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प्रश्न -- किन अपराधों में मृत्युदण्ड दिया जा सकता है ? भारतीय दण्ड संहिता की उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिए जिनके अधीन न्यायालय मृत्युदण्ड पारित कर सकता है |

 उत्तर- भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत धाराएँ 53 से  75 तक में दण्डों से सम्बंधित व्यवस्थाओं का वर्णन किया गया है | संहिता के अन्तर्गत अपराधियों को निम्नलिखित दण्ड प्रदान किये जा सकते हैं 
            (1) मृत्युदण्ड |
            (2) आजीवन कारावास |
            (3) कारावास जो स्वयं तीन प्रकार का है -- साधारण तथा कठोर और एकांत कारावास |
            (4) संपत्ति जब्त होना |
            (5) अर्थदण्ड |

            इन सभी दण्डों में मृत्यु दण्ड को एक बर्बर तथा कठोरतम दण्ड माना गया है | अतः कुछ सीमित अपराधों के मामलों में ही इसे दिया जाता है | वे मामले जिनमें न्यायालय की इच्छानुसार मृत्युदण्ड किया जा सकता है , निन्मलिखित हैं ---
            (1) सरकार  के विरुद्ध युद्ध छेडना--- संहिता की धारा 121 के अनुसार , जो कोई भारत सारकार के विरुद्ध युद्ध करेगा या युद्ध करने का प्रयत्न करेगा या ऐसा युद्ध करने का दुष्प्रेरण करेगा वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा |
            मगनलाल  राधाकृष्ण  बनाम  इम्परर , A.I.R. 1946, Nag. 173 के मामले में इस अपराध के  निम्नलिखित गुण बताये गए हैं ---
            (1) इस अपराध को गठित करने के लिए व्यक्तियों की किसी विशिष्ट संख्या की आवश्यकता नहीं  होती है |
            (2) सम्बंधित व्यक्तियों की संख्या तथा उनका हथियारों से सुसज्जित होना महत्वहीन है |
            (3) वास्तविक परीक्षण यह है कि ' किस आशय ' से वे एकत्रित हुए हैं |
          (4) जमघट का उद्देश्य बल और हिंसा के प्रयोग द्वारा किसी सामान्य लोक प्रकृति उद्देश्य की प्राप्ति और शासक के अधिकारों को प्रभावित करना होना चाहिए |
            (5) मुख्य कर्ता तथा सहायक कर्ता में कोई अन्तर नहीं है जो कोई इस अपराध में भाग लेगा वह अपराध का दोषी माना जायेगा |
        (2) किये गए सैनिक विद्रोह का अभिप्रेरण -- संहिता की धारा 132 के अनुसार, जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या या वायु सेना के किसी आफीसर, सैनिक, नौ-सैनिक या वायु सैनिक द्वारा विद्रोह किये जाने का दुष्प्रेiरण करेगा,  यदि उस  दुस्प्रेरण के परिणाम स्वरूप विद्रोह हो जाता तो वह मृत्यु से या आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी ,दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डित होगा | 
        (3) झूठा या बनावटी साक्ष्य प्रस्तुत करना --संहिता की धारा 194 के दूसरे पैराग्राफ के अनुसार ,जो कोई भारत में तत्समय  प्रवृत्त विधि के  द्वारा मृत्यु से  दण्डनीय अपराध के लिए ,ऐसा झूठा या बनावटी साक्ष्य प्रस्तुत करता है या उसकी रचना करता है , जिसके परिणामस्वरूप किसी निर्दोष व्यक्ति को मृत्युदंड भुगतना पड़े, तो वह व्यक्ति जो ऐसा साक्ष्य देगा या गढ़ेगा ,वह मृत्युदण्ड से या आजीवन कारावास से जिसकी अवधि दस  वर्ष तक  हो सकेगी, दण्डित  किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा |
        (4) हत्या --संहिता की धारा 300 के अनुसार ,सदोष मानव वध हत्या है ,यदि वह निम्नलिखित चार खंडों में से किसी एक के अन्तर्गत आता हो --
  1. यदि वह  कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई हो, करने के आशय से किया गया  हो  ;अथवा
  2. यदि वह ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से की गई  हो जिसे अपराधी जनता हो, उस व्यक्ति की मृत्यु कारित होना संभाव्य है जिसको वह अपहानि कारित की गई हो; अथवा
  3. यदि वह कार्य किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक क्षति, जिसके कारित करने का आशय हो, प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो; अथवा 
