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प्रश्न - सार्वजानिक नियोजन तथा शैक्षिणिक संस्थाओ में आरक्षण से सम्बन्धी संवैधानिक प्रावधानों को विवेचना कीजिए | इस सम्बन्ध में पिछड़े वर्ग शब्दावली के प्रति उच्चतम न्यायालय का क्या दृष्टि कोण है ? समझाइए |

  1.शैक्षणिक संस्थाओं मे आरक्षण 

        अनु० 15 (4) द्वारा सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों या अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए शैक्षणिक संस्थाओ में प्रवेश हेतु आरक्षण की व्यवस्था की गई है यह प्रावधान बनाया गया है  कि धर्म, वंश, जाति, लिंग या जन्मस्थल के आधार पर वर्गीकरण नहीं किया जायेगा परन्तु अनु० 15 (4) उक्त प्रावधानों के अपवाद स्वरुप है | यह प्रावधान अनुसूचित जाति, जनजाति तथा सामाजिक दृष्टिकोण से पिछड़े वर्ग के लोगों की सामाजिक तथा शैक्षणिक उन्नति के लिए ल्किया गया है |

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उत्तर प्रदेश राज्य बनाम प्रदीप टंडन , (AIR 1975 SC 563 ) के मामले में, उत्तराखंड मेडिकल कालेज में प्रवेश के लिए उत्तर प्रदेश के निवासियों को प्रवेश शुल्क से मुक्त किया गया था, किन्तु प्रदेश के बाहर के छात्रों को अतिरिक्त प्रवेश-शुल्क देना पड़ता था | इस नियम को अनु० 14 और अनु० 15 (1) के अंतर्गत चनौती दिए जाने पर न्यायालय ने इस आधार पर वैध ठहराया कि भेद-बजाव जन्म - स्थान के आधार पर नहीं, बल्कि निवास- स्थान के आधार पर किए गया था | इन दोनों आधारों के अर्थों में अंतर है | अनु० 15 (1) केवल जन्म-स्थान के आधार पर भेद-भाव बरतना वर्जित करता है | 

2. सार्वजानिक नियोजन में आरक्षण 

(Reservation in Public Employment )

        अनु०  16 (1) यह उपबंधित करता है कि राज्य के  अधीन पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बंधित विषयों में सभी नागरिको के लिए अवसर की समानता होगी तथा धर्म, वंश, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास के आधार पर किसी प्रकार एक वर्गीकरण को मान्यता नहीं दी जाएगी | परन्तु अनु०- 16 (4) में यह उपबंधित किया गया है कि राज्य को सरकारी सेवाओ में पिछड़े वर्गों, अनुसुचित जाति, तथा अनुसूचित जनजाति, के लिए आरक्षण प्राप्त करने की शक्ति प्राप्त  है | यह वर्गीकरण इसलिए किया गया है कि उक्त जातियों को समाज में  बराबर का अवसर प्रदान कराया जाय  | यह प्रावधान केवल सरकारी सेवाओ के लिए है न कि गैर सरकारी सेवाओ के लिए |

        नरसिंह राव बनाम आंध्रप्रदेश , (AIR 1970 SC 442 ) के मामले में आंध्रप्रदेश के एक क्षेत्र तेलंगाना के लोक- पदों के लिए एक केंद्रीय अधिनियम ने निवास-स्थान की योग्यता निर्धारित की थी | उच्चतम न्यायालय ने कहा कि निवास सम्बन्धी योग्यता, पूरे राज्य के लिए न कि केवल उसके किसी क्षेत्र के लिए, निर्धारित की जानी चाहिए | संसद कुछ पदों पर राज्य के निवासियों के लिए आरक्षित कर सकती है, किन्तु तेलंगाना क्षेत्र में केवल तेलानागा क्षेत्र के निवासियो के लिए ऐसा आरक्षण नहीं कर सकती है | इसलिए यह नियम असंवैधानिक है | 

सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा वर्ग 

(Socially and Educationally Backward Class  )

        सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा वर्ग कौन है ? इसका निर्धारण करने की शक्ति राज्य की है, किन्तु राज्य का निर्णय अंतिम नहीं है, उपर्युक्त मामले में न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है | 

        कसौटी (Test) -- सर्वप्रथम मद्रास राज्य बनाम चम्पकम दोराइजन ( AIR 1995 SC 226 ) के मामले में, राज्य द्वारा धर्म, जाति के अधर पर किए गये आरक्षण को चुनौती दी गई थी कि उक्त आधारों पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है | इसके बाद बालाजी बनाम मसूर राज्य, (AIR 1963 SC 649 ) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि पिछड़े वर्गों के बीच किया गया उपवर्गीकरण अनु० 15 (4) के अंतर्गत न्यायोचित नहीं है | अनु० 15 (4) सामाजिक और अर्थी दोनों दृष्टियों से पिछड़ेपन की परिकल्पना करता है, न  कि केवल सामाजिक या केवल आर्थिक दृष्टिकोण से | कोई विशेष वर्ग पिछड़ा है या नही, इस बात के निर्धारण के लिए व्यक्ति की जाति ही एक मात्र कसौटी नहीं हो सकती है | 

        चित्रलेखा बनाम मसूर राज्य (AIR 1964 SC 1823 ) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि सामाजिक तथा शैक्षणिक पिछड़े वर्ग के लिए वर्गीकरण आर्थिक परिस्थितियों तथा व्यवसाय पर आधारित होकर किया जाना चाहिए |

        त्रिलोकी नाथ बनाम जम्मू कश्मीर राज्य (AIR 1969 SC 1 ) के मामले में अभिनिर्धारित किया कि पिछड़ा वर्ग तथा पिछड़ी जाति समानार्थी नहीं है |

        इस असमंजस की स्थिति को मण्डल आयोग मामले ने दूर किया |

मण्डल आयोग का मामला 

(Mandal Commission Case ) 

        इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (AIR 1993 SC 477 ) जो कि मण्डल आयोग के मामले के रूप में जाना जाता है, के मामले में एक मण्डल कमीशन बनाया गया था, जिसका कार्य पिछड़े वर्ग उत्थान के लिए सुझाव देना था | कमीशन ने जाति के आधार पर सर्वे किया  तथा अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी | सरकार ने 27 % अतिरिक्त आरक्षण पिछड़े वर्ग को देने का आदेश जारी किया | यह आरक्षण जाति के आधार पर  था तथा 22.5% के अतिरिक्त था | उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि --

        1. पिछड़े वर्ग में समूह भी आयेंगे, जो कि सामाजिक रूप से पिछड़े हैं | इसमें जाति भी शामिल है, अर्थात जाती के आरक्षण के लिए एकमात्र आधार माना जा सकता है | 

        2. सामाजिक पिछड़े वर्ग में  आर्थिक  तथा शैक्षणिक  पिछड़े वर्ग शामिल हैं | 

        3. सामाजिक पिछड़े वर्ग को अधिक पिछड़ा वर्ग तथा अन्य पिछड़ा वर्ग जिसे संपन्न वर्ग या मलाईदार परत (Creamy layer) कहा गया, में विभाजित किया जा सकता है, अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा | अति पिछड़े वर्ग तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के निर्धारण का अकरी सरकार का  है |

        आरक्षण की मात्रा- मण्डल आयोग मामले  (AIR 1993 SC 477) लके द्वारा अग्रनयन नियम को संवैधानिक घोषित किया गया परन्तु यह कहा गया कि इसके द्वारा 50 % सी अधिक आरक्षण नहीं हो सकता है | यह आरक्षण पिछड़े वर्ग में नहीं मिलेगा | 

    81वे संविधान संशोधन अधिनियम, 2000 के द्वारा नया अनु० 16 (4- B) जोड़ा गया | इसके द्वारा इंद्रा साहनी के मामले में, जो आरक्षण की सीमा 50 % निर्धारित की गई थी | उसे समाप्त कर प्रावधान किया गया  कि अनुसूचित जाति, अनुसुचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग की जो रिक्तियां शेष रह जाती है | उन रिक्तियों को एक अलग वर्ग (Separate class)माना जायेगा तथा उन्हें अगले वर्ष भरा जा सकता है | तथा उसमे 50 % की सीमा वाला सिद्धांत लागू नहीं होगा | 

