Ticker

6/recent/ticker-posts

प्रश्न - भारतीय संविधान के अंतर्गत समता के अधिकार के विस्तार का परीक्षण कीजिए | कब संसद द्वारा किये गए वर्गीकरण संवैधानिक होते हैं ?

 समता का अधिकार 
(Right to Equality )

        समता न्यायालय की आधारशिला है | विधि के शासन (Rule of law ) की कल्पना "Equality" से इसको लिया गया है | भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में समता का सामान्य नियम दिया गया है |

        अनु० 14 के अनुसार --" राज्य भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता या विधियों के सामान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा |"


RighttoEquality




         अनु० 14 में दो वाक्यांशों का प्रयोग किया गया है --
        1. विधियों के समक्ष समता (Equality before law )
        2. विधियों के सामान संरक्षण (Equal protection of the law)

        उपरोक्त वाक्यांशों में से प्रथम ब्रिटिश संविधान से और द्वितीय अमेरिका के संविधान से लिया गया है | प्रथम नकारात्मक (Negative )संकल्पना है, जबकि द्वितीय सकारात्मक (Positive ) संकल्पना है | समता का अधिकार नागरिक(citizen) और गैर - नागरिक (Non-citizen) दोनों को प्राप्त है |

        1.विधि के समक्ष समता --विधि के समक्ष समता से तात्पर्य है सामान लोगो के लिए सामान विधि होना तथा समान रूप से प्रशासित किया जाना | यह पदावली यह प्रदर्शित करती है कि भारत का कोई भी व्यक्ति चाहे वह कृषक हो, सरकरी कर्मचारी हो, अधिकारी हो, संवैधानिक व्यक्ति हो यदि कोई कार्य विधिक औचित्य के बिना करता है, तो उस कार्य के लिए वे सभी समान रूप से उत्तरदायी होंगे |

        2. विधियों का सामान संरक्षण -- विधियों के सामान संरक्षण से तात्पर्य कि सामान परिस्थिति वाले व्यक्तियों को समान विधियों के अधीन रखना तथा सामान रूप से लागू करना चाहे वह विशेषाधिकार हो या दायित्व हो | यह पदावली कहती है कि सामान परिस्थिति वाले व्यक्तियों के बीच विभेद नहीं करना चाहिए और उन पर एक ही विधि लागू होनी चाहिए अर्थात विधान की विषयवस्तु समान है, तो विधि भी एक तरह की होनी चाहिए |

        3. अनु० 13 तथ नैसर्गिक न्याय का असिद्धांत -- सेंट्रल इनलैंड वाटर ट्रांसपोर्ट कं ० बनाम ब्रजोनाथ गांगुली, (AIR 1986 SC157) के मामले में निर्धारित किया गया कि अनु० 14 में नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत निहित है | पुलिस महानिदेशक बनाम मृत्युंजय सरकार (AIR 1997 SC 249) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने कंस्त्र्बिल को अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का उचित अवसर दिए बिना पदच्युत करने को नैसर्गिक न्याय की अवहेलना मानते हुए आदेश को असंवैधानिक घोषित कर दिया और कहा अनु० 14 में नैसर्गिक न्याय का  सिद्धांत अंतर्निहित है | डी० डी० यादव बनाम जे० एम०  ए० इंडस्ट्रीज , [(1993) 3 SCC 258 ] के वाद में कहा गया कि प्रक्रिया विधि या मूल विधि दोनों तथा उसके अधीन किये गए कार्य सभी को अनु० 14 की कसौटी का पालन करना अनिवार्य है |

युक्तिसंगत वर्गीकरण 
(Reasonable Classification)

        समता के सिद्धांत में यह अपेक्षित नहीं है कि सभी विधियाँ सभी को लागू हों | व्यक्तियों की विभिन्न आवश्यकताओ के अनुसार, उनके साथ विधि का पृथक व्यव्हार भी आवश्यक है | अतः व्यक्तियों का वर्गीकरण आवश्यक हो जाता है | सामाजिक व्यवस्था को समुचित ढंग से चलाने के लिए राज्य को अनु० 14 के अंतर्गत वर्गीकरण करने की शक्ति प्राप्त है | (बिहार राज्य बनाम बिहार राज्य प्रवक्ता संघ ,ए० आइ० आर० 2007 एस० सी० 1948 ) परन्तु अनु० 14 के अधीन व्यक्तियों का वर्गीकरण युक्तियुक्त होना चाहिए मनमाना नहीं अन्यथा वह असंवैधानिक होगा | वर्गीकरण के युक्तियुक्त होने के लिए दो शर्तें है --

        1. वर्गीकरण एक बोधगम्य अन्तरक(intelligible differentia) पर आधारित होना चाहिए, तथा 
        2.अन्तरक और उसके उद्देश्य में तर्कसंगत सम्बन्ध होना चाहिए | 
        अर्थात वर्गीकरण, युक्तियुक्त हो, म,अनमना न हो तथा वर्गीकरण के आधार तथा प्रश्नगत अधिनयम के उद्श्यदे में निल्कात्तम सम्बन्ध भी होना चाहिए | यह आवश्यक नहीं है कि वर्गीकरण वैज्ञानिक या तार्किक रूप से पूर्ण हो, क्योंकि यह न तो आवश्यक ही है और न ही संभव ही है | 

समता का नया आयाम - मनमाने पन के विरुद्ध संरक्षण 
(New concept of equality -- protection against arbitrariness)

