विधिमान्य संविदा की संसूचना एक दूसरे पक्षकार को दिया जाना आवश्यक है | ऐसी संसूचना के अभाव में न तो प्रस्ताव का कोई महत्त्व है और न ही प्रतिग्रहण का | धारा 4 में संसूचना के बारे में नियमो का उल्लेख किया गया है |
- प्रस्ताव की संसूचना - कोई प्रस्ताव तब तक पूर्ण तथा निश्चयात्मक नहीं होता है जब तक कि वह उस पक्षकार को जिसको वह किया गया है संसूचित नहीं कर दिया जाता है | अर्थात प्रस्ताव तब तक विधिमान्य नहीं है जब तक कि वह उस व्यक्ति के ज्ञान में न आ जाये जिसको कि वह किया गया है |
प्रस्ताव कब पूर्ण होता है ?- इस प्रकार प्रसताव की संसूचना तब पूर्ण मान ली जाती है जब उस व्यक्ति के जिसको कि वह की गयी है ज्ञान में आ जाती है | पत्र द्वारा किया गया कोई प्रस्ताव तब तक प्रभावशील होता है जब वह पत्र उस व्यक्ति को जिसके पते पर वह डाला गया है , मिल जाता है |
2- स्वीकृति की संसूचना - स्वीकृति उसी ढंग से की जानी चाहिए जिस ढंग से प्रस्तावक निर्धारित करता है | यदि प्रस्ताव में कोई ढंग निर्धारित नहीं होता है , तो स्वीकृति उसी प्रकार से की जानी चाहिए जैसे कि आमतौर पर होती है | भारत में यदि स्वीकृति निर्धारित ढंग से की जाती है तो प्रस्तावक का यह कर्तव्य होता है कि वह उचित समय के अन्दर उसे मानने से इन्कार कर दे | यदि ऐसा नहीं करता तो माना जाता जायेगा कि उसने उसे स्वीकार कर लिया है |
स्वीकृति कब पूर्ण होती है - धारा 4 के अनुसार प्रस्तावक के विरुद्ध स्वीकृति की संसूचना उस समय पूर्ण होती है जबकि वह उसका पारेषण कर देता है जिससे वह स्वीकृति करने वाले को शक्ति से परे हो जाता है परन्तु स्वीकृति करने वाले के विरुद्ध संसूचना तब पूर्ण होती है जब वह प्रस्तावक के ज्ञान में आ जाता है |
(1) डाक द्वारा स्वीकृति - डाक द्वारा स्वीकृति कब पूर्ण होती है , यह कठिन प्रश्न रहा है | इस सम्बन्ध में एडम्स बनाम लिंडसेल (1818) 106 ई०आर० 250 का मामला प्रसिद्ध है | इस मामले में प्रतिवादी ने एक पत्र द्वारा दिनांक सितंम्बर 2, 1817 को वादी को ऊन बेचने का प्रस्ताव किया | यह 5 सितम्बर 1817 को वादी को मिला | वादी ने स्वीकृति का पत्र उसी दिन डाक में डाल दिया जो प्रतिवादी को 9 सितम्बर ,1817 को मिला परन्तु प्रतिवादी ने पत्र प्राप्त के ठीक पहले ऊन बेच दिया | न्यायालय ने प्रतिवादी को संविदा उल्लंघन का उत्तरदायी ठहराया तथा अभिनिर्धारित किया कि डाक द्वारा संविदा उस समय पूण होती है जबकि स्वीकृति का पत्र डाक में डाल दिया जाता है |
(2) टेलीफ़ोन या टैलेक्स द्वारा स्वीकृति - टेलीफ़ोन द्वारा संविदा तब तक पूर्ण नही होती है जब तक कि प्रस्ताव करने वाले को स्वीकृति का ज्ञान इन्टोर्स लिमिटेड बनाम मिल्स फॉर ईस्ट कारपोरेशन (1955) 2 क्यू बी .327 के मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि टेलीफोन या टेलेक्स आदि के स्वीकृति का ज्ञान हो जाता है |भगवान दास बनाम गिरधारी लाल एण्डकम्पनी ,ए० आई०आर०1966 एस० सी० 543 के वाद में उच्चतम न्यायलय ने अभिनिर्धारित किया कि टेलीफोन द्धारा संविदा में डाक द्वारा या तार द्वारा स्वीकृति वाले नियम लागू नहीं होते है और टेलीफोन द्वारा संविदा का निर्माण तभी होता है जबकि स्वीकृति की संसूचना प्रस्ताव करने वाले को जाती है |