        82वे संविधान संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा अनु० 335 एक अन्य परंतुक जोड़कर उल्लखित किया गया कि अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जन जाति के अवर्ग के व्यक्तियों को किसी परीक्षा मे अहर्ता प्राप्तांक तथा किसी पद पर सेवा में अहर्ता हेतु छुट या रियायत दी जा सकती है | 

        पंजाब राज्य बनाम जी० एस० गिल० (AIR 1997 SC 2324 ) के मामले में उच्च्ताम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किए कि केवल एक पद के लिए आरक्षण का प्रावधान अनु० 16 (4) का उल्लंघन नहीं करता है |

        बल्सम्मा पल बनाम कोचीन विश्वविद्यालय [ ( 1963) 3 SCC 445] के मामल में यह निर्धारित किया गया कि उच्च जाति की महिला यदि पिछड़ी जाति सदस्य से विवाह कर लेती है, तो उसे अनु० 15 (4) तथा तथा 16 (4) का लाभ नहीं मिलेगा |

        इन्द्रा साहनी बनाम भारत संघ (द्वितीय मामला ) (AIR 1997 SC 5948) के मामले में केरल राज्य ने  पिछड़े वर्गों में से उन्नत वर्ग को निकलने के लिए आयोग गठित नहीं किया है, बल्कि एक अधिनियम पारित कर यह घोषित किया कि यहाँ कोई उन्नत वर्ग नहीं है | उच्चतम न्यायालय ने उक्त अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर यह निर्णय दिया कि जब तक कियो आयोग का गठन करके यह कार्य नहीं कर लिया जायेगा, तब तक जोसफ समिति के आधार पर आरक्षण होगा |

        हरिदास पर्सेदिया बनाम उर्मिला शाक्य (AIR 2000 SC 278) के मामले में न्यायालय के समक्ष मुख्य विचारणीय प्रश्न यह था कि क्या 50 % प्रेषत अंक जो सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए पास करना अनिवार्य है उस एअनुसुचित जाति तथा अनुसूचित जन जाति केममक्ले में 10 प्रतिशत घटाया जा सकता है, जब विभाग में उच्च प्रोन्नति  के लिए पद केवल अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जन जाति के लिए ही है | उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब सरकार ने 1964 तथा 1985 और 1990 में एक नीतिगत निर्णय लिया था कि अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जन जाति के लिए सीधी भारती तथा विभागीय परीक्षा पास करने में 10 प्रतिशत के छुट प्रदान की जाएगी तो इसी दशा में यह छुट सीधी भरती में  लागू होगी | चुकी मध्यप्रदेश डिपार्टमेंट डिपार्टमेंट सबार्डिनेट (क्लास III एक्जीक्यूटिव ) सर्विस रिक्रुमेंट रूल्स 1971 के अधीन अधिनियम 20 अनु० 16 (4)  के अंतर्गत इसी छूट प्रदान की जा सकती है , अतः वह विधिमान्य है |

        पदोंनती के लिए आरक्षण -- सन 1995 में 77वे संविधान संशोधन द्वारा अनु० 16 (A-4) जोड़ा गया है, जिसमे पदोन्नति के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है, क्योंकि माडल आयोग मामले द्वारा पदोन्नति  में आरक्षण को वैध नहीं माना जाता था |

        85वे संविधान ( संशोधन ) अधिनियम, 2001 द्वारा यह भी जोड़ा गया है कि पदोन्नति के मामले में "भूतलक्षी ज्येष्ठता " को मान्यता दी जाएगी | 


Source: CLA,

LLB. 3YEAR PROGRAMME 1st SEMESTER 2nd PAPER

CONSTITUTIONAL LAW -I

DR. RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA

DR, RMALU,  AYODHYA

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