा अर्जित है बल्कि इस कारण भी हो सकता है कि अपरोक्ष रूप से वह विधि के प्रावधानों को निष्फल कर दे |
3.कपटपूर्ण(Fraudulent)-- कपटपूर्ण उद्देश्य अथवा प्रतिफल को भी अविधिपूर्ण माना गया है, चाहे ऐसा किसी तीसरे व्यक्ति के साथ ही क्यों न कारित किया जाने वाला हो |
उदाहरण - 'क' ,'ख' और 'ग' अपने द्वारा कपट से अर्जित किये गए या किये जाने वाले अभिलाभों का आपस में विभाजन के लिए करार करते हैं | करार शून्य है क्योंकि उसका उद्देश्य विधि विरुद्ध है |
4- किसी अन्य के शरीर या सम्पत्ति को क्षति कारित करने से सम्बन्धित करार - किसी व्यक्ति के शरीर या सम्पत्ति को क्षति कारित करने के उद्देश्य अथवा प्रतिफल के लिए किया गया करार प्रवर्तनीय नहीं होता , क्योंकि ऐसा उद्देश्य अथवा प्रतिफल अविधिपूर्ण होता है |
उदाहरण- 'क' 'ख' के साथ करार करता है कि यदि 'ख' जोकि एक पत्र का संपादक है 'ग' के विरुद्ध मानहानिकारक लेख प्रकाशित करे तो 'क' उसे 1000 रूपये देगा | यह करार शून्य है, क्योंकि 'ग' को मानसिक एवं शारीरिक क्षति कारित होती है यदि 'ख' ऐसा लेख प्रकाशित कर देता है तो वह 'क' से 1000 रूपये वसूल करने हेतु न्यायालय में वाद नहीं ला सकता |
सतीश चन्द्र घोष बनाम काशी साहू , 46 आई० सी० 418 पटना का मामला - सिमें दो भाइयों ने वादी से 100 रूपये का ऋण लेकर एक बंधपत्र निष्पादित किया जिसमें एक भाई ने दो वर्ष तक बिना किसी पारिश्रमिक के वादी के यहाँ काम करने का वचन दिया | बंधपत्र दासतापूर्ण कृत्य के कारण अप्रवर्तनीय माना गया |
5- अनैतिक एवं लोकनीति के विरुद्ध - ऐसा करार जिसका उद्देश्य अथवा प्रतिफल अनैतिक या लोकनीति के विरुद्ध हो , प्रवर्तनीय नहीं होता | ऐसे करार शून्य होते हैं |
1- अनैतिक (Immoral) - शब्द ' अनैतिकता' का अर्थ यद्यपि अत्यंत व्यापक है जिसमें एक सामान्य जीवन से हटकर व्यक्तिगत आचरण का प्रत्येक पहलू सम्मिलित है, लेकिन न्यायिक विनिश्चयों द्वारा इसे केवल 'सम्भोगिक अनैतिकता' तक परिसीमित कर दिया गया है |
इस प्रकार इसमें ऐसे करारों को सम्मिलित किया गया है जिनका उद्देश्य अथवा प्रतिफल या तो अवैध सम्भोग से सम्बन्ध रखता हो या फिर वेश्यावृत्ति जैसे अनैतिक प्रयोजनों को बढ़ावा देने वाला हो |
- अभियोजन को रोकने वाले करार ,
- धन के संदाय पर लड़की के विवाह करने का करार ,
- किसी बालक के दत्तक के लिए रिश्वत का करार,
- युद्ध के समय शत्रु देश के किसी व्यक्ति के साथ व्यापार करने का करार,
- जयांशभागिता तथा साधारण (Champerty and maintenance)
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