  4. यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जनता हो कि वह कार्य इतना आसन्न संकट है कि पूरी अधि संभाव्यता है कि वह मृत्यु कारित कर ही देगा या ऐसा शारीरिक क्षति कारित कर ही देगा जिससे मृत्यु होना संभाव्य है और वह मृत्यु कारित करने या पूर्वोक्त रूप की क्षति कारित करने की जोखिम उठाने के लिए किसी प्रति हेतु के बिना ऐसा कार्य करे |
हत्या के लिए दण्ड - धारा 302 के अनुसार, जो कोई हत्या करेगा वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डित किया जायेगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा |
                जसपाल बनाम पंजाब राज्य (1986) 2 S.C.C. 100 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि क्षति कारित करने वाले व्यक्ति का आशय विचाराधीन प्रत्येक मामले के समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों का सावधानी पूर्वक परीक्षण करके किया जाना चाहिए | जहाँ अभियुक्त ने मृतक के सीने के ठीक नीचे और उस संधि क्षेत्र (Groin Region) में आठ सेमी. गहरा घाव चाकू भोंककर कारित किया हो और मृतक का भाई जब भीच बचाव करने आया हो. तो अभियुक्त ने उसको भी चाकू से ठीक वैसा ही प्रहार किया हो, जैसा कि उसने मृतक पर किया था, वहाँ इन तथ्यों और परिस्थितियों के अध्ययन से यही निष्कर्ष निकाला जायेगा कि अभियुक्त का आशय मृत्यु कारित करना था | अतः अभियुक्त का कार्य हत्या की कोटि में आने वाला आपराधिक मानव वध है | 
               (5) शिशु या उन्मत व्यक्ति की आत्महत्या का दुष्प्रेरण --- संहिता की धारा 305 के अनुसार यदि कोई अट्ठारह वर्ष से कम आयु का व्यक्ति, कोई उन्मत व्यक्ति, कोई विपर्यस्त चित्त व्यक्ति, कोई जड़ व्यक्ति या कोई भी व्यक्ति जो मत्तता की अवस्था में है, आत्महत्या कर ले तो जो कोई ऐसी आत्महत्या किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा , वह मृत्यु या आजीवन कारावास, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक की न हो सकेगा, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डित होगा |
        (6) हत्या सहित डकैती-- संहिता की धारा 396 के अनुसार यदि ऐसे पांच या अधिक व्यक्तियों में से, जो सयुंक्त होकर डकैती कर रहे हों, कोई एक व्यक्ति इस प्रकार डकैती करने में हत्या कर देगा तो उन व्यक्तियों में से हर व्यक्ति मृत्यु से या आजीवन कारावास से , जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो जायेगी, दण्डित किया जायेगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा |
        ओम प्रकाश तथा अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1983, Cr. C.J. 837 S.C. के मामले में अभियुक्त तथा मृतक के बीच दुश्मनी थी | अभियुक्त ने अपने साथियों के साथ चाँदनी रात्रि में डकैती डाली | डकैती के समय घर में लालटेन जल रही थी | डकैती में मृतक मारा गया | उसकी पत्नी तथा साला गंभीर रूप से घायल हुए थे | चाँदनी रात तथा लालटेन की रोशनी में डकैतों के मृतक की पत्नी तथा उसके साले ने पहचान लिया था | इन परिस्थितयों में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि धारा 396 के अन्तर्गत प्रदान की गई दोषसिद्धि वैध है | 

                अनिवार्य मृत्युदण्ड -- भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत निम्नलिखित ऐसी परिस्थितियां हैं जिसमें अनिवार्य रूप से मृत्युदण्ड दिया जाता है और इसका कोई विकल्प नहीं है ---
  1. संहिता की धारा 307 के अन्तर्गत यदि हत्या करने का प्रयत्न किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो आजीवन कारावास के दण्डादेश के अधीन हो, तब यह उपहति कारित हुई हो तो वह मृत्युदण्ड से दण्डित किया जायेगा | 
  2. धारा 303 के अनुसार, जो कोई आजीवन कारावास से के दण्डादेश के अधीन होते हुए हत्या करेगा वह मृत्युदण्ड से दण्डित किया जायेगा |

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