राज्य के अधीन नियोजन या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में अवसर की समानता
अनु० 16 लोक सेवाओ में अवसर की समानता का मूल अधिकार, केवल नागरिको के लिए, उपबंधित करता है |
अनु० 16 (1) ख़ अनुसार, राज्य के अधीन नौकरियों या पदो पर नियुक्ति के सम्बन्ध में सब नागरिको को समान अवसर प्राप्त होगा |
अनु० 61 (2) के अनुसार, किसी नागरिक के लिए, राज्य के अधीन या किसी पद के सम्बन्ध में, केवल धर्म, मूलवंश,जाति, लिंग,वंश-क्रम, जन्म-स्थान, निवास या इनमे से किसी के आधार पर न तो अपात्रता होगी और न विभेद किया जायेगा |
अवसर की समानता का अर्थ -- अवसर की समानता या समान अवसर देने का अर्थ यह है कि एक एक वर्ग के कर्मचारियों को, न कि पृथक एवं स्वतंत्र वर्गों के कर्मचारियों को, समान अवसर प्रदान करता है | प्रत्येक नागरिको को उस्कियो योग्यता एवं प्रतिभा के आधार पर नियुक्ति के लिए समान अवसर प्रदान किया जायेगा | किन्तु अनु० 16 राज्य की लोक सेवाओ के लिए योग्यता एवं मानदण्ड निर्धारित करने से नहीं रोकता है | सेवा शर्तो, में मानसिक एवं शारीरिक योग्यता, अनुशासन,नैतिक स्तर , तकनीकी ज्ञान की नैतिक अपेक्षा रखने वाले पदों के लिए तकनीकी ज्ञान , पूर्व चरित्र आदि बातें शामिल है | न्यायोचित यह कि चुनाव की कसौटी मनमाने ढंग की न हो और पद की प्रकृति कर अनुसार योग्यता का मानदण्ड निर्धारित किया जाये |
पांडुरंग बनाम आंध्रप्रदेश लोक सेवा आयोग (AIR 1963 SC 268) के मामले में याचिकाकर्ता आंध्रप्रदेश गुंटूर जिले में वकालत करता था | वह मुंसिफ पद के लिए एक प्रत्याशी था | विज्ञापन में दो योग्यताओ की अपेक्षा की गई थी |
1. क्षेत्रीय विधि का ज्ञान रखना और
2. आँध्रप्रदेश उच्चन्यायालय में वकालत करना |
लोक सेवा आयोग ने याचिका करता के आवेदन - पत्र को इस आधार पर अस्वीकार दिया कि वह आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में वकालत नहीं करता था | उच्चतम न्यायालय ने इस नियम को और उसके अधीन जारी की गई अधिसूचना को इस आधार पर असंवैधानिक घोषित कर दिया कि उच्च न्यायालय में वकालत करना और क्षेत्रीय विधियों का ज्ञान रखना और युक्तियुक्त सम्बन्ध नहीं है | किसी भी न्यायालय में वकालत करने वाला वकील क्षेत्रीय विधियों का ज्ञान प्राप्त कर सकता है | ऐसी असद्भावना पूर्ण कार्यवाही के आधार पर किया गया विभेद अनु० 16 का अतिक्रमण है |
राघवेन्द्र आचार्य बनाम कर्नाटक राज्य के वाद में उच्च्च्तम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि कार्यपालिका के आदेश द्वारा पेंशन देने के सम्बन्ध में अलग कट आफ डेट निर्धारित करना भेदभाव पूर्ण है, जिससे अनुच्छेद 16 का उल्लंघन होता है | यह आदेश भविष लक्षी प्रभाव से कर्मचारी के वेतन को कम करता है | कार्यपालिका आदेश जारी करके किसी कर्मचारी को निहित या उपार्जित अधिकार से वंचित नहीं कर सकता है |
नेहरु युवा केंद्र संगठन बनाम राजेश मोहन शुक्ल, ए० आइ० आर० 2007 एस० सी० 2509 में उच्चतम न्यायालय ने यह अवलोकन किया है कि नेहरु युवा केंद्र संगठन में सीधी भर्ती और प्रति नियुक्ति भर्ती से नियुक्ति व्यक्ति दोनों समान कार्य कर रहे हैं | अतः समान कार्य के समान वेतन न दिया जाना अनु० 16 का अतिलंघन है |
अपवाद (Exceptions)
1. निवास के आधार पर विभेद -- अनु० 16 के खण्ड 3 के अनुसार, संसद ऐसी कोई विधि बना सकती है, जो किसी राज्य या संघीय राज्य क्षेत्र की सरकार के या उसमे के किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन किसी वर्ग या वर्गों की नौकरी या पद पर नियुक्ति के सम्बन्ध में, ऐसी नौकरी या नियुक्ति के पूर्व उस राज्य या संघीय राज्य क्षेत्र के अन्दर निवास करने के सम्बन्ध में कोई अपेक्षा विहित करती हो |
नरसिंह राव बनाम आंध्र प्रदेश (AIR 1970 SC 422 )के मामले में आन्ध्र प्रदेश के एक क्षेत्र में तेलंगाना के लोक- पदों के लिए एक केन्द्रीय अधिनियम ने निवास -स्थान की योग्यता निर्धारित की थी | उच्चतम न्यायालय ने कहा कि निवास सम्बन्धी योग्यता, पूरे राज्य के लिए, ण कि उसके किसी क्षेत्र के लिए, निर्धारित की जानी चाहिए | संसद कुछ पदों को राज्य के निवासियो के लिए आरक्षित कर सकती है, किन्तु तेलंगाना क्षेत्र में केवल तेलंगाना क्षेत्र के निवासियों के लिए ऐसा आरक्षण नहीं कर सकती है | इसलिए यह नियम असंवैधानिक है |
2. पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण -- अनु० 16 के खण्ड ( 4 ) के अनुसार, राज्य के पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिन्हें राज्य की में, राज्य के अधीन सेवाओ से पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए राज्य कोई भी उपबंध नहीं कर सकता है |
अनु० 16 (4) के अधीन राज्य पिछड़े वर्गों के लिए लोक-पदों को आरक्षित कर सकता है, किन्तु आरक्षण युक्तियुक्त होना चाहिए, मनमाना नहीं |
इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ ( मण्डल आयोग का मामला ) (AIR 1993 SC 477 ) के द्वारा अग्रनयन नियम (Carry forward rule) को संवैधानिक घोषित किया गया, परन्तु यह कहा गया कि इसके द्वारा 50 % से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता है | इसी के साथ निम्नलिखित सिद्धांतो को प्रतिपादित किया गया -
1. अनु० 16 (4 ) में पिछड़ेपन का आधार जाति है, आर्थिक कसौटी को आधार नहीं माना जा सकता है |
2. पिछड़े वर्गों का निर्धारण करते समय संपन्न वर्ग (Creamy layer) को निकल कर आरक्षण लागू किया जाना चाहिए | इस प्रकार पिछड़े वर्ग को पिछड़ा वर्ग तथ अति पिछड़ा वर्ग मे विभाजित किया जा सकता है |
3. आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 % तक हो सकती है, परन्तु विशेष परिस्थिति में आरक्षण कुछ अधिक हो सकता है |
संशोधन द्वारा 1995 में 77वा संविधान संशोधन करके अनु० 16 ( 4-A) खण्ड जोड़ा गया जिसमे पदोन्नति के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई क्योंकि मण्डल आयोग मामले द्वारा पदोन्नाति में आरक्षण को वैध नहीं माना गया थी |
85वें संविधान संशोधन, 2001 के द्वारा अनु० 16 (4-A)-- में पदोन्नति के मामले में "भूत लक्षी ज्येष्ठता " को वरीयता देने की बात कही है |
81वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2000 के द्वारा नया अनु० 16 (4-B) जोड़ा गया | इसके द्वारा इंद्रा साहनी के मामले में जो आरक्षण की सीमा 50 % निर्धारित की गई थी, उसे समाप्त कर कलह गया कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति तथा पिछड़े वर्ग की जो रिक्तियाशेष रह जाती है, उन रिक्तियों को एक अलग वर्ग (Separate class) माना जायेगा तथा उन्हें अगले वर्ष भरा जा सकता है तत्थ उस सम्बन्ध में 50 % की सीमा वाला सिद्धांत लागू नहीं होगा |
82वें संविधान संशोधन अधिनियम 2000 द्वारा अनु० 335 में एक नया परंतुक जोड़ कर उल्लेख किया गया कि अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के वर्ग के व्यक्तियों को किसी परीक्षा में अहर्ता प्राप्तांक (Qualifying marks) तथा किसी पद में सेवा में अहर्ता हेतु छुट या रियायत(Relaxation) दी जा सकती है |
इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ ( द्वितीय मामला ) (AIR 2000 SC 5948 ) के मामले में केरल राज्य के द्वारा पिछड़े वर्गों में उन्नत वर्ग (Creamy layer) को निकलने के लिए आयोग को गठित नहीं किया गया , बल्कि एक अधिनियम पारित कर यह घिषित किया गया कि यहाँ कोई उन्नत वर्ग नहीं है | उच्चतम न्यायायलय ने उक्त अधिनियम को असंवैधनिक घिषित कर यह निर्धारित किया कि जब तक उन्नत वर्ग के सम्बन्ध में आयोग का गठन कर उन्हें नहीं पहचाना जाएगा, तब तक जोसफ समिति के आधार पर आरक्षण होगा |
हरिदास परसेदिया बनाम उर्मिला शाक्या (AIR 2000 SC 278 ) के मामले में न्यायालय के समक्ष मुख्या विचारणीय प्रश्न यह था कि क्या 50 प्रतिशत अंक जो सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए पास करना अनिवार्य है, उसे अनुसूचितएवं अनुसूचित जन जाति के मामले में 10 प्रतिशत घटाया जा सकता है, जब विभाग में उच्च प्रोन्नति के लिए पद केवल अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए ही है | उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब सरकार ने 1964 तथा 1985 और 1990 में एक नीतिगत निर्णय लिया था कि अनुसूचित जाती तथा जनजाति के लिए सीधी भारती और विभागीय परीक्षा पास करने में 10 प्रतिशत की चोट प्रदान की जाएगी तो एसी दशा में यह छुट सीधी भारती में भी लागू होगी | मध्य प्रदेश ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट सबार्डिनेट ( क्लास III एक्सिक्यूटिव ) सर्विस रिक्रूटमेंट रूल्स 1971 के अधीन नियम 20 तथा अनु० 16 (4) के अंतर्गत इसी चिओत प्रदान की जा सकती है और वह विधिमान्य है |
पंजाब राज्य बनाम जी० एस० गिल ० (AIR 1997 SC 2324) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिधारित किया कि केवल एक पद के लिए आरक्षण का प्रावधान अनु० 16 (4) का उल्लंघन नहीं करता है |
एम० नागराज बनाम भारत संघ (ए० आइ० आर० 2007 एस० सी० 71) के वाद में उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने यह अभिनिर्धारित किया कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों कोप सरकारी नौकरियों में आरक्षण संपन्न वर्ग (Creamy layer) को निकल करकर ही किया जा सकता है | न्यायालय ने संविधान के 81वे, 82 वे एवं 83 वे संशिधन से संवैधानिक घोषित किया, किन्तु यह अवधारित किया कि आरक्षण का कोटा अधिकतम 50 प्रतिशत ही हो सकता है और इससे अधिक होने पर राज्य को प्रशासन की दक्षता को दृष्टिगत रखते हुए ऐसे आरक्षण का उचित कारण बताना होगा |
3. धार्मिक पदों पर धर्म सम्बन्धी योग्यता -- खण्ड (5 ) के अनुसार इस अनुच्छेद की किसी बात में इसी विधि का प्रवर्तन प्रभावित नहीं होगा, जो यह उपबंध करती हो कि किसी धार्मिक या सांप्रदायिक संस्था का कार्य से सम्बद्ध कोई पदाधिकारी या उसके शासी निकाय का कोई सदस्य किसी विशिष्ट धर्म का अनुयायी या किसी विशिष्ट संप्रदाय का ही हो |
Source: CLA,
LLB. 3YEAR PROGRAMME 1st SEMESTER 2nd PAPER
CONSTITUTIONAL LAW- I
DR. RAM MANOHAR LOHIA AWADH UNIVERSITY, AYODHYA
DR, RMLAU, AYODHYA
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