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प्रश्न - मौलिक अधिकारों की उपलब्धता राज्य के विरुद्ध है या सामान्य व्यक्ति के विरुद्ध है?

उत्तर - मूल अधिकारों का जन्म ही जनता और राज्य शक्ति के बीच संघर्ष का परिणाम है । व्यक्ति अपने अधिकारों की सांविधानिक सुरक्षा राज्य शक्ति के विरुद्ध ही आवश्यक समझता है । क्योंकि राज्य शक्ति के समक्ष वह कमजोर होता है । भारतीय संविधान के भाग तीन में प्रदत्त मूल अधिकार राज्य शक्ति के विरुद्ध गारंटी किए गए हैं न कि सामान्य व्यक्तियों के अवैध कृत्यों के विरुद्ध । व्यक्तियों के अनुचित कृत्यों के विरुद्ध साधारण विधि में अनेक उपचार उपलब्ध हैं । इसके अतिरिक्त वह दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध उतना असहाय और अशक्त नहीं होता है जितना कि राज्य शक्ति के विरुद्ध ।


     यद्यपि अनुच्छेद 12 में कहा गया है कि मूल अधिकार केवल राज्य के विरुद्ध ही उपलब्ध है परंतु उच्चतम न्यायालय ने अपने आधुनिकतम निर्णयों में यह अभिनिर्धारित किया है कि जहां किसी नागरिक के मूल अधिकारों का उल्लंघन कोई प्राइवेट व्यक्ति करता है तो न्यायालय उसके विरुद्ध भी मूल अधिकार को लागू करेंगे और पीड़ित व्यक्ति को प्रतिकर दिलवाएगा । इस पर प्रमुख वाद है इंडियन काउंसिल फॉर इनवायरमेंटल लीगल एक्शन बनाम भारत संघ (1996) 3 S.C.C. 212

अतः इससे अब यह स्पष्ट हो गया कि मूल अधिकार राज्य और सामान्य व्यक्ति दोनों के विरुद्ध उपलब्ध है ।

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