         ई० पी० रोयप्पा बनाम तमिलनाडु राज्य, (AIR1974 SC 591) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने समता की पारस्परिक धारणा को जो कि युक्तियुक्त सिद्धांत पर आधारित है, मानने से अस्वीकार कर दिया है तथा न्यायमूर्ति  श्री भगवती ने नया दृष्टिकोण मनमानेपन (Arbitrariness ) से संरक्षण को अपनाया है | 
    मेनका गाँधी बनाम भारत संघ (AIR 1978 SC 507) तथा  इन्टरनेशनल एयरपोर्ट अथारिटी (AIR 1979 SC 1628) के वादों में भी उच्चतम न्यायालय ने इसी सिद्धांत को मान्यता दी तथा कहा कि अब यह अच्छी तरह्ज सुस्थिर हो गया है कि अनु० 14 मनमानेपन के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है, जो कम मनमाना है वह आवश्यक रूप से समता के विरुद्ध है | यह एक न्यायिक सूत्र (Judicial Formula) है | परन्तु श्री सिरवाई महोदय ने इस सिद्धांत की आलोचना की है |

वी ० पी० सी० सी० मजदूर संघ बनाम एन० टी० पी० सी० , ए० आइ० आर० 2008 एस० सी० 336 में उच्चतम नायाय्लय ने यह अभिनिर्धारित किया कि सरकार एवं उसके अभिकरण द्वारा अपने कर्मचारियों की सेवा - शर्तो में उनके हितो के प्रतिकूल बिना उन्हें सुनवाई का अवसर प्रदान किये,किया गया परिवर्तन मनमाना है और अनु० 14 का उल्लंघन करता है | 

वर्गीकरण का आधार 
(Ground of Classification )

        भोगोलिक परिथितियाँ, क्षेत्रीय परिस्थितियाँ, विशेष परिस्थितियाँ, विशेष न्यायालय(Special Courts), कर-विधानों (टैक्सेशन Laws )के लिए विशेष वस्तुओ, विभिन्न पेशे एवं व्यवसाय इत्यादि |

मत्त्वपूर्ण निर्णीत वाद 

        1. चिरंजीत लाल बनाम भारत संघ (AIR 1951 SC 41 ) के वाद में शोलापुर कपडा कंपनी में कुव्यवस्था के कारण संसद ने शोलापुर  स्पिनिंग एण्ड विविंग क० एक्ट पारित किया जो केवल  उसी कंपनी पर लागू होता था | उसकी संवैधानिकता को चुनौती दी गई  | न्यायालय ने इस आधार पर असंवैधानिक घोषित नहीं किया कि वह केवल एक व्यक्ति पर ही लागू होता है, दूसरों पर नहीं |

        2.एयर इण्डिया बनाम नरगिस मिर्जा , (AIR 1981 SC 1829) एयर इण्डिया का विनियम 46 यह उपबंधित करता था कि वयुयाँ परिचारिकाये निगम की सेवा में 35 वर्ष की आयु में या विवाह कर्ण एप्र यदि वह चार वर्ष के अंदर होता है, तो पहली बार गर्भवती होने पर जो पहले घटित हो, अवकाश प्राप्त करेंगी | इस शर्त  को उच्चतम न्यायालय ने अनु० 14 का उल्लंघन माना तथा उसे असंवैधानिक घोषित किया |

        3. इंडियन काउन्सिल आफ लीगल एड एण्ड एडवाइज  बनाम बार काउन्सिल आफ इण्डिया  [(1995) 1SCC 732] के मामले में, बार काउन्सिल के नियम 9 में यह उपबंधित था कि 45 वर्ष की आयु से अधिक व्यक्तियों को अधिवक्ता के रूप में उनका नाम दर्ज नहीं किया जायेगा | यह कहा गया कि इससे व्यवसाय में गुणात्मक सुधार आयेगा | उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि यह वर्गीकरण मनमाना तथा विभेदकारी है तथा अनु० 14 का उल्लंघन करता है | 

        4. भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी (एम ) बनाम भारत कुमार (AIR 2003 SC 184) के मामले में निर्धारित किया गया कि राजनैतिक दलो द्वारा बंद का आयोजन अनु० 14 के विरुद्ध होने के करण असंवैधानिक है |

        5. उड़ीसा राज्य बनाम बलराम साहू (AIR 2003 SC 33) के मामले में निर्धरित किया गया कि "समान कार्य के लिए समान वेतन " के अधिकार के लिए यह नहीं देखा जाना चाहिए कि किये गए कार्य की प्रकृति क्या है ? ऐसे कार्य की क्वालिटी क्या है तथा ऐसा कार्य कितना भरोसेमंद है, बल्कि यह भी देखा जाना चाहिये कि किये गए कार्य के प्रति कितनी जिम्मेदारी है |

        6. बिहार राज्य बनाम बिहार राज्य प्रवक्ता संघ, ए० आइ० आर० 2007 एस० सी० 1948 के वाद में उच्चता,म न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि शिक्षा भी विभेद का आधार हो सकती है | प्रवक्ता एवं प्रशिक्षित प्रवक्ता में विभेद विधिमान्य एवं युक्तिसंगत है तथा अनु० 14 का उल्लंघन नहीं करता | प्रवक्ता एवं अप्रशिक्षित प्रवक्ता का वोभेद बोधगम्य अन्तरक पर है | उनके बीच वेतन में भी विभेद किया जा सकता है |


Source: CLA,

LLB. 3 YEAR  PROGARMME 1st SEMESTER, 2nd PAPER

COSTITUTIONAL  LAW - I
 
DR. RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA 

DR, RMLAU, AYODHYA 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