प्रतिसंहरण कब पूर्ण होता है? और प्रतिसंहरण की संसूचना - प्रस्ताव या स्वीकृति करने वाले व्यक्ति द्वारा उसको वापस लेना प्रतिसंहरण कहलाता है |
धारा 5 के अनुसार -
1. प्रस्ताव का प्रतिहरण - प्रस्थापनाकर्ता अपनी प्रस्थापना को उस समय वापस ले सकता है जब कि प्रतिग्रहण की संसूचना को पारेषण के अनुक्रम में इस प्रकार नहीं रख देना है की वह उसकी शक्ति के बाहर हो जाये | दूसरे शब्दों में प्रस्थापनाकर्ता अपनी प्रस्थापना को प्रतिग्रहीता द्वारा प्रतिग्रहीत किये जाने के पूर्व कभी भी वापस ले सकता है ,किन्तु उसके पश्चात् नहीं |
विक्रय की किसी प्रस्थापना को , जहा उसके प्रतिग्रहण के लिए एक निश्चित समय दिया गया हो 'वहां प्रस्थापनाकर्ता ऐसे समय के पूर्व उसे कभी भी प्रतिसंहृत कर सकता है | ऐसे मामलों में प्रतिग्रहीता को चेतावनी दी जाती है कि उस समय के पश्चात प्रतिग्रहण को स्वीकार नहीं किया जायेगा और उस समय के समाप्त हो जाने पर प्रस्थापना अपने आप प्रतिसंहृत हो जाती है |
वी गणेश्वर राव बनाम श्रीमती एम विजय चामुंडेश्वरी (ए० आई० आर० 2010 आंध्र प्रदेश 74) के मामले में आंध्र प्रदेश न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि विखंडन (प्रतिसंहरण )की सूचना व्यक्ति के विरुद्ध जिसके द्वारा वह की जाती है ,उस समय पूर्ण जाती है ,जब वह पारेषण के अनुक्रम में इस प्रकार कर दी जाती है कि वह उसकी शक्ति से बाहर हो जाये |
2.स्वीकृति का प्रतिसंहरण --प्रतिग्रहीता अपने द्वारा किये गए प्रतिग्रहण का प्रतिसंहरण उस समय तक कर सकता है जब तक कि प्रतिग्रहण की संसूचना प्रस्थापनाकर्ता के ज्ञान में नहीं आ जाती |
उदहारण
'क' अपने एक मकान को बेचने की प्रस्थापना डाक द्वारा भेजे गए एक पत्र द्वारा 'ख' से करता है | 'ख' डाक से भेजे गए पत्र द्वारा प्रस्थापना को प्रतिग्रहीत करता है | 'ख' अपने प्रतिग्रहण को, इससे पहले कि उसका पत्र 'क' के पास पहुचे , वापस ले सकता है , इसके पश्चात् नहीं |
हेनथार्न बनाम फ्रेजर , (1892) 2 सी० एच० 27 का मामला --इसमें इस गृह को बेचने की प्रस्थापना 7 तारीख को की गई | प्रतिग्रहण का पत्र 8 तारिख को सायंकाल 3.50 बजे डाक में डाला गया जो प्रस्तापनाकर्ता के कार्यालय में 8.30 बजे पंहुचा | प्रस्थापना को दिन के 12 बजे डाक में डाले गए एक पत्र को प्रतिसंहृत कर दिया गया | यह पत्र प्रतिग्रहीता को सायंकाल 5.50 बजे मिला | यह अभिनिर्धारित किया गया कि प्रस्थापना का प्रतिसंहरण अति विलम्ब से किये जाने के कारण उसका कोई प्रभाव नहीं रह गया था और पक्षकारो के बीच बाध्यकारी संविदा हो गई |
Source: CLA, LLB 3 Year, 1st semester, 1st Paper, Law of Contract.
Dr. Ram Manohar Lohiya Awadh University, Ayodhya (Dr. RMLAU Ayodhya)